डॉ. रमानन्द झा 'रमण'
जन्म: 02 जनबरी,1949, शिक्षा-एम.ए., पीएच.डी., आजीविका-भारतीय रिजर्व बैंक, पटना (सेवा निवृत्त)।
प्रकाशन: मौलिक- समीक्षा 1. नवीन मैथिली कविता,1982, 2. मैथिली नऽव कविता,1993, 3. मैथिली साहित्य ओ राजनीति, 1994, 4. अखियासल, 1995, 5. बेसाहल,2003, 6. भजारल, 2005., 7. निर्यात कैसे शुरू करें? हिन्दी- रिजर्व बैंक, पटनाक प्रकाशन सम्पादित 8. मैथिलीक आरम्भिक कथा, 1978 समीक्षा, 9. श्यामानन्द रचनावली, 1981, 10. जनार्दनझा‘ जनसीदनकृत निर्दयीसासु (1914) आ पुनर्विवाह (1926), 1984, 11. चेतनाथझाकृत श्रीजगन्नाथपुरी यात्रा (1910), 1994, 12. तेजनाथ झाकृत सुरराजविजय नाटक (1919), 1994, 13. रासबिहारीलाल दासकृत सुमति (1918), 1996, 14. जीबछ मिश्रकृत रामेश्वर (1916), 1996, 15. भेटघॉंट (भेटवार्ता), 1998, 16. रूचय तँ सत्य ने तँ फूसि, 1998, 17. पुण्यानन्द झाकृत मिथिला दर्पण (1925), 2003, 18. यदुवर रचनावली (1888-1934) 2003, 19. श्रीवल्लभ झा (1905-1940) कृत विद्यापति विवरण, 2005, 20. मैथिली उपन्यासमे चित्रित समाज, 2003, 21. पण्डित गोविन्द झाः अर्चा ओ चर्चा, 1997 प्रबन्ध सम्पादक, 22. कवीश्वर चेतना, 2008, चेतना समिति, पटना अनुवाद ,,23.मौलियरक दू नाटक,1991, साहित्य अकादमी,24.छओ बिगहा आठ कटठा,1999, साहित्य अकादमी,25.मानवाधिकार घोषणा Universal Declaration of Human Rights २००७( यूनेसको),26.राजू आ’ टाकाक गाछ, 2008 रिजर्व बेंक -वित्तीय शिक्षा योजना के अन्तर्गत पत्रिका सम्पादन-सह-सम्पादन
1.प्रयोजन,1993 (मासिक),2.कोषाक्षर (हिन्दी)1982,3.घर बाहर,त्रैमासिक, चेतना समिति, पटना
कार्यशाला 1. National Workshop on Literary Translation,- Dec 20.1991 to January12,02,1992, Sahitya Akademi, New Delhi 2.Bonds Beyond the Borders ( India-Nepal civil society interaction on Cross Border issues) -Consulate General of India, Birgunj, Nepal and B.P.Koirala India-Nepal Foundation-May 27-28, 2006 2.Preparation of Intensive Course in Maithili- ERLC, Bhubneswar जूरी 6th Inter National Maithili Drama Festival,1992 -Biratnagar, Nepal पुरस्कार- सम्मान 1.जार्ज ग्रियर्सन पुरस्कार, 1994-95,राजभाषा विभाग,बिहार सरकार, मैथिली नऽव कविता पुस्तक पर,2.भाषा भारती सम्मान, 2004-05 छओ बिगहा आठ कटठा,(अनुवाद) CIIL, मैसूर डा.रमानन्द झा ‘रमण‘-मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा :मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री 01 एवं 02 मार्च, 2009, भागलपुर
१.मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा: मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
२.सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा : मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
१.मिथिलांचलक दलित समाजमे लोकगाथा:मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री
हमर प्रतिपाद्य अछि-मैथिली लोकगाथामे दीनाभद्री । राष्ट्रीय संगोष्ठीक विषयक मूल शीर्षकमे दू टा महत्त्वपूर्ण पद,मिथिलाक स्थान पर मिथिलांचल तथा समाजक स्थान पर दलित समाज अछि। मिथिला अथवा समाजसँ सम्पूर्णताक जे बोध होइत रहल अछि, से एहिसँ नहि होइत छैक। किन्तु ई दूनू शब्द सम्प्रति नव अथर्वत्ता प्राप्त कए लेलक अछि। ई अर्थवत्ता थिक निर्वाचनीय लाभक हेतु मिथिलांचल एवं दलित समाजक नामक उदघोषपूर्वक प्रयोगक चालि । आब तँ दलितमे महा शब्द
जोड़ि महादलितक उत्थानक गप्प किछु राजनीतिक दल करय लागल अछि। वस्तुतः इहो फुटाएबे थिक। आ’’ प्रायः एही हेतु दलितक पक्षधर नेतालोकनि महादलितक विरोध कए रहल छथि। किन्तु जे हो, एहिना जँ क्रम चलैत रहल तँ मिथिलांचलमे महादलित समाजक लोक गाथाक पर संगोष्ठी सेहो आवश्यक भए जाएत।
ई लोकतन्त्रक युग थिक। लोकतन्त्रक सुदृढ़ताक हेतु जाहि कोनो तत्त्वक सभसँ अधिक महत्त्व अछि, से थिक
लोकशक्तिक गरिमामय प्रतिष्ठापन। लोकशक्तिक गरिमाक प्रतिष्ठापन लेल समाजक प्रत्येक सदस्यके ँअपन गौरवमय
इतिहासक परिचय कराएब आवश्यक अछि। संगठित लोकशक्तिक उदय आ‘ विस्तारक ओहि परिचयसँ सम्भावना बढ़ि जाइत छैक। प्रतिफल होएत विकासक बाटक प्रशस्त होएब। विकाससँ सुख समृद्धि अबैत अछि। लोकक क्लान्त मुखमण्डल पर सुख
समृद्धिक फूही निरन्तर होइत रहैत छैक। सुख समृद्धिक निरन्तर फूहीसँ सन्तोषक हरितिमाक स्थायी विस्तार भए जाइत अछि।जागरण, संगठन, सामाजिक दायित्वबोध आ’ समन्वित राष्ट्रीय दृष्टिक विकासक अनेक बाट अछि। ओहि बाटमे प्रमुख अछि, स्वर्णिम अतीतक पराक्रमी व्यक्तिक अवदानक परिचय द्वारा लोकके ँउत्प्रेरित करब। मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास पराक्रमी महापुरुषक गौरव गाथासँ परिपूर्ण अछि। गाथा पुरुषक विषयमे जनबाक अनेक स्रोत अछि। ओ स्रोत सभ लिखित आ’ अलिखित दूनू अछि। जे लिखित अछि पढ़ल-लिखल लोक तकरा पढ़ि पढ़ि सामाजिक बोधसँ अभिभूत होइत रहलाह अछि आ’ जे लिखल नहि जा सकल, से लोक कंठहिक माध्यमे आइ धरि सुरक्षित रहि प्रेरणाक अजस्र स्रोत प्रवाहित करैत आबि रहल अछि। एहिठाम चर्चाक विषय समाजक ओहने पराक्रमी लोकक प्रेरणादायी व्यक्तित्व अछि जनिकर गौरव गाथा अलिखित रहल। एम्हर आबि किछु तँ लिपिबद्ध भेल वा भए रहल अछि। किछु काज असम्बद्ध वर्गक लोक द्वारा भेल अछि तथा शिक्षाक
