साकेतानन्द


साकेतानन्द (1940-2011 )

वरिष्ठ कथाकार, गणनायक (कथा-संग्रह) लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित। प्रकाशित कृति: मैथिली कथा साहित्यमे 1962 स’ सक्रिय । गोडेक चालिस_पचास टा कथा, रिपोर्ताज. संस्मरण, यात्रा_विवरण मैथिलीमे प्रकाशित अधिकांश पत्र_पत्रिकामे छपल । पहिल मैथिली कथा “ग्लेसियर” 1962मे ‘मिथिलामिहिर’मे प्रकाशित । हिन्दियोमे दू दर्जन कथा आदि प्रकाशित । सन 99मे छपल पहिल कथा_संग्रह “गणनायक’ के ओही वर्ष ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार। पैघ बान्ध’ स’ अबैबला विपत्तिके रेखांकित करैत, पर्यावरण के कथा वस्तु बना क’ राजकमल प्रकाशन स’ प्रकाशित एवं अत्यंत चर्चित उपन्यास (‘डौकूमेंट्री फिक्शन’) “सर्वस्वांत” ।आकाशवाणीक राष्ट्रीय कार्यक्रममे प्रसारित दू टा उल्लेखनीय वृत्त रूपक_ ‘महानन्दा अभयारण्य’ पर आधारित “जंगल बोलता है” एवं झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रक ज्वलंत डाइनक समस्या पर आधारित वृत्तरूपक “ नैना जोगन “ चर्चित एवं प्रसिद्ध ।


कथा:१.कालरात्रिश्च दारुणा २.कृतं न् मन्ये ३.गणनायक ४.आछे दिन पाछे गए


१.कालरात्रिश्च दारुणा



“ की कहैत रही..? छोडू घरक माया_मोह...भागि चलू...?” हुनकर स्वर मे प्राण_भय भरल रहनि. ”ओह, तखनि तक तक त’ बौअनिक ट्रैक्टरो चलिते रहै...जरलाहा के अक्किल पर पाथर पडि गेल रहय...” ओ सिसक’ लागल रहथि. ”आब पछताइये क’ की हैत..? हे एना कानू नंई ! मोन आर घबडा जाइ छै.”
“ कानू नंइ त’ की करू यौ ? घर देने धार बहैयै...अहां कहै छी कानू नंहि ?” बंटू झाक हाथ मे एकटा हरवाही पैना रहनि. दू टा जोडल चौंकी, जाहि पर दुनू गोटे बैसल छला, तै पर स’ हाथ लटका क’ पैना पानि मे देलखिन ! कत्तौ नंहि ठेकलनि. ” सांझ स’ डेढ फीट बढि गेलै! निचला चौंकी बुझू डूबि गेल !” ” दैब हौ दैब ! आब हम कोन उपाय करबै ?” ओ विलाप कर’ लगै छथि. घौना करैत बांधक ठीकेदार, इंजीनियर के सराप’ लगै छथिन. बंटूझा नंहि रोकै छथिन. रोकैक आब एकदम इच्छा नंहि छनि.हुनकर पत्नी; बरसाम बालीक घौना आ अई कोठली, ओई कोठली देने बहैत कोसीक कलकल, एकटा अद्भुत स्वर_ श्रृष्टि क’ रहल छलै. जं’ जं’ सांझ गहराय लागल छलै___तौं_तौं कोसीक हाहाकार बढ’ लागल छलै. एत्ते तक जे बगल मे बैसल पत्नी स’ आब चिकडि क़’ गप्प’ कर’ पडै छलनि. ओ कानिये रहल छली__ ” कत्त’ पडेलें रे ठीकेदरबा सब ? कत्त’ छ’ हौ सरकार साहेब ? बान्ह तोडबाक छलौ त’ कहितें ने रे डकूबा सब...पडा क’ चल जैतौं डिल्ली ! अपन बौआ लग चल जैतौं...