अजित कुमार आजाद


अजित कुमार आजाद

कविता:मृतकक बयान, लिंग भेद, बारुदक विरोधी, पिताएल छथि प्रभुगण, अघोषित युद्धक भूमिका


मृतकक बयान
पहिने हमर नाम पूछल गेल
ओ नहि पतियाएल

फेर ओकर नजरि
हमर गरदनि दिस गेलै
ओ नहि परखि सकल जे ओतए
बद्धी छै कि ताबीज

तखन ओ हमरा नाँगट क’ देलक सरेआम
ओकरा तैयो विश्वास नहि भेलै

अन्ततः ओ हमरा मारि देलक
मुदा आश्चर्य
एकर बादो ओ निश्चिन्त कहाँ अछि?

लिंग भेद
अहाँ
मस्जिदकें
मन्दिरमे बदलि देलिऐ

अहाँ ओहिमे
राता-राती रोपि देलिऐ लिंग
टाँगि देलिऐ घण्टी
बजब’ लगलहुँ घड़ीघण्ट
गाब’ लगलहुँ आरती

हे नरेन्द्र
अजानक विरोधमे
खतना कएल हजारक हजार जान लेलाक बाद
की अहाँ कहि सकै छी
अहाँक देवताक लिंग खतल नहि छनि


बारूदक विरोधमे
शान्ति आ सम्मानक लेल युð कएनिहारि आंग सान सू चीक लेल
जखन कखनहुँ
कोइली कुहकैत अछि
दाबि देल जाइत अछि ओकर कण्ठ
कतरि लेल जाइत अछि ओकर पाँखि
लिखले छै पिंजड़ा
सुग्गाक भागमे सभ दिनहि...
परबोक घुटरब कहाँ सहाज छै ककरो

जखन कखनहुँ
कियो देखैत अछि स्वतन्त्राताक स्वप्न
तोड़ि देल जाइ छै ओकर निन्न
तंे कि लोक छोड़ि देलक अछि
सपना देखब...

हे भारतीक प्रतिरूप
अहाँक चाँछ लागल गाल पर
बरु लोक लगबैत रहल नोन-बुकनी
लोहाक माला आ डँरकस पहिर
अहाँ आरो सुन्नरिये भेलहुँ अछि

जुनि घबराउ हे सू ची दाइ
अहाँक डेन पर
जनम’ लागल अछि पाँखि
कोटि-कोटि कण्ठमे
आबए लागल अछि अहाँक स्वातन्त्रय-गीत
आब जखन कि
फूजि गेल अछि लोहाक फाटक
चलू, बारूदक विरोधमे
एक बेर फेर लड़ी लड़ाइ
हम सभ अहाँक संग छी

पिताएल छथि प्रभुगण
चान पर जाएत लोक
मंगल पर ओछाओत जीवन
वृहस्पति पर करत प्राणायाम
किन्तु पृथ्वी पर किन्नहुँ नहि रहत

एत्ते टाक सौंस पृथ्वी
किन्नहुँ कम नहि भ’ सकै छल
अपन सन्तानक लेल
तँ की सत्ते पृथ्वी पर कम भ’ गेलैक अछि जग्गह

प्रकृति गढ़लनि जोंक-झिुंगर-बाघ
ओ गढ़लनि सुग्गा-हाथी-मनुक्ख
मुदा, मुनक्खकें छोड़ि
आर कियो नहि जाएत चान पर, मंगल पर

मनुक्ख चानो पर बनाब’ चाहै’ए
चीन-जापान-अमेरिका
मंगलो पर कर’ चाहै’ए अमंगल
रोप’ चाहै’ए ओत्तहु
गया-नवादा-जहानाबादक बीहनि

बीत-बीतमे बँटल एहि सौंस पृथ्वीक प्रभुगण
एखनहुँ छथि पिताएल
पृथ्वीकें बाँटि लेब’ चाहै छथि दू-दू आँगुरमे
जड़ीब-कड़ीक संग आएल राष्ट्रसंघक अमीन
चिनबारेसँ शुरू करत नापी

चान-मंगलक चिन्तामे डूबलि पृथ्वीक देह
चँछाइत अछि कड़ीक रग्गड़सँ
छातीमे भेंसाइ छै कड़ीदारक गाड़ल खुट्टी
आत्र्तनाद करैत अछि पृथ्वी
आ ओम्हर गाछक जड़िमे बैसल
चान परहक ओ बुढ़िया
चरखा कटबामे निमग्न अछि

अघोषित युद्धक भूमिका
व्यस्त अछि लोक
एकटा
अघोषित
अपरिभाषित
युद्धक भूमिका लिखबामे

रंगमंच पर
रक्तबीजक सन्तान
भान करौने अछि अपन उपस्थितिक
सम्वादहीन दृश्यक परदा
एखन नहि खसतै भाइ

अछियाक हाथें बेचि देल गेल अछि चूल्हिक आगि
आयातित हँसी पर
जुनि भरमाउ संगी
संस्कृतिक रक्षार्थ
ढेकार लेब हमर विवशता थिक

हालाँकि बिझाएल नहि अछि ह’रक फार
कोदारिक बेंट नहि भेल अछि कमजोर
ढील नहि भेल अछि मुरेठा
आर-तँ-आर
लागि रहल अछि जेना
लगहिमे कतहु
पड़ि रहल होइक नगाड़ा पर चोट
आ हम
एहि संक्रमण-कालक परिधिसँ
बाहर अएबाक क्रममे
अपनाकें
रणभूमि मध्य ठाढ़ पबैत छी