विकासक उपरान्त सम्बद्ध वर्गक लोकहुक द्वारा प्रारम्भ कएल गेल अछि। ओहीमे सँ एक अछि दीनाभद्री लोकगाथा। जकर पराक्रमी नायक छथि भ्रातृद्वय दीना आ’ भद्री।डा. वीरेन्द्रनाथ झा (मैथिली लोक महाकाव्यक आलोचनात्मक अध्ययन,शोधप्रबन्ध,1987, ल.ना.मिथिला विश्वविद्यालय ,अप्रकाशित) मैथिलीक जाहि नओ गोट लोकमहाकाव्यक उल्लेख कएल अछि, ओहिमे अछि-1.दीनाभद्री,2.दुलरादयाल,3.नइका बनिजारा,4.विहुला,5.रूइया रणपाल, 6.लवहरि कुशहरि,7.लोरिक,8.विजयमल्ल एवं 9.सलहेस।
किन्तु एहिमे विजयमल्ल मैथिलीक लोकगाथा नहि थिक, ओ भोजपुरीक लोकगाथा थिक। एकर प्रकाशन जॉर्ज
अब्राहम ग्रियर्सन (जॉर्नल आफ दि एसियाटिक सोसाइटी आफ बंेगाल, 1889-ै
1889&Songs of Bijai Mal)
कएने छथि। एकरा स्पष्ट करैत डा. आशा गुप्त (जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन और बिहारी भाषा साहित्य, 1970)े लिखने छथि जे भौगोलिक दृष्टिसँ अवश्य विजै मलक कथा पटना-गयाक सीमापर स्थित दायापुर पारवती नामक स्थानसँ सम्पृक्त एवं तेली जातिमे बहुप्रचलित
कहल गेल अछि।उपर्युक्त लोकगाथा सभमे मिथिलाक विभिन्न जातिक उत्पीड़न एवं ओहि उत्पीड़नसँ त्राणकर्ताक पराक्रमक जयघोष अछि। ओ नायक सभ पराक्रमी जातीय नेताक रूपमे मान्यता पाबि स्मरणीय एवं पूज्य भए गेल छथि। ई लोकगाथा सभ कहिआसँ अस्तित्वमे अछि, एकर रचना के कएलनि, हुनक काल की थिक, से सभटा तँ अज्ञात एवं अस्पष्ट अछि, परंच एहि
लोक गाथा सभसँ ई तथ्य अवश्य फरिछाइत अछि जे समाजमे विषमता छलैक, शोषण आ’ उत्पीड़नक उजाहि निरन्तर उठैत रहैत छल। वैयक्तिक भावना एवं मानवीय मूल्यक महत्त्व छलैक। बाहुबलक समक्ष आन सभ बल महत्त्वहीन भए जाइत छल। आ’ ओही बीचसँ एक जातीय बाहुबलीक जन्म होइत छलैक जे अपन पराक्रमक बल पर जातीय अस्मिताक अनादरकार्ता एवं शोषक वर्गक विरोधमे तनि कए ठाढ़ भए जाइत छलाह।ओ सभ अपन-अपन जातिक प्रतिष्ठा आ’ जातीय व्यवस्थाके ँ अक्षुण्ण
रखबाक हेतु आजीवन सक्रिय एवं सतर्क रहैत छलाह एवं जातिक प्रतिष्ठा, उन्नति एवं अवनति आदिक सभ छारभार ओही नेता सभ पर निर्भर छलैक। एहि प्रकारक जातीय भावनाक विकास एकपक्षीय नहि छल। जातीय नेता जेना अपन जातिक हितचिन्ता सदिखन करैत रहैत छलाह, ओहिना हुनक जातिक समस्त सदस्य ओहि नेताके ँअपन उद्धारक एवं संरक्षक मानैत आदर एवं सम्मानक पद दैत रहल।हुनक शौर्य एवं पराक्रमके ँ गाबि-गाबि प्रेरणा ग्रहण करैत रहल। जे ँ कि एकर संक्रमण मौखिक होइत छलैक, जातीय नेताक गौरवगाथा, लोकगाथाक प्रतिष्ठा पाबि गेल । जेना कि लोकगाथाक विषयवस्तुसँ स्पष्ट अछि, दीनाभद्रीमे मुसहर, दुलरा दयालमे गो ँढ़ि, नइका बनिजारामे वैश्य, लोरिकमे अहीर, सलहेसमे दुसाध, बिहुलामे बनिआँ जातिक गौरव गाथा अछि। आनहु लोकगाथामे जातीय नायकेक गाथा अछि। सभ लोकगाथाक विषयवस्तु जाति आधारित अछि। मुदा लवहरि कुशहरिके ँ कोनो जातिक जातीय लोकगाथा मानब
उपयुक्त नहि होएत। तखन ई अवश्य जे मलाह जातिक कंठमे सुरक्षित लवहरि कुशहरिक रचयिता मलाह जातिक प्रतिभा सम्पन्न कोना व्यक्ति अवश्य छल होएताह। उपर जाहि लोक गाथाक नामोल्लेख कएल अछि एवं जाहि-जाहि जातिक नेताक पराक्रमक गाथा ओ सभ थिक, से जाति सभ आजुक लोकतन्त्रक शासन व्यवस्थामे दलित समाजक आख्या पाबि गेल छथि। दोसर जे बिन्दु एहि लोक गाथा सभक सन्दर्भमे महत्त्वपूर्ण अछि, से थिक दैविक शक्तिक स्थान पर लोकशक्तिक प्रतिष्ठापन। एहि लोकगाथाक नायकक प्रेम पराक्रम, एवं शौर्यक उदघोष अलौकिकताक संग भेल अछि। किछुमे देवत्वक प्रतिष्ठा सेहो भए गेल छैक। दुलरा दयालक मानसिंहक राजगद्दी प्राप्त करबाक कथा, बिहुलाक द्वारा अपन पतिके ँ जिअएबाक कथा, लोरिक द्वारा हरबा बरबाक पराजयक कथा तथा सलहेस एवं दौना मालिनक प्रेम कथामे अलौकिकताक अंश पर्याप्त अछि। देवत्व प्राप्त करबाक दृष्टिसँ सलहेस, दीनाभद्री आ’बिहुलाक गाथा विश्ेाष उल्लेखनीय अछि। दुसाध द्वारा सलहेस, मुसहर द्वारा दीनाभद्री एवं बनियाँ द्वारा बिहुला लोकगाथाक नायकके ँ देवत्व प्राप्त छनि। ध्यान देबाक थिक जे बिहुलाके ँ छोड़ि समस्त लोकगाथा नायक प्रधान अछि। केवल बिहुला लोकगाथा नायिका प्रधान छैक। एहि तीनू लोकगाथामे
सलहेस एवं दीनाभद्रीक अपेक्षा बिहुलाक क्षेत्र सीमित अछि। मुदा व्यापक क्षेत्र एवं उपलब्ध लोकगाथामे विशाल आकारक होइतो लोरिकके ँ अहीर जातिमे देवत्व प्राप्त नहि छनि। मैथिलीक एहि लोकगाथा सभमे कतेको प्रकारक साम्य भेटैत अछि। ओ साम्य सभ थिक घटना साम्य, कथानक साम्य, नाम साम्य आ’ लोक नायकक दृष्टि एवं पराक्रमकमे साम्य। कतेको लोकगाथामे सलहेस एवं बाघेसरी छथि। दूनूमे पहिने विरोध आ’ पछाति मेलसँ आततायीक विनाश होइत अछि। एकरा शैव( शैलेश) एवं शाक्त( बाघेश्वरी@सिंहवाहिनी)क मतवादीक विवाद एवं वर्चस्वक सन्दर्भमे सेहो देखल जा सकैछ। साम्यक किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि। दीनाभद्री जोरावर सिंहके ँ परास्त कए चैन होइत अछि तँ लोरिक हरबा बरबाके ँ पराजित कए। हिरया तमोलिन आ’ जिरिया लोहारिन जहिना
दीना भद्रीक परकिया नायिका थिक तहिना लोरिकमे चनैन अछि। फोटरा नामक गीदर जेना दीनाभद्रीमे अपन करामात देखबैत अछि, ओहिना नइका बनिजारामे तिलंगा बाछा। लोरिकमे जेना सनिका मनिका भागिनक मदति लेल जाइछ ओहिना सलहेसमे कारीकान्तक। अंकक समानता तँ सभ लोकगाथामे भेटत। रचनात्मक स्तर पर सुमिरन ओ बन्हन सेहो प्रायः सभ लोक गाथामे अछिए।
आखिर दीनाभद्री लोकगाथामे एहन कोन बात छैक जे एक पुश्तसँ दोसर पुश्तमे अदौकालसँ संक्रमित होइत आइ