कहिते किने रे ... आब के बचेलकै हमरा सब के रौ दैब ?” ओ बच्चा सब जेकां भोकाडि पाडि क’ कान’ लागल रहथि. “ आइ तेसर राति छियै... आब की हेतै रौ दैब !” ” हे, कहने रही ने, कनै छी त’ मोन सुन्न भ’ जाइये.” ” कियैक ने भागि क’ वीरपुर चल गेलौं, किछु छियै त’ शहर छियै; ओइ ठाम स’ कत्तौ भागि सकै छलौं...माथपर कोन गिरगिटिया सवार भ’ गेल रहय यौ...गाम स’ कैक बेर ट्रैक्टर गेलै.” हुनका ई नहि बूझल छलनि जे वीरपुर आब वैह रहलै ? ओ आब सुन्न, मसान, भकोभन्न भ’ गेल छै. ओहि ठाम भरि छाती पानि बहि रहल छै. सब किछु के उपर देने, सब किछु के चपोडंड करैत कोसी बहि रहल छै. ओत्तुक्का लोक ? ओत्ते टा कस्बाक ओत्ते लोक कत’ गेलै ? कत’ गेल हेतै लोक सब हौ भोलेनाथ ? बंटूझा के किछु नहि बूझल छनि, किछु नहि. लोक त’ बेर पडला पर चिडैयो स’ बेसी उडान भरि सकैये...मखानक लाबा जकां छिडिया सकैये, देश्_विदेश पडा सकैत अछि.वीरपुर मे आब ध्वंस हेबाक प्रक्रिया मे सब किछु छै.
अही बीच लक्ष केलखिन त’ पत्नीक कपसनाइ बन्द बुझेलनि. शाइत सुति रहली की...जं सूति रहल होथि..त’ हुनका नल राज जकां छोडि क’ गेल हेतनि ? छिः छिः की सोचि रहल छथि ओ ? मुदा बात मोन मे घुमडैत रहै छनि जे ई नंहि रहितथि त’ बंटूझा के पडाइक कैक टा बाट रहनि. अगल_बगलक कैकटा उंच स्थान सब मोन पडलनि...नेपाले भागि जैतथि. डेढ_दू किलोमीटर दूर परहक कैक टा ऊंच डीह सब मोनमे चमकि उठलनि. असकर रहितथि त’ कैक टा उपाय रहै... तैं तीन दिन स’ यैह चौंकी भरि सुखायल स्थान पर लटकल छथि दुनू व्यक्ति ! सत्ते माया चंडाल होई छै. मुदा ककरो की पता रहै जे एत्ते भरबा क’ ऊंच पर बनल घरक ई गति हेतै ! हे एकरा क्यो बाढिक पानि नहि कहै जेबै कहियो, ई प्रलयक प्रबल प्रवाह छियै, बलौं स’ बान्हल बान्ह तोडि क’ निकलल पानि छियै कोसिक, सब के रिद्द_छिद्द कइयेक’ छोडतै, बेरबाद क’ देतै सबके, अइ बेर नहि छोडतै. बंटूझा के साफ
लागि रहल छलै जे कोसी अइ बेर नहि मानतै, बदला लइयेक’ रहतै .
“ सुनै छियै, कत्ती राति भेल हतै ? भूख नहि लागल अछि ?” ”लागल त’ अछि, त’ देब खाइलय ?” हुनकर स्वर खौंझायल रहनि, जेना चैलेंज क’ रहल होथिन. ” कने ज’ साहस करी, त’ भंसाघरक ताख पर चाउरक टिन धैल छै, ताख डूबल छै की ?” ”ओह, चुप रहूने, जँ नहियो डूबल छै त’ भंसाघर गेल हेतै, अइ अन्हार रातिमे जखन घर देने कोसी बहि रहल हो...” ”घर कहाँ रहलै यौ, अपन घर देने त’ कोसी बहैये आब.” ”बीच नदी मे यै ?” ”हँ यौ, नदीक गुंगुएनाइ नहि सुनै छियै ?” ”सब सुनै छियै, तखन कहै छी जाइ लए ?” ”चाउरक टिन ज’ नहि आनब... आइ तेसर दिन छियै. टिन टा आबि जाय ने कोनो तरहे, दैब हौ दैब !
