इन्द्रकान्त झा



इन्द्रकान्त झा 1943-

गीत


बेइमान जकरा कहब

गारिए पढ़त।

बलगर होएत

मारबो करत।

थाना दौड़ाओत

इज्जत उतारत।

जेबी खाली करत

जेबी भरत।

मुदा

जेलक खिचड़ी खोआओत।

इमानदार ककरा कहब

जकरा कहब

स्वागत करत।

अनका बेइमानक बखारी कहत

भ्रष्टाचारक अखारा बुझत

अपनाकेँ गंगा, यमुना आ

त्रिवेणीक संगम कहत॥





चल चल गुजरिनी

मिथिलाक धाम गै

जतय कौशिकी मैयाकेँ

खल खल बहैत देखिहें

अनकर विनाशपर

हँसैत देखिहें

माछ काछु घड़ियालकेँ

उछलैत देखिहें

जलजन्तुकेँ लड़ैत देखिहें

मुदा सभकेँ संस्कृत बजैत सुनिहें

तूँ रुकि जहिहें गै

देखिहें तूँ कोशीक पेटमे

बहैत गाम घरकेँ घरोमे मुर्दा बाहरोमे मुर्दा

मुर्दा मुर्दाकेँ झगड़ैत देखिहें

खेरातक अन्नपर

कुत्ताकेँ भूकैत सुनिहें

मुसोकेँ देखिहें बोरा कुतरैत गै

मुदा नेताकेँ देखिहेँ

घरकेँ भरैत गै

मुदा नेताकेँ देखिहेँ

घरकेँ भरैत गै

सम्बन्धीकेँ पढ़बैत गै कफनक कपड़ा चोरबैत गै

चल जहिहें सरकार दरवार गै

कहि दिहैन नेताक हाल-चाल गै

घूमि जहिहें मिथिलाक गाम गै

चल चल गुजरिनी मिथिलाक धाम गै।