धरि लोकक कंठमे सुरक्षित अछि। की ई आजुक राजनीतिक शब्दावलीमे एक दलित जातिक नायकक गाथा थिक, ते ँ ? की ई लोकगाथा हमरालोकनिक मातृभाषा मैथिलीमे अछि, ते ँ? की एकर संकलन एवं प्रकाशन जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन सन विश्वविश्रुत विद्वान कएलनि,ते ँ? हमरा जनैत दीनाभद्री सन लोकगाथाक महत्त्व एवं युग-युगसँ लोक कंठमे सुरक्षित रहि प्रेरणाक स्रोत बनल रहबाक मूल कारण थिक, एहि लोकगाथामे अनुस्यूत ओ जीवनमूल्य जे लोकके ँ अन्याय, अत्याचार, शोषण
आदि सामाजिक दुर्गुण एवं विकृतिसँ संघर्ष करबाक प्रेरणा दैत अछि। एहिमे अभिव्यक्त ओ जीवनमूल्य जे लोकक स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा पर आघातकर्ताक आचरणक विरुद्ध ठाढ़ होएबाक शक्ति आ’ साहसक स्रोत भरैत रहैछ । एहिमे अभिव्यक्ति हो जीवनमूल्य जे व्यक्तिगत लाभहानि, एवं सुख-सुविधाक त्याग एवं सामाजिक प्रतिष्ठा, आदर सम्मान हेतु संघर्षक लेल लोकके ँ तैआर करैत अछि। वैदिक ऋषिक वचनक अनुसार ओहि जीवन मूल्यक महत्त्व छैक जे कुलक लेल शरीर, गामक लेल कुल,
जनपदक लेल गाम एवं आत्माक लेल पृथ्वी त्याग करबाक प्रेरणा दैत हो। दीनाभद्री लोकगाथाक नायक दीनाराम आ’ भद्रीक चरित्र एहि लोकोपकारिताक एक सर्वोत्तम उदाहरण थिक। दीनाभद्री लोकगाथाक नायक द्वयक लोककामी आचरण एवं संघर्षक किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि। दीनाभद्री निर्धन अछि, भैातिक सुख-सुविधा प्राप्त नहि छैक। अपन बाहुबल पर विश्वास कएनिहार दीनाभद्रीमे स्वाभिमान कूटि-कूटि कए भरल अछि। जखन गामक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति धामी ई कहैछ जे परोपट्टाक आन-आन लोक ओकर खेतमे काज करब गछि लेलक आ’ ओहो दूनू भाइ ओकर जन भए खेतमे काज करौक तँ दीनाभद्री साहसपूर्वक एवं स्पष्टताक संग अस्वीकार करैत कहि दैत अछि-कबहु नऽ कैल खुरपी कोदारक बोनि,
कहियो नऽ जानिऔ हो धामी, पँचा उधार।ष्
हरिन सूगर मारि जोगिया कैल गुजरान। ( पृ.सं.637)
समाजमे शोषण व्याप्त छलैक। शोषक आ’ अत्याचारीक नजरिमे गरीबक मान मर्यादाक कोनो मोल नहि छल। प्रभुत्व सम्पन्न लोक ककरो घर आङनमे घूसि गरीबक बहु बेटीक मानमर्दन कए सकैत छल। प्रायः एहनहि सामाजिक स्थितिमे कहबी बनि गेल होएत, गरीबक बहु सबहक भौजी। दीनाभद्री धामीक आतंककारी व्यवहारपर आक्रोश प्रकट करैत कहैत अछि- कौन गरू परलौं हो धामी, बड़ भोरे छे ँकल दुआर
अपन बहु बेटीपु रखलन्हि घर सुताय
हमर बेटी पुतहु देखलन्हि नाँगट उघार। ( पृ.सं.636)
धामी, जे समाजक प्रभुत्वशाली वर्गक प्रतिनिधित्व करैत अछि, तकर निर्भीक विरोध समाजक एक दबल कुचल वर्गक सदस्य द्वारा होएब, एक महत्त्वपूर्ण घटना थिक एवं दीनाभद्रीक चरित्रक ई विश्ेाषता नैसर्गिक एवं प्रेरणादायी गरिमा प्राप्त कए लेलक अछि।
दीनाभद्री अपन यात्राक क्रममे ताहिर मियाँक हबेलीक पुछारी करैत अछि। ताहिर मियाँ केहन एकवाली आ’आतंकी छल,जे ओकर नामेसँ धीयापूता सेहो डराइत छलैक। ओसभ दीनाभद्री के ँ चेतबैत अछि-
रे बटोहिया, ताहिर मियाँ गामक गुमस्ता छैक, ओकर नाम
केओ ने बाट बटोही धरैत अछि। ( पृ.सं.650)
ओही ताहिर मियॉँक नोकर छी गुलामी जट। गुलामी जट अपन मालिकक सह पर समाजक निर्बल लोकके ँ
उत्पीड़ित करैत अछि। अपमानित करैत अछि। लोकके ँ अपमानित करबाक अभ्यासी गुलामी जट दीनाभद्रीक अपमान सेहो कए दैत अछि। मुदा तकर फल ओ तुरत्ते पाबि जाइत अछि। गुलामी जट दीनाभद्रीक पराक्रमक समक्ष ठठि नहि सकल, पराजित भए गेल। तेसर उदाहरण अछि जोराबर सिंह सन दुराचारी, समाज विरोधी एवं शोषकक प्रतिकार एवं अन्त करब। एहि प्रसंग
डा.जयकान्त मिश्र विस्तारसँ लिखल अछि।
(In the last chapter Gulami Jata helps them to conquer
Jorabar Singh, a Rajput, who used to enjoy all new brides first when he dares to attack the
marriage march of the spirits of Dina and bhadri (The Folk Literature of Mithila)
एहिठाम देखबाक थिक जे दीनाभद्री समाजविरोधी, अत्याचारी आ’ दुराचारीक विरोध एवं प्रतिकार कोना करैत अछि।तेसर बेर जखन फोटरा गीदर दीनारामके ँ पटकि हत्या कए दैत अछि आ’ अलक्षित रूपे ँ सलहेस भद्रीके ँगाम घूमि जएबाक परामर्श दैत छथिन्ह तँ भद्री हुनक परामर्शके ँ अस्वीकारि, कहैत अछि, जेना जेठ भाइ मुइलाह तहिना हमहु मरब। अर्थात अन्यायीक समक्ष
आत्मसमर्पण नहि करब भनहिँ प्राणक आहुति देमय पड़ैक।
मरब दूनू भाइ कटैया
जाहि मँुहेंँ धैलक फोटरा गीदर जेठ भाइ के
ताहि मुँहेँं धरौ हमरा के । ( पृ.सं.641)
इएह एकजुटता एवं भ्रातृप्रेम दीनाभद्रीके ँ समाजमे दीन दुखीजनक विरुद्ध व्याप्त शोषण, अत्याचार, दुराचारक प्रतिकारक शक्ति प्रदान करैत अछि। कहि सकैत छी दुराचारीके ँ पराजित करबाक रणनीतिक सफलताक कारण इएह भ्रातृ प्रेम आ’ एकजुटता थिक।
एकटा आओरो बिन्दु एहिठाम विचारणीय अछि। जेना नामहिसँ स्पष्ट अछि, गुलामी जट गुलाम थिक ताहिर मियाँक।
ताहिर मियाँ सेहो ककरो गोमास्ता अछि। ओ गुलामी जटके ँ पोसि रखने अछि। ताहिर मियाँ ओकर माध्यमसँ आतंकक जाल पसारि रखने अछि। किन्तु जखनहि गुलामी जटके ँज्ञात भए जाइत छैक जे दीनाभद्री ओकरहि समाजक लोक थिकैक एवं ओ दीनदुखी एवं पीड़ितक सहायता एवं रक्षा लेल अपना के ँ सदिखन तैआर रखैत अछि, तथा दलित-पीड़ित वर्गक सम्मान एवं
प्रतिष्ठाक रक्षा करब ओकर जीवनक मूल उद्देश्य थिकैक तँ गुलामी जट दीनाभद्रीक सहयोगी भए जाइत अछि एवं जोरावर सिंह सन दुराचारीक संहारमे बढ़ि चढ़ि भाग लैत अछि। मिथिलाक सांस्कृतिक उत्कर्ष एवं विशिष्टताके ँ रेखांकित करैत रमानाथ झाक कहब अछि जे मिथिला-जनपद -भाषामे संगीतक परम्परा अत्यन्त प्राचीन कालहिसँ आबि रहल अछि। मिथिला जनजीवनक एक गोट अभिन्न अंग रहल छैक ओकर संगीत। मिथिलाक संस्कृति संगीतमय अछि। ओ एही गीत सबहिक द्वारा मैथिल जातिक भावाभिव्यक्ति आदिअहिसँ होइत आएल, जहिना विद्यापतिक पश्चात तहिना ओहिसँ पूर्वहु मिथिलाक देशी साहित्य गीतमय छैक। (विविध प्रबन्ध)।