वेगो बढल जा रहल छै... एहन ठोसगर पक्को घर के तोडि सकयै कोसी ?” ”किछु घंटा लगतै ओकरा, डीह पर घर नहि सौ दू सै ट्रक राबिश पडल रहत.” ई कहि ओ चुप भ’ गेला. दुनू वेकती बडी काल तक चुप छला. ”अच्छा, नहि आनब त’ खायब की ?”
“अहीं उतरू ने.” ”नै हौ बाप, वेग देखै छियै ? हम त’ एक्के डेग मे लटपटा_सटपटा क’ चपोडंड.... देखियौ, दरबज्जे_दरबज्जे, कोठलिये_कोठलिये कोना खलखला क’ बहि रहल छै !” ”नै उतरब त’ दुनु गोटे भूखे मरब!” ”मरि जायब, अही कोसी मे भांसि जायब! भांसि क’ कोपरिया कुर्सेला मे लहास लागत...गिध्ध_कौआ खायत!!”
“ओह, चुप रहू ने!” बंटूझा बडी कालक बाद चौंकी आ छतक बीच हवा के संबोधित करैत बजला_” आइ तेसर दिन छियै ! आइ तक पटनां_डिल्ली के हमरा सबहक सुधि नहि एलै ?”
“अहूं त’ हद करै छी...अहि बोह मे बौआ अबिते हमरा सबके बचबैलय ?” हुनका दिल्ली सुनिते अपन बेटा टा मोन पडै छनि, आर किछु नहि.सत्ते, हुनका लोकनि सनक हजार_दस हजार नहि लाखों लोक, आइ तीन__दिन स’ फंसल अछि, एकर खबरि ककरो नहि लगलैयै ? एहनो कत्तौ होई ? ओ जेना पत्नीक बात नहि सुनने होथि, भोर मे आंटा सानि क’ ओकर गोली खेने रहथि. आइ, तेसर बेर राति गहरा रहल छनि. हिनका दुनू व्यक्तिक अतिरिक्त कोनो चिडियो_चुनमुनीक आवाज़ कहां सुनै छियै ? एखन त’ कुसहा मे बान्ह तोडि क’ बहैत कोसियेक आवाज़ छै चारू भर...बान्ह, छहर, नहर, सडक, रेल, गाछी_बिरछी के मटियामेट करबाक स्वर ! सब किछु के ध्वस्त करबाक घुमडल मौन स्वर__गडर_गडर_गडर...ह’ ह’ ह’..हहा_हहा_हहा; विजयिनी कोसीक अट्टहास स’ हिनका दुनूक कान तीन दिन तीन राति स’ बहीर भेल छनि ! …मोबाइल. इंटरनेटक युगमे तीन दिन बीत गेल आ क्यो सुधि लै बला नंहि ? ..... काल्हि तक त’ दुनू व्यक्ति छत पर चादरि टांगि क’ रहथि . जखन सोपाने बरिस’ लगलनि, आ ओत्ते मेहनति स’ उपर आनल सब वस्तु जात भीज’ लगलनि; अपनो दुनू गोटे सनगिद्द भ’ गेला त’ भगि क’ कोठली मे एला त’ अपन कोठरी मे भरि जांघ रहनि.. चौंकिक ऊपर चौंकी धयलनि; त’ तखन स’ ओही पर बैसल छथि. आब त’ निचला चौंकी डूब’ लागल छलनि ! “दैब रौ दैब ! काल्हि मंचेनमाक नाव के की हाल भेलै हौ दैब...सत्तरि अस्सी गोटे, बाले बच्चा व्मिला क’ हेतै, नाव पलटिते कोना हाक्रोश करैत बेरा_बेरी डुबैत....हौ दैब, कोना हाथ उठाउठा जान बचेबाक गोहारि करैत रहै यौ !” ओ पुक्का फाडि क नेना सब जेकां कान’ लगली. पानिक हहास मे हुनकर रुदन बडा भयौन लगैत रहै. ” जुनि मोन पाडू यै... असहाय लोकके डुबबाक दृष्य नहि मोन पाडू !” ”मोन होति रहय ओत्तेटा कोनो रस्सा रहिते की आने कोनो ओत्तेटा वस्तु__त’ फेक दितियै...