शरदिन्दु चौधरी


शरदिन्दु चौधरी 

जँ हम जनितहुँ (२००२)

बड़ अजगुत देखल (२००५)

गोबरगणेश (२०११)

करिया कक्काक कोरामिन (२०१६)

बात-बातपर बात खण्ड-१ (२०१९)

मर्मान्तक-शब्दानुभूति (बात-बातपर बात खण्ड-२) (२०२०)

हमर अभाग: हुनक नहि दोष (बात-बातपर बात-३) (२०२१)

साक्षात् (बात-बातपर बात-४) (२०२१)

विदेह शरदिन्दु चौधरी विशेषांक

शरदिन्दु चौधरी
कथा

समय–संकेत

बलराज घरमे बैसल अपन आतीत दिस झाँकि रहल छल। एहन अवसर कहियो नहि भेटल छलैक ओकरा जे ओ अपन इतिहासकेँ स्वयं अपन नजरिसँ आंकि सकय। ईहो अवसर ओकरा एहि कारणे भेटि गेलैक जे कि ओकर पत्नी सेहो बेटा संग मुबंइ चलि गेल छलैक आ ओ घरमे नितांत असगर रहि गेल छल।
वयस्कक अंतिम पड़ाव पर आइ ओ अपनाकेँ एकदम असगर पाबि रहल छल। ओ सोचय लागल जे किएक आइ ओ असगर भऽ गेल अछि? किएक एक–एकटा कऽ सभ ओकरासँ अलग भऽ गेलैक? पहिने दुनू बेटी अपन–अपन सासुर चलि गेलैक। फेर दुनू बेटाक समय अयलै। पहिने शोभराज पढ़बाक हेतु दिल्ली गेलैक आ पढ़ाइ समाप्त कयलाक बाद ओतहि एकटा कम्पनीमे काज करय लागल। फेर ओकर विवाह भेलैक। किछु दिन ओकर पत्नी पटनामे ओकरा सभ लग रहलैक आ फेर ओ अपन पति लग दिल्ली गेलि आ ओतहि रचि–बसि गेल।
एहि तरहे केशव सेहो नोकरीक खोजमे मुंबइ गेल आ ओहीठाम स्थायी रूपेँ रहबाक निर्णय लऽ लेलक। मायक कोरपच्छु रहबाक कारणे आब मायकेँ सेहो अपना संग रखबाक हेतु किछु दिन लेल लऽ गेल अछि। मालती सेहो किछुए दिनमे बेटा ओतऽ रमि गेल अछि। ओना ओ जाइत काल कहि गेलि छलि जे जल्दीये आपस आबि जायत।
बलराज सोचैत चल जा रहल छल जे आखिर किए एक दोसरासँ अपन लोक अलग भेल चल जाइत अछि जखन कि परिवारिक सभ सदस्य रक्त सम्बन्धसँ जुड़ल एकटा माला सदृश होइछ।
ओ ई सभ सोचिये रहल छल कि ओकरा बुझयलैक जे ओकर दांतमे एकटा छोट–छिन केश फंसि गेल छैक जे बेर–बेर दांतसँ फराक करबाक हेतु ओकरा अपना दिस आकृष्ट कऽ रहल छैक। ओ सोचलक जे पहिने एहि केशकेँ दांतसँ बाहर कऽ देल जाय तकर बाद ओ निश्चिंतसँ बैसि कऽ अपन चिंतन प्रक्रियाकेँ आगाँ बढ़ाओत।
ई सोचि ओ मुँहसँ नकली दांत बाहर निकानिकालि ओहिमे फंसल केशकेँ ताकऽ लागल। मुदा ई की– ओकरा ध्यान अयलैक जे ओ चश्मा तँ लगौनहि नहि अछि तँ दांतमे फंसल केश ओकरा कोना सुझतैक? ओकरा स्मरण अयलैक जे चश्मा बगलवला कोठरीमे टेबुल पर राखल छैक। ओ चश्मा अनबा लेल ठाढ़ भेल। बगलवला कोठरीमे जयबा लेल डेग बढ़यबापर छल कि ध्यान अयलैक जे छड़ी तँ हाथमे लेबे ने कयलक तँ कोना ओहि कोठरीमे जा सकत? मुदा तुरंते ओकरा देवालसँ सटल छड़ी ओहीठाम भेटि गेलैक।
हठात् ओकरा अनुभूति भेलैक जे जहि प्रश्नक उत्तर ओ ताकि रहल छलसँ तँ छड़ीक संगे भेटि गेलैक। ओ हँसय लागल आ स्वयंसँ कहय लागल–हमर दाँतजे हमर अपन छलसँ नहि अछि। हमर आँखि जे ज्योति प्रदान करैत छल, सेहो अपना भरोसे नहि रहल, हमर पैर जाहि भरोसे एतेक यात्रा कयलहुँ सेहो आब अपनापर निर्भर नहि अछि आ एहि सभक अछैत हम कृत्रिम अंगक सहयोगसँ जीवि रहल छी।
फेर ओकर चिंतन प्रक्रियाक आगाँ बढ़लैक–ई सम्बन्धो सभ तँ कृत्रिमे छैक तखन एकरा जनबा लेल एतेक व्याकुल किए छी। की हम अपन सर सम्बन्धीक संगे धरती पर आयल छी। किए हमर ई अंग सभ अपन रहितो काज करब बंद कऽ देलक?
आब ओकर चिंतन प्रक्रिया विराम लेबाक संदेश दऽ रहल छलैक। ओकरा ओ ई कहि देलकै जे समये ओ तंत्र छैक जे मनुष्यकेँ सभ साधन उपलब्ध करबैत छैक आ समय पर पुनः ओकरासँ आपस लऽ लैत छैक। ओ तँ एकटा माध्यम मात्र अछि जे समय–संकेतक पालन करैत अछि।