रमानाथ झा मिथिलाक समान भाषा, समान संस्कृति ओ समान भौगोलिक क्षेत्रक निवासीके ँ मैथिल जातिक संज्ञा देल अछि। जकर साहित्यक एक महत्त्वपूर्ण विशेषता छैक गीतात्मकता। ओना, प्रारम्भहिमे कहल अछि जे मैथिल जातिअहुसँ एक दलित समाजके ँ बिलगाओल गेल अछि, जे वर्तमान युगमे राजनीतिक लाभजनित ध्रुबीकरणक मैथिली साहित्यमे अनुगुंज एवं साहित्यिक राजनीतिक क्षेत्र (पेालिटिकल स्पेस) निर्धारणक प्रयास थिक तथापि ओहि लोकगाथा सभमे जे वैशिष्ठय छैक, मैथिल संस्कृतिक विशेषता तँ थिके। जेना कि नामहिसँ गाओल जएबाक स्पष्ट बोध भए जाइत छैक, मैथिलीक अन्य लोकगाथा जकाँ दीनाभद्री सेहो मैथिल संस्कृतिक अनुरूप गीतात्मक अछि, ओ मैथिल संस्कृतिके ँ प्रतिनिधित्व करैत अछि एवं मैथिल संस्कृतिक अभिन्न धरोहरि थिक।
लिखित रूपमे सुरक्षित साहित्यक पाठक शिक्षित वर्गहि टा भए सकैत अछि। एहन लोकक संख्या कम छलैक, ते
ँओसभ समाजक शेष वर्गक पाठक@श्रोतासँ अपनाके ँ कात रखबा लेल लिखित साहित्यके ँ शिष्ट साहित्यक रूपमे अभिधान कएल। शिष्टक विलोम होइत अछि, अशिष्ट। शुकुर भेल जे शिष्ट साहित्यक विलोमके ँ अशिष्ट साहित्य नहि कहि, लोक कंठमे सुरक्षित साहित्यके ँ लोक साहित्यक गरिमा प्रदान कए देलनि। स्पष्ट अछि जे शिष्ट साहित्यक सर्जक शिष्ट वर्गहिक
लोक होइत छलाह। हुनक अनुभव क्षेत्र सीमित छलनि। अपन शिष्टत्व प्रमाणित करबाक हेतु ओ सभ जाहि साहित्य सिद्धान्तक निरूपण कएलनि, ताहिमे नायकत्व लेल राजकुल सम्भूत होएब आवश्यक भए गेलैक। इएह कारण थिक जे तथाकथित .शिष्ट साहित्यक कोनो नायक तथाकथित दलित समाजसँ लेल गेल होथि, तकर उदाहरण भेटब दुर्लभ अवश्य अछि। आ’ ई परम्परा
लोकशक्तिक उदय धरि कोना मैथिली साहित्यके ँ आच्छन्न कएने रहल, तकर उदाहरण प्रो.हरिमोहन झा सदृश मैथिलीक महान साहित्यकारक विपुल साहित्य अछि। किन्तु सम्प्रति जे राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्य छैक आ’ जाहि प्रकारक चेतनाक बसात बहि रहल अछि, ओहिमे एकर महत्त्व नहि छैक जे दलित-महादलित जातिसँ भिन्न जाति-वर्गक साहित्यकार दलित-महादलित जातिक संवेदना एवं भूख, अभाव, असन्तोष आ’ पीड़ाक चित्रण कतेक प्रखरतासँ करैत छथि वा तथाकथित
उच्चवर्गक सामान्तवादी एवं शोषणोन्मुखी मनोवृत्ति पर ओ कतेक निर्मम प्रहार करैत छथि, किन्तु प्रश्न छैक आ’ वास्तविकता अछि जे दलित-महादलित समाजक लोक अपन कथा-व्यथा स्वयं कहबा लेल एवं नायक महानायक गढ़बा लेल तैआर अछि। संगहिं ओ आयोजित साहित्यिक चर्चा वा लेखनमे अपन सहभागिता सेहो सुनिश्चित करय चाहैत अछि।
(My point is that
literary theorists and cultural historians need to pay attention to the way Dalits are trying to
argue their case for writing about Dalits. In this sense, whether you have written supporting
or reforming or attacking Brahmins, dalits now want dalit characters and dalit life to be
portrayed. It does matter how secular you are, the place now has to go to dalits and just as
there must be place for dalit characters, there must also be place for dalit writers.They
would not like the upper caste writers to write about dalits and about literature today. Even if
you write a critique of upper class/caste life, dalits are not bothered about that. I think, these
questions ( like whose work should now gain a place and be discussed in public) seem to
be more the issue than which upper caste writer wrote about or for dalits.- Dalitism: A
Critique of Telugu Literature, K.Satyanarayan, Re-figuring Culture,2005, Sahitya Akademi )
ध
एहि सन्दर्भमे लोकगाथा एवं लोकगाथाक महानायक एक आदर्श रूपमे भासमान भेटैत छनि। कारण जे लोकसाहित्यक नायक वा महानायक दलित,पीड़ित एवं शोषित समाजक छथि। दलित समाजक ओहि पात्रहुमे नायक वा महानायक बनबाक लेल जे चारित्रिक गुण चाही, जे पात्रता चाही, जे शौर्य चाही, जे पराक्रम चाही, सभटा विशेषता दलित समाजक लोकहुमे वर्तमान छैक।
एकर उदाहरण थिक दीनाभद्री लोकगाथाक महानायक एवं देवत्व प्राप्त दीनाराम आ’ भद्री।दीनाभद्रीक आधार स्रोत
दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचनक सम्प्रति दू टा स्रोत सुलभ अछि। पहिल आधार स्रोत थिक जार्ज अब्राहम ग्रियर्सनक
संकलन एवं प्रकाशन।एकर प्रकाशन1885 ई.र्मे
Z.D.M.G.(Zeischrift der Deutschen Morgen lamdischen
Gescllschaft)
नामक प्रत्रिकामे ैमसमबजमक ैचमबपउमद व िजीम ठपींतप स्ंदहनंहमे.ज्ीम डंपजीपसप क्पंसमबज
रूपमे भेल अछि । ओकर बादहि मैथिलीक एहि लोक गाथाक परिचय अक्षर जगतके ँ भेलैक एवं दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचनक मार्ग प्रशस्त भेल। राष्ट्रीय वा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जतय कतहु दीनाभद्रीक अध्ययन विवेचन भेल अछि तकर आधारभूत सामग्री ग्रियर्सन संकलित इएह पाठ थिक। एहिमे डा.जयकान्त मिश्र
(Folk Literature of Mithila,1951)