मुदा किछु नहि क’ भेल... ओत्ते लोक चल गेलै आ जा रहल छै, से छै ककरो परवाहि...बज्जर खसतौ रे पपियाहा सरकार बज्जर !” ”यै ई कयैक ने सोचै छी जे हमरा सब जीविते छी, जं मंचेनमाक नाव पर हमरो सब चढि गेल रहितौं त’ आइ कोन गति भेल रहिते ? अपना सब नहि चढलहुं त’ प्राण बांचि गेल ने !” ”देखैत रहियै, लोक कोना छटपटाइत रहै...? छत पर स’ त’ स्पष्ट देखाइ पडैत रहै!” ”सब टा देखैत रहियै ! बगल मे चुनौटी हैत दिय” त’ !” ”कत्ते खैनी खायब ?” ”भूख लागल यै.” ”तैं त’ कहैत रही... कनी साहस करू. भंसाघर मे घुसिते, सामने ताख पर चाउरक टिन छै; बगल मे नोनो छै.” ”अहां आयब पीठ पर ?” ”नै यौ, हमरा बड डर लगैये. हे ओ भीतर बला चौकठि के देखियौ त’... देवाल छोडने जाइ छै ?” ”हँ यै बरसामबाली! ई त’ देवाल छोडि देलक.” ”त’ आब घर खसतै की यौ ?” ..चुप्पी, संगहिं नदीक हहास! पानि मे कोनो जीव के कुदबाक छपाक ध्वनि ! ने त’ सगरे पसरल पानि... तै पर अन्धकार. ”किछु बजै कियैक ने छी ? सुनू , आब हमरो बड्ड भूख लागि गेल अछि...” ”देखै छियै, करेंट स’ आब चौंकीक पौआ सब दलकै छै; एखनो हम चाउरक टिन आनि सकैत छी. आयब हमर पीठ पर, उतरी हम ?” फेर चुप्पी. दुनू चुप छथि. बीच मे वैह अलगटेंट हरजाइ बाजि रहल अछि__कोसी बाजि नहि डिकरि रहल अछि !
“ठीक छै, हम उतरै छी...आब जे हुए, आब नहि सहल जाइये...!” ”नै यौ! हम अहांके ऐ अन्हार राति मे पानि मे नहि पैस’ देब. सांझ मे ओ सांप के देखने रहियै...मोन अछि कि नहि ?” ”ओ एत्तै हेतै ? नहि हम उतरै छी, किछु भेल हुए, आखिर अपने घर ने छियै यै ?” ”उतरबै ?”कहि बरसामबाली कनी काल चुप भ’ जाइ छथि; फेर कहै छथिन__”बुझलौं यौ, मोन होइयै गरम_गरम चाह पिबितौं; एकदम भफाइत.” “अच्छा, कत्ते राति भेल हेतै ?” ”देवाल पर घडी त’ लटकले छै, देखियौ ने.” ”एंह, ओहो साला बन्द भ गेल छै.” ”ठहरू, कने पानि के देखियै ! अरौ तोरी के, निचला चौंकी त’ डूबल बरसामबाली.” ”हे यौ, कने एम्हर आउ, हमरा डर लागि रहल अछि. हमरा लग आउ ने.” ”छीहे त’ ?” ”नै हमर लग आउ सब चिंता_फिकिर बिसरि क’ दुनू गोटे सूति रही. जे हेतै से परात देखल जेतै.!” ”भने कहै छी, दलकैत चौंकी आ भसकैत घर मे निश्चिंत भ’ क’ सुतै लए कहै छी...नीचा कोसी बहि रहल अछि ! भने कहैत छी.” ”खिडकी स’ देखियौ, भोरुकवा उगलै ? घडियो जरलाहा के बन्द भ’ गेलै....” ”कथी लए कचकचाइ छी, ई कालरात्रि छियै, अइ मे क्यो ने बचत...” ”ठीके कहै छियै यौ; ऐ बेर क्यो ने बचतै.” ”मारू गोली. जत्ते बजबाक हेतै, बाजल हेतै. सुनै छियै?