डा. आशा गुप्त (जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन और बिहारी भाषा साहित्य, 1970)ेक अध्ययन सेहो अछि। एहि विषय पर राजेश्वर झा (मिथिला मिहिर, 22. सितम्बर, 1974) डा. विश्वेश्वर मिश्र,डा. वीरेन्द्रनाथ झा (मैथिली लोक महाकाव्यक आलोचनात्मक अध्ययन, शोध प्रबन्ध,1987,ल.ना.मिथिला वि.वि.), डा. रामदेव झा ( मैथिली लोक साहित्यः स्वरूप ओ सौन्दर्य, 2002 ), डा.योगानन्द झा (लोक साहित्य ओ शब्द सम्पदा, 2007) आदि सेहो छिटफुट लिखल अछि। मुदा ओ सभ अपन लेखनक आधार स्रोत व्यक्तिगत संकलन कहैत छथि जे अद्यावधि गुरुमन्त्र जकाँ गुप्त अछि। एहि बिन्दु पर सभ केओ मौन छथि जे जार्ज ग्रियर्सनक पाठ आ’ हुनक संकलित पाठमे की अन्तर छैक। एम्हर महेन्द्रनारायण राम एवं फूलो पासवानक संयुक्त सम्पादनमे साहित्य अकादमीसँ ‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य (2007) प्रकाशित भेल अछि। सम्पादकद्वय आँखि मूनि लिखि देलनि अछि-दीनाभद्री लोक गाथा पर बहुत गोटे विद्वान काज केलनि अछि, मुदा आइ धरि एकर मूल गाथा संग्रह नहि प्रकाशित भए सकल अछि।’ परंच ई कथन इतिहास सम्मत नहि अछि। ग्रियर्सनक अवदानके ँ बिसरि गेलाह अछि। जार्ज ग्रियर्सनक अवदानके ँ रेखांकित करैत प्रोराध्
ााकृष्ण चैधरी लिखने छथि-
NfFk&Dr.Grierson was the pioneer in bringing to light the folk literature of
Mithila through his publications, viz. Bihar Peasant Life, Maithili Chrestomathy. Dinabhadrik
Gita and Nebarak Gita etc.-(A Study of the Maithili Folk Literature
पूर्वांचलीय लोक साहित्य,पृ.131,
चेतना समिति,1973)
ग्रियर्सनक गीत दीनाभद्री एवं दीनाभद्री लोक गाथा साहित्यमे अनेकहु बिन्दु पर अन्तर अछि। दूनूक विषय वस्तुमे अन्तर अछि, गाथा संयोजनमे अन्तर अछि, प्रयुक्त शब्दावलीमे अन्तर अछि तथा पात्रक काज आ’ प्रभावमे अन्तर अछि। जे ँ कि दूनू गोटेक स्रोत कथावाचक छथिन्ह एवं दूनूक कथावाचकमे कमसँ कम सवा सए वर्षक जेठाए-छोटाए छैक, अपन संकलनक प्रसंग गियर्सन लिखने छथि- ;
( The following two songs are published exactly as they were taken
down from the mouths of two itinerant singers in the Nepal Tarai about six years ago.They
are very popular throughout nothern Mithila and are excellent examples of the spoken
dialect of that portion of the country.-Selected Specimen of the Bihari Language, ZDMG.
Vol. 39, page No. 617,1885)
अतएव ई अन्तर अस्वाभाविक नहि कहल जा सकैछ। कारण जे लोचकता लोकगाथाक विशेषता थिकैक। जा धरि ओ लोक कंठमे रहैत अछि, वाचकक पात्रता, स्थान, काल एवं प्रस्तुतिक ढ़ंग एवं श्रोता समुदायके ँ बान्हि रखबाक हेतु ओहिमे किछु किछु परिवर्तन होइत रहैत छैक। आ’ जँ संयोगवश कोनो लोकगाथामे लोचकता
समाप्त भए जाइत छैक, आन्तरिक क्षमता नहि रहैत छैक तँ कालक्रमे ओहि लोकगाथाक प्रासंगिकता समाप्त भए जाइत अछि।
(They (oral tales) change their contours so much that their social relevance is ever alive. If
the grid of an oral tale does not have the capacity to sustain or imbide the new, then it
meets its death without leaving any trace--Tales : Oral Tales, Komal Kothari, Narrative : A
Seminar, Sahitya Akademi,1990)
कृतिक समीक्षा लिखित पाठक आधार पर होइत अछि एवं आबयबाला समयमे ओ विवेचनक सामग्री बनैत रहैत अछि। अतएव, प्रकाशनसँ पहिने आवश्यक छलैक जे पूर्व प्रकाशित पाठक संग मिलान कए पाठ वा अन्ये प्रकारक जे कोनो अन्तर छैक, तकरा दर्शबैत सम्पादक अपन बात कहितथि। से नहि भेल अछि। एकर अभावमे
‘दीनाभद्री लोकगाथा साहित्य’ एक महत्त्वपूर्ण आधार-स्रोत होएबासँ रहि गेल अछि। एहिठाम जार्ज ग्रियर्सनक ‘गीत दीनाभद्री’
(Selected Specimen of the Bihari Language)
‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे भेटल किछु अन्तरक दिश सुधी पाठकक ध्यान आकृष्ट करए चाहब। ‘गीत दीनाभद्री’मे सात टा अध्याय अछि एवं ‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे तेरह टा अध्याय अछि। ‘गीत दीनाभद्री’मे फोटरा गीदरक हाथे ँ दीनाभद्री मारल जाइत छथि तँ दोसरमे बाघेसरी मारैत छथिन्ह। ‘गीत दीनाभद्री’मे बगहाक ताहिर मियाँक कथा अछि। गुलामी जट ताहिर मियाँक लोक अछि। अपमानित भेला पर फोटरा गीदरक रूप धारण कए के ँ दीनाभद्री गुलामी जटके ँ परास्त
करैत छथि। गुलामी जट जखन दीनाभद्रीके ँचिन्हि जाइत अछि, क्षमाप्रार्थी होइत अछि एवं प्रयोजन भेला पर सहयोगक वचन दीनाभद्रीके ँ दैत छनि। लिखल अछि-
‘छरपिकै ँ फोटरा गीदर गुलामी जट कै धैलक
चटि धैलक पटि दे मारलक, बान्हलक पछुआड़ि धै कै
गोड़ लगैत छी, पै ँयाँ परैत छी, एहि नहि ँ जनली अहाँ भद्री छी।’( पृ.सं.651)
‘दीनाभद्री लोक गाथा साहित्य’मे गुलामी जट मक्का मदीनाक वासी थिक एवं दीनाभद्री मकेश्वरनाथक पूजा अर्चना
करैत छथि। एकर अतिरिक्त हिन्दू एवं इस्लाम धर्मक चर्चा सेहो होइत अछि। पहिल संकलनमे दीनाभद्रीके ँ सलहेसक सहायता प्राप्त होइत छनि तँ दोसरमे योगमल किरातीके ँ ओ सहायता लेल आह्वान करैत छथि। पहिल संकलनमे दीनाभद्रीक परकिया नायिका हिरिया तमोलिन एवं जिरिया लोहारिन दोसर संकलनमे नहि अछि। ग्रियर्सनक संकलनक अन्त जोरावर सिंहक मृत्युक संग होइत अछि तँ दोसरमे दीनाभद्री स्वयं घूमि घूमि अपन पराक्रमक प्रसंग लोकसँ जिज्ञासा करैत छथि एवं गहवर बना कए पूजा करबाक आदेश दैत छथिन्ह। ओ इहो आदेश दैत छथिन्ह जे गहवरमे हुनक एक कात बाघेसरी आ’ दोसर कात योगमल किरातक स्थापना कए पूजा कएल जाए। पहिलमे महफा पर जाइत हिरिया तमोलिन एवं जिरिया
लोहारिनक डोलीके ँ जोरावर सिंह छेकि लैत अछि तँ गुलामी जट एवं जोरावर सिंहक बीच कुश्ती होइत अछि। दीनाभद्रीक कहला पर ओ जोरावर सिंहके ँ पटकि दैत छथि आ’ जोरावर सिंह मारल जाइत अछि-
जोरावर सिङ्घ देलक गुलामी जट के उनटाय
नहि खलिफा एक बेरि ठाढ़ भै के कुस्ती लिअऽ।
जोरावर सिङ्घ के गुलामी जट मारलक बाँसक ओधि लगाय।
चटि दै भद्री देलक बान्हि कनौली गरद उठि गेल।
कनौली मे ँ जोरावर सिङ्घ राजपूत मारल गेल, दीनाभद्री बैरी भेल
कनौली मे ँ जोरावर सिङ्घ राजपूत मारल गेल दीनाभद्री सौ ँ। पृ..653
मुदा दोसरमे कहलो पर दीनाभद्री जोरावर सिंहक अखारा लगसँ नहि हटैत छथि तँ मल्लयुद्ध होइत अछि।
दीनाभद्रीक आह्वान पर हुनक कायामे योगमल किराती प्रवेश कए जाइत छथिन्ह तँ ओ जोरावर सिंहके ँ पटकि हत्या
करबामे समर्थ होइत छथि। आश्चर्यक गप्प जे ‘दीनाभद्री लोकगाथा साहित्य’मे दीनाभद्री के ँ अङरेजी भाषाक ज्ञान सेहो छनि।
भद्री कहैत अछि-भैया से हम आर्डर नेने रहीतियै तऽ एकरा मारि के हम सारा बना दीतीये (76)
डा.योगानन्द झाक निबन्धमे मगहक हंसराज एवं वंशराजक उल्लेख अछि। दीनाभद्री ओहि दूनू के ँमल्लयुद्धमे
पराजित करैत छथि। अन्तमे दूनू भाइ जगन्नाथपुरी जाइत छथि। जगन्नाथजीक कृपासँ प्रेत योनिसँ मुक्त भए तिरहुत घूमि अबैत छथि, जतय भुइयाँ बाबाक रूपमे हुनक पूजा होअए लगैत अछि।पाठभेद सम्बन्धी एहि विवृत्तिक तात्पर्य जे दीनाभद्रीक अध्ययन कोन पाठक आधार लोक करए। ककरा दीनाभद्री लोकगाथाक प्रमाणिक पाठ मानल जाए। एक संकलनकर्ता दोसर संकलनकर्ताक काजके ँ मोजर देनिहार नहि, सभ केओ सभटा श्रेय स्वयं हपसि लेअय चाहैत छथि। ओ ई जनबय चाहैत छथि जे एहिसँ पहिने ककरो किछु ज्ञात नहि छलैक, सभटा हमही धरतीके ँ खोधि बाहर आनल अछि। ई साहित्यिक अराजकाता थिकैक। एहि अराजकताक दू टा कारण अछि-सम्पूर्ण
श्रेय स्वयं लेबाक आतुरता तथा सम्पादक वा लेखकक अल्पज्ञता। दूनू स्थिति भाषा साहित्यक स्वस्थ विवेचन लेल बाधके अछि। ओहुना विद्वत्जन एहि बात पर एकमत होएताह जे सुनि उतारि लेब, गीत गायब एवं सम्पादन करब, एक नहि, दू प्रकारक प्रतिभाक अपेक्षा रखैत अछि। दीनाभद्री सन महत्त्वपूर्ण लोकगाथाक सम्यक अध्ययन-विवेचन लेल सर्वथा आवश्यक अछि जे उपलब्ध विभिन्न पाठ एवं पूर्व प्रकाशित पाठक आधार पर एक प्रामाणिक पाठ तैआर कएल जाए एवं संकलनकर्ताके ँ
ई छूट नहि भेटनि जे अपन अल्पज्ञता एवं पूर्वाग्रहक कारणे ँ मैथिलीक सांस्कृतिक सम्पदा पर आघात करथि।
अन्तमे हम लक्ष्मीपति सिंहक (मिथिलाक लोक संस्कृति एवं लोकजीवन, चेतना समिति, स्मारिका,1973 ई.) क मन्तव्य उधृत करए चाहब-‘कहि नहि, एहन एहन कतेको संग्रह कतेको ठाम ‘अग्नये स्वाहा’ तथा ‘कीटाय स्वाहा’ भए गेल होएत, वा भए रहल होएत। अस्तु, एहि सम्बन्धमे क्रियाशील मैथिली संस्था सभसँ हमर इएह अनुरोध जे सूठी कुमर, शशिया, बिहुला,
कमला, जट जटिन, दीनाभद्री, विषहरा, आदिक सम्बन्घमे मिथिलाक बहुमुखी लोकसाहित्यक संकलन एवं प्रकाशन कार्यमे सक्रिय भए जाए। हमरा जनैत,जखन मैथिल मात्रके ँ अपन प्राचीन लोक जीवन पद्धतिक ज्ञान भए जएतन्हि, आओर ई विश्वास भए जएतन्हि कि धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक समन्वय एवं सामुदायिक उत्तरदायित्वक प्रसादात एक समय मिथिला कतेक
भरल पुरल छल तँ अगत्या वर्णद्वेष, धार्मिक कटुता तथा राजनीतिक छल-छद्मसँ मिथिलाक पिण्ड स्वतः छुटि जाए सकैछ।
२.सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा : मैथिली अनुवाद रमानन्द झा 'रमण' : भाषा सम्पादन गोविन्द झा
सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा
UNIVERSAL DECLARATION OF HUMAN RIGHTS
MAITHILI TRANSLATION
(राष्ट्रसंघक साधारण सभा 10 दिसम्बर, 1948 के ँ एक सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा स्वीकृत आ‘
उद्घोषित कएलक जकर पूर्णपाठ आगाँ देल गेल अछि। एहि ऐतिहासिक घोषणाक उपरान्त साधारण
सभा समस्त सदस्य देशसँ अनुरोध कएलक जे ओ एहि घोषणाक प्रचार करए तथा मुख्यतः, अपन देश
आ‘ प्रदेशक राजनैतिक स्थितिक अनुरूप बिनु भेदभावक, स्कूल आ‘ अन्य शिक्षण संस्था सभमे एकर
प्रदर्शन, पठन-पाठन आ‘ अनुबोधनक व्यवस्था करए।)
एहि घोषणाक आधिकारिक पाठ राष्ट्रसंघक पाँच भाषामे उपलब्ध अछि-अंग्रेजी, चीनी, फ्रांसीसी, रूसी आ,
स्पेनिश। एहिठाम एहि घोषणाक मैथिली रूपान्तरण प्रस्तुत अछि।)
उद्देश्यिका
जे ँ कि मानव परिवारक सकल सदस्यक जन्मजात गरिमा आओर समान एवं अविच्छेद्य अधिकारके ँ
स्वीकृति देब स्वतन्त्रता, न्याय आ‘ विश्वशान्तिक मूलाधार थिक,
जे ँ कि मानवाधिकारक अवहेलना आ‘ अवमाननाक परिणाम होइछ एहन नृशंस आचरण जाहिसँ मानवक
अन्तःकरण मर्माहत होइत अछि आओर अवरुद्ध होइत अछि एक एहन विश्वक अवतरण जाहिमे
अभिव्यक्ति आ‘ विश्वासक स्वतन्त्रता तथा भय आ‘ अकिंचनतासँ मुक्ति जनसामान्यक सर्वोच्च आकंाक्षा
घोषित हो;
जे ँ कि विधिसम्मत शासन द्वारा मानवाधिकारक रक्षा एहि हेतु परमावश्यक अछि जे केओ व्यक्ति
अत्याचार आ‘ दमनसँ बँचबाक कोनो आन उपाय नहि पाबि, शासनक विरुद्ध बागी नहि भए जाए;
जे ँ कि राष्ट्रसभक बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बढ़ाएब परमावश्यक अछि;
जे ँ कि राष्ट्रसंघक लोक अपन चार्टर मध्य मौलिक मानवाधिकारमे, मानवक गरिमा आ‘ मूल्यमे तथा स्त्री
आ‘ पुरुषक बीच समान अधिकारमे अपन निष्ठा पुनः परिपुष्ट कएलक अछि आओर व्यापक स्वतन्त्रताक
संग सामाजिक प्रगति आ‘ जीवन स्तरक समुन्नयन हेतु कृत संकल्पित अछि;
जे ँ कि सदस्य राष्ट्रसभ राष्ट्रसंघक सहयोगसँ मानवाधिकार आ‘ मौलिक स्वतन्त्रताक सार्वभौम आदर
तथा अनुपालन करबाक हेतु प्रतिबद्ध अछि;