सुति रहलियै ?” ”धुर जो, एहन परलय मे पल लगतै ? हम कहैत रही डिल्ली ठीक छै ने ? ओकरा खबरि भेल हेतै ? ओत्त’ बौआ अंगुनाइत हेतै...हे अइ बेर नहि अनठबियौ, अगिला सुद्ध मे करा दियौ. नहि करब आड्वाल; नहि गनायब. मुदा पुतहु चाही हमरा पढलि_लिखलि. एकदम स्मार्ट, अपन बौए जेकां.” बंटूझा के लगलनि जे एहन समय आ ताहि मे बियाहक गप, जरूर हिनकर दिमाग भांसि रहल छनि. कल्हुका भोर देखती की नहि तकर ठेकाने ने, चलली है बेटाक बियाह नेयार करै लए.मुदा बरसामबालीक त’ टाइम पास रहनि__बेटाक बियाहक प्लैन बनायब. हुनको मोन भेलनि जे ओ कथाक मादे कहथिन जे हाले मे यार अनने रहथिन. मुदा ओ चौंकी आ छतक दूरी के एकटक देखैत रहला. पानिक स्वर हुनकर कान के बहीर बना रहल छलनित त’ माथ मे कोनो धुंध, कोनो धुआं सन भरल बुझाइ छलनि. बरसामबालीक बुद्धि ठीके भांसि गेल छलनि, नहि त’ एहन मे बेटाक बियाहक नेयार करब ! ”से चाहे जे हुए, पुतहु हमरा सुन्नरि आ पढल चाही.” ”अहां के बड्ड भूख लागि रहल अछि की ?” ”हं यौ !” ”सुनू, अहां घबडायब नहि ! हम यैह चाउरक टिन नेने अबै छी ! ”नै जाउ यौ...नै उतरू यौ...नै जाउ यौ !”बरसामबाली अनघोल करिते रहली, जाबे तक हुनकर मुंह मे गर्दा नहि उडियाय लगलनि. मुदा बंटूझा फेर कोनो उतारा नहि देलखिन.






२.कृतं न् मन्ये.





“नँइ बाबू साहेब, तलाशी त’ एक_एक वस्तुक हैत, पुलिस पार्टी आबि रहल अछि...एस.पीये साहेबके और्डर छै, साहेब अपनहि आबि रहल छै... झट द’ जनी_जाति के ल”एक कात भ’ जैयौ...!” सब साल परबी ल’ जाइ बला हुनकर गाम चांवरडीहक चौकीदार अजोधी ; नमोनारायण सिंह के कहि रहल छलनि। कहै कहां छलनि महराज ! धिरा रहल छलनि, धमका रहल छलनि;बाप_दादाक बनायल घर के तुरंते खाली करैक फरमान सुना रहल छलनि।
चांवरडीह गाम धरि छैक बेस झमठगर । बारहो बरन बसै छल अछि अहि दू धारक बीच, लमछुरका जमीन पर बसल ई गाम मे। बीच गाम देने सडक; जे आब त’ धार पर पुल भ’ जेबाक कारणॆ सीधे जिला मुख्यालय तक जाइ छैक, मुदा तहिया कत’ पाबी ? तहिया एक पेडिया कि सुर्खी बला
सडकक चलनसार छलै। साफ_साफ कही त’ अंग्रेजक अमलदारी छलै । बाबू साहेबक गाम, ताहूमे नमोनारायणक स्वर्गीय पिता जी के तहसीलदार स’ घुठ्ठी सोहार, तैं अमला_फैला, कर_कचहरी सब ठां बाबू जयनारायण सिंहक जयजयकार होति रहै ताहि दिन चांवरडीह मे। भरि चौमासा त’ एत’ आयब असंभवे छलै जे नीको समय साल मे तहिया, गाम आयब बड दुरूह रहै। तखन भरि बरसात नावक सवारी