जे ँ कि एहि प्रतिबद्धताक पूर्ति हेतु उक्त अधिकार आ स्वतन्त्रताक सामान्य बोध परम महत्त्वपूर्ण अछि,
ते ँ आब,
साधारण सभा
निम्नलिखित सार्वभौम मानवाधिकार घोषणाके ँ सभ जनता आ‘ सभ राष्ट्रक हेतु उपलब्धिक सामान्य
मानदण्डक रूपमे, एहि उद्देश्यसँ उद्घोषित करैत अछि जे प्रत्येक व्यक्ति आ‘ प्रत्येक सामाजिक एकक
एहि घोषणाके ँ निरन्तर ध्यानमे रखैत शिक्षा आ‘ उपदेश द्वारा एहि अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक प्रति
सम्मान भावना जगाबए तथा उत्तरोत्तर एहन उपाय-राष्ट्रीय आ अन्तरराष्ट्रीय-करए जाहिसँ सदस्य
राष्ट्रसभक लोक बीच तथा अपन अधीनस्थ अधिक्षेत्रहुक लोक बीच एहि अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताके ँ
सार्वभौम आ‘ प्रभावकारी स्वीकृति प्राप्त भए सकैक। ष्
अनुच्छेद 1
सभ मानव जन्मतः स्वतन्त्र अछि तथा गरिमा आ‘ अधिकारमे समान अछि। सभके ँ अपन-अपन बुद्धि आ‘
विवेक छैक आओर सभके ँ एक दोसराक प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार करबाक चाही।
अनुच्छेद 2
प्रत्येक व्यक्ति एहि घोषणामे निहित सभ अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक हकदार थिक आओर एहिमे नस्ल,
लिंग, भाषा, धर्म, राजनैतिक वा अन्य मत, राष्ट्रीय वा सामाजिक उद्भव, सम्पत्ति, जन्म अथवा अन्य
स्थितिक आधार पर कोनहु प्रकारक भेदभाव नहि कएल जाएत। आओर ओ व्यक्ति जाहि देशक थिक
तकर राजनैतिक अधिकारितामूलक वा अन्तरराष्ट्रीय आस्थितिक आधार पर कोनो भेदभाव नहि कएल
जाएत-भनहि ओ देश स्वाधीन हो, ट्रस्ट हो, परशासित हो वा सम्प्रभुताक कोनो अन्य परिसीमाक अधीन
हो।
अनुच्छेद 3
सभके ँ जीवन-धारण, स्वातन्त्र्य आ‘ व्यक्तिगत ़सुरक्षाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 4
केओ व्यक्ति दासता वा बेगारीमे नहि रहत आओर सभ प्रकारक दासप्रथा आ‘ दासक खरीद-बिकरी
वर्जित होएत।
अनुच्छेद 5
ककरहु क्रूर, अमानुषिक वा अपमानजनक दण्ड नहि देल जाएत आ‘ ककरोसँ एहन व्यवहार नहि कएल
जाएत।
अनुच्छेद 6
प्रत्येक व्यक्तिके ँ सभठाम कानूनक समक्ष एक मानव रूपमे अपन मान्यताक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 7
सभ केओ कानूनक समक्ष समान अछि आ‘ बिना कोनो भेदभावक कानूनक संरक्षणक हकदार अछि।
अनुच्छेद 8
सभके ँ एहन कार्यक विरुद्ध जे संविधान वा विधि द्वारा प्रदत्त ओकर मौलिक अधिकारक हनन करैत हो
सक्षम राष्ट्रीय न्यायालयसँ उचित उपचार (न्याय) पएबाक हक छैक।
अनुच्छेद 9
केओ स्वेच्छासँ ककरो गिरफ्तार, नजरबन्द वा देश निर्वासित नहि करत ।
अनुच्छेद 10
सभ व्यक्तिके ँ अपन अधिकार आ‘ दायित्वक अवधारणार्थ तथा अपना पर लगाओल गेल कोनो
आपराधिक आरोपक अवधारणार्थ कोनो स्वतन्त्र आ‘ निष्पक्ष न्यायालय द्वारा पूर्ण समानताक संग उचित
आ‘ सार्वजनिक विचारणक हक छैक।
अनुच्छेद 11
1. दण्डनीय अपराधक आरोपी प्रत्येक व्यक्ति ताधरि निर्दोष मानल जएबाक हकदार अछि जाधरि
कोनो सार्वजनिक विचारणमे, जाहिमे ओकरा अपन समुचित सफाइ देबाक सभ गारंटी प्राप्त
होइक, विधिवत् दोषी सिद्ध नहि कए देल जाए।
2. जँ केओ व्यक्ति एहन कोनो दण्डनीय कार्य वा लोप करए जे घटनाक कालमे प्रचलित कोनो
राष्ट्रीय वा अन्तरराष्ट्रीय कानूनक दृष्टिमे दण्डनीय अपराध नहि थिक तँ ओ व्यक्ति एहि हेतु
दण्डनीय अपराधक दोषी नहि मानल जाएत।
अनुच्छेद 12
केओ व्यक्ति कोनो आन व्यक्तिक एकान्तता, परिवार, निवास वा संलाप (पत्राचारादि) मे स्वेच्छया हस्तक्षेप
नहि करत आ‘ ने ओकर प्रतिष्ठा आ‘ ख्याति पर प्रहार करत। प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन हस्तक्षेप वा
प्रहारसँ कानूनी रक्षा पएबाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 13
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन राष्ट्रक सीमाक भीतर भ्रमण आ‘ निवास करबाक स्वतन्त्रता छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन देश वा आनो कोनो देश त्यागबाक आ‘ अपना देश घूरि अएबाक
अधिकार छैक।
अनुच्छेद 14
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ उत्पीड़नसँ बँचवाक हेतु दोसर देशमे शरण मङबाक अधिकार छैक।
2. एहि अधिकारक उपयोग ओहि स्थितिमे नहि कएल जाए सकत जखन ओ उत्पीड़न वस्तुतः
अराजनैतिक अपराधक कारणे ँ भेल हो अथवा राष्ट्रसंधक उद्देश्य आ‘ सिद्धान्तक विरुद्ध कोनो
काज करबाक कारणे ँ े।
अनुच्छेद 15
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ राष्ट्रीयताक अधिकार छैक।
2. कोनो व्यक्तिके ँ राष्ट्रीयताक अधिकारसँ अथवा राष्ट्रीयता -परिवर्तनक अधिकारसँ अकारण
वंचित नहि कएल जा सकत।
अनुच्छेद 16
1. सभ वयस्क स्त्री आ‘ पुरुषके ँ नस्ल, राष्ट्रीयता वा सम्प्रदायमूलक केानो प्रतिबन्धक बिना, विवाह
करबाक आ‘‘ परिवार बनएबाक अधिकार छैक। स्त्री आ पुरुष दूनूके ँ विवाह, दाम्पत्य-जीवन
तथा विवाह-विच्छेदक समान अधिकार छैक।
2. विवाह, तखनहि होएत जखन इच्छुक पति आ‘पत्नीक स्वच्छन्न आ पूर्ण‘ सहमति हो।
3. परिवार समाजक एक सहज आ‘ मौलिक एकक थिक आओर एकरा समाजक आ‘ राज्यक
संरक्षण पएबाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 17
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ एकसरे आ‘ दोसराक संग मिलि सम्पत्ति रखबाक अधिकार छैक।
2. केओ स्वेच्छया ककरहु सम्पत्तिसँ वंचित नहि करत।
अनुच्छेद 18
प्रत्येक व्यक्तिके ँ विचार, विवेक आ धर्म रखबाक अधिकार छैक। एहि अधिकारमे समाविष्ट अछि धर्म आ
विश्वासक परिर्वतनक स्वतन्त्रता, एकसर वा दोसराक संग मिलि प्रकटतः वा एकान्तमे शिक्षण, अभ्यास,
प्रार्थना आ अनुष्ठानक स्वतन्त्रता।
अनुच्छेद 19
प्रत्येक व्यक्तिके ँ अभिमत एवं अभिव्यक्तिक स्वतन्त्रताक अधिकार छैक, जाहिमे समाविष्ट अछि बिना
हस्तक्षेपक अभिमत धारण करब, जाहि कोनहु क्षेत्रसँ कोनहु माध्यमे ँ सूचना आ‘ विचारक याचना, आदान
प्रदान करब।
अनुच्छेद 20
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँशान्तिपूर्ण सम्मिलन आ संगठनक स्वतन्त्रताक अधिकार छैक।
2. कोनहु व्यक्तिके ँ संगठन विशेषसँ सम्बद्ध होएबाक लेल विवश नहि कएल जाए सकैछ।
अनुच्छेद 21
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन देशक शासनमे प्रत्यक्षतः भाग लेबाक अथवा स्वतन्त्र रूपे ँ निर्वाचित
अपन प्रतिनिधि द्वारा भाग लेबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपना देशक लोक-सेवामे समान अवसर पएबाक अधिकार छैक।
3. जनताक इच्छा शासकीय प्राधिकारक आधार होएत। ई इच्छा आवधिक आ‘ निर्बाध निर्वाचनमे
व्यक्त कएल जाएत आओर ई निर्वाचन सार्वभौम एवं समान मताधिकार द्वारा गुप्त मतदानसँ
होएत अथवा समतुल्य मुक्त मतदान प्रक्रियासँ।
अनुच्छेद 22
प्रत्येक व्यक्तिके ँ समाजक एक सदस्यक रूपमे सामाजिक सुरक्षाक अधिकार छैक आओर प्रत्येक
व्यक्तिके ँ अपन गरिमा आ‘ व्यक्तित्वक निर्बाध विकासक हेतु अनिवार्य आर्थिक, सामाजिक आ‘
सांस्कृतिक अधिकार-राष्ट्रीय प्रयास आओर अन्तरराष्ट्रीय सहयोगसँ तथा प्रत्येक राज्यक संघठन आ‘
संसाधनक अनुरूप-प्राप्त करबाक हक छैक।
अनुच्छेद 23
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ काज करबाक, निर्बाध इच्छाक अनुरूप नियोजन चुनबाक, कार्यक उचित आ‘
अनुकूल स्थिति प्राप्त करबाक आ‘ बेकारीसँ बँचबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ समान काजक लेल बिना भेदभावक समान पारिश्रमिक पएबाक अधिकार छैक।
3. काजमे लगाओल गेल प्रत्येक व्यक्तिके ँ उचित आ‘ अनुरूप पारिश्रमिक ततबा पएबाक अधिकार
छैक जतबासँ ओ अपन आ‘ अपन परिवारक मानवोचित भरण-पोषण कए सकए आओर प्रयोजन
पड़ला पर तकर अनुपूरण अन्य प्रकारक सामाजिक संरक्षणसँ भए सकैक।
4. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन हितक रक्षाक हेतु मजदूरसंघ बनएबाक आ‘ ओहिमे भाग लेबाक अधिकार
छैक।
अनुच्छेद 24
प्रत्येक व्यक्तिके ँ विश्राम आ‘ अवकाशक अधिकार छैक जकर अन्तर्गत अछि कार्य-कालक उचित सीमा
आ समय-समय पर वेतन सहित छुट्टी।
अनुच्छेद 25
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन जीवन-स्तर प्राप्त करबाक अधिकार छैक जे ओकर अपन आ‘ अपना
परिवारक स्वास्थ्य एवं कल्याण हेतु पर्याप्त हो। एहिमे समाविष्ट अछि भोजन, वस्त्र, आवास आ
चिकित्सा तथा आवश्यक सामाजिक सेवाक अधिकार आओर जँ अपरिहार्य कारणवश बेकारी,
बीमारी, अपंगता, वैधव्य, वृद्धावस्था अथवा अन्य प्रकारक दुरस्था उपस्थित हो तँ, ओहिसँ सुरक्षाक
अधिकार ।
2. परसौती आ‘ चिल्हकाके ँ विशेष परिचर्या आ सहायताक अधिकार छैक। प्रत्येक बच्चाके ँ, चाहे
ओ विवाहावधिमे जनमल हो वा ताहिसँ बाहर, समान सामाजिक संरक्षणक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 26
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ शिक्षा प्राप्तिक अधिकार छैक। शिक्षा कमसँ कम आरम्भिक आ‘ मौलिक
अवस्थामे निःशुल्क होएत। आरम्भिक शिक्षा अनिवार्य होएत। तकनीकी आ व्यावसायिक शिक्षा
सामान्यतया उपलभ्य होएत तथा उच्चतर शिक्षा सेहो सभके ँ योग्यताक आधार पर भेटतैक।
2. शिक्षाक लक्ष्य होएत मानव व्यक्तित्वक पूर्ण विकास आओर मानवाधिकार आ‘ मौलिक स्वतन्त्रताक
प्रति आदरभाव बढ़ाएब। शिक्षा राष्ट्रसभक बीच तथा जातीय वा धार्मिक समुदायसभक बीच
पारस्परिक सद्भावना, सहिष्णुता आ‘ मैत्री बढ़ाओत तथा शान्तिक हेतु राष्ट्रसंधक प्रयासके ँ गति
देत।
3. माता पिताके ँ ई चुनबाक तार्किक अधिकार छैक जे ओकर सन्तानके ँ कोन प्रकारक शिक्षा देल
जाए।
अनुच्छेद 27
1. प्रत्येक व्यक्तिके ँ समाजक सांस्कृतिक जीवनमे अबाध रूपे ँ भाग लेबाक, कलाक आनन्द लेबाक
तथा वैज्ञानिक विकासमे आ‘ तकर लाभमे अंश पएबाक अधिकार छैक।
2. प्रत्येक व्यक्तिके ँ अपन सृजित कोनहु वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलात्मक कृतिसँ उत्पन्न,
भावनात्मक वा भौतिक हितक रक्षाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद 28
प्रत्येक व्यक्तिके ँ एहन सामाजिक आ अन्तरराष्ट्रीय आस्पद प्राप्त करबाक अधिकार छैक जाहिसँ
एहि घोषणामे उल्लिखित अधिकार आ‘ स्वतन्त्रता प्राप्त कएल जाए सकए।
अनुच्छेद 29
1. प्रत्येक व्यक्ति ओहि समुदायक प्रति कत्र्तव्यबद्ध अछि जाहिमे रहिए कए ओ अपन व्यक्तित्वक
अबाध आ‘ पूर्ण विकास कए सकैत अछि।
2. प्रत्येक व्यक्ति अपन अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक उपयोग ओहि सीमाक अभ्यन्तरे करत जकर
अवधारण दोसराक अधिकार आ‘ स्वतन्त्रताक आदर आ‘ समुचित स्वीकृतिके ँ सुनिश्चित करबाक
उद्देश्यसँ तथा नैतिकता, विधिव्यवस्था आ जनतान्त्रिक समाजमे सामान्य जनकल्याणक अपेक्षाक
पूर्तिक उद्देश्यसँ कानून द्वारा कएल जाएत।
3. एहि स्वतन्त्रता आ‘ अधिकारक प्रयोग कोनहु दशामे राष्ट्रसंधक सिद्धान्त आ‘ उद्देश्यक प्रतिकूल
नहि कएल जाएत।
अनुच्छेद 30
एहि घोषणामे उल्लिखित कोनो बातक निर्वचन तेना नहि कएल जाए जाहिसँ ई घ्वनित हो जे कोनो
राज्यके ँ वा जनगणके ँ एहन गतिविधिमे संलग्न होएबाक वा कोनो एहन काज करबाक अधिकार
छैक जकर लक्ष्य एहि घोषणाक अन्तर्गत कोनो अधिकार वा स्वतन्त्रताके ँ बाधित करब हो।