रहै । गरीबो लोकके एकटा घसकट्टीयो,नाव जरूर होइ छल।
मुदा सब एक्के बेर दमदमा क’ पहुंचि गेलै....दू जीप मे भरिक’सिपाही रहै। ओकर संग हवलदार आ एकटा डी.एस.पी.। सब हथियार बन्द ,जेना कोनो पैघ डकैत के पकडै लए आयल हुए । नमोनारायण अवाक् भेल आंगनक मोखा लग जे ठाढ भेला से किम्हर पडेता कि की करता से किछु फुरेबे नहि करनि। ताबे एकटा सिपाही पाछां स’ हिनकर गंजी पकडि क’ अपना दिस टनैत पुछलकनि__” तोरे नाम नमोनारायण छिय’...? चल’ एस.पी. साहेब बजबै छथुन।“
नमोनारायण सर्द पडि गेला, नमोनारायणक मुंह कारी भ’ एलनि, नमोनारायण मुंहमे धान दैथ त’ लाबा होनि । जहिना गंजी धोतीमे छला तहिना सिपाहीक पाछां_पाछां विदा भेला बडगाछतर, जाहि ठाम काल्हिये
स’ ज़िलाक एस.पी. कैम्प केने छै । वैह चतरलका बडक गाछ त’ एखनहु छैहे गवाही सब कथुक.। अही
गाछ लग स’ सवर्ण आ महादलित टोला अलग_अलग होइ छै । अही बडक गाछक चलते लोक चांवरडीहक
दलित बस्ती के ‘बडतर टोल’ कहैत रहै । नमोनारयणक स्वर्गीय पिता , जे अहि कुकांडक
नायक छला, से त’ गेला सुरपुर धाम। बांचल छथिन हुनकर एकमात्र सुपुत्र, जे बलिदानी छागर जेकां बढि रहल छथिन ओन्न’ जत’ नहि जानि कैक युगक तामस, घृणा आ बदलाक भावना स’ भरल एस.पी. प्रतीक्षा क’ रहल छनि। पहिने त’चांवरडीहक आम ग्रामीणे जेकां हिनको पता नहि रहनि जे ई
सब कियैक भ’ रहल छनि, पुलिस एकाएक हिनकर घर_आंगनक एना तलाशी कियैक ल’ रहल अछि ?
मुदा एस.पी.क नाम आ ई जनिते जे एस.पी. वैह घनश्यामक जमाय भास्कर छियै; सब बात बिजली
जकां दिमागमे छिटकि उठलनि...आइ स’ पच्चीस बरख पहिलुका घटना एना लाग’लगलनि जेना काल्हुक
घटना हो ! ओ सब बात हिनका आ हिनकर किछु बूढ दियादे टा के ने बूझल छनि ? गामक लोक ई सब कत’ स’ जनलकै ? खैर, आब त’ जाइये रहला अछि । आखिर कोन कारण स’ पुलिस घरक ओ दशा क’ रहल छनि आ हिनकर चोर_डकैत जकां पेशी भ’ रहल छनि,सेहो त’ लोक के बुझै जोगर होइतै ? मुदा जेना भ’ क’ पुलिस घर ढुकलनि आ जेना भ’ क’ सर्च क’ रहल छनि....राम_राम ! से कि ई कोनो अपराधी छला अछि ? होथि कि नहि होथि; पुलिस त’ एखन तेहने व्यवहार क’ रहल छनि; जेना चोर_डकैतक घरक तलाशी लेल जाइ छैक ,तहिना एक_एक टा वस्तु_जात खोलि_खालि क’, एत्ते तक जे कोठीक चाउर तक निकालि क’ तलाशी
ल’ रहल रहनि। ओ बड गाछ दिस जाइयो रहल छथि आ सोचि रहल छथि जे घनश्यमवाक ओ जमाय
भास्कर एस.पी. बनत, आ बनबो करत त’ अही ज़िलामे आओत, ई त’ कहियो सपनोमे ने सोचने रहथिन। ...एह बातो आझुक छियै ? जोडबै त’ कैक युग बीत जेतै !
कोसिक झमारल चांवरडीह गाम, बारहो मास तीसो दिन अबै_जाइमे बड तकलीफ होइ लोकके। भूलिये_भटकि क’ कोनो सर_कुटुम्ब अबै। आजुक हाल देखि क’ त’ अहांके परतीते ने हैत जे वैह चांवरडीह छियै! रोग_बेरामी,पर_परसौत ज’ गडबडायल त’ जाबे अहां चर्राइन कि सहरसा पहुंचब गे, रोगी भगवान लग दाखिल भेल रहत। ताहि दिनुका बात भेलै जखन कोसी, जंगल आ अंग्रेज सन जालियाक शासन रहै...मुंह देखि क मुंगबा परसैबला ! तहिया पुलिस थाना, कोर्ट कचहरी जे रहथि से जयनारायण सिंह छला। हुनकर फैसला पहिल आ अंतिम होइ छलै तहिया अहि गाममे !
अही गाममे ओ वर बनि क’ आयल रहै...यैह बडक गाछ तर ओ कुर्सी पर...आंखिमे काजर, गलामे बेली फूलक मौलाएल जाइत माला पहिरने बैसल रहै...बगलक खाट पर ओकर पिता आ पित्ती बैसल रहथिन ।
घनश्याम, ओकर होइबला ससूर पीयर धोती आ गोलगला पहिरने अपन फूल सनक बेटी फुलमतियाक
होइ बला वर के देख क’ मोन हुलसि आयल छलनि चांवरडीह गामक अधवयसू आ अपन समाजक प्रतिष्ठित सदस्य; घनश्यामके । ओ हलसल_फुलसल अपन आंगन दिस जा रहल छला जे अपन मोनक
आह्लाद अपन लोक, जनी _जाति के कहथि आ वर_वरियाती लए पान_सुपारी_बीडी_सिगरेट आदि आनथि।
मोन गदगदायमान छलनिहें जे बडतर; जत’ वर_बरियातीक डेरा माने जनवासा रहै, ओत्त’ स’ उठलै हल्ला...मच’लगलै गर्द आ गूंज’ लगलै आर्तनाद निरपराधक ।
”मार सार के ! घेर क’ मार सबके..क्यो बचौ नहि, देखिहें नमोनारायण ! एह, खटिया पर मटोमाट केहन
अछि ? सुनरा! ला फरसा आ छफाटि ले सबहक कुल्हा !!” जयनारायण सिंह अपन चानीक मूठि लागल डंटा के चलाइयो रहल छला आ गरजियो रहल छला। ठीक कोनो राक्षस सन लागि रहल छला। जखन ओ
एकरा लग, माने भास्कर लग पहुंचल रहथि त’ माला पहिरने, थरथर कंपैत भास्कर धधकैत जयनारायणक
आंखि दिस बड कातर भावे देखने रहनि आ क’ल जोडि क’ ठाढ होइते रहै जे चानीक मूठ बला लाठीक समधानल वार पीठ पर भेलै आ तकर बाद की भेलै...कोना ओ पडा क’ ककरो घरमे शरण लेलक...कोना
ओकर बियाह भेलै...टूटल हाथ_पैर लेने ओ आ ओकर बाप_पित्ती कोना अहल भोरिये कनिया संग ल’ क’ नाव पर पडयला... सब ओकरा सपना सन लगैत अएलै अछि एखन धरि ।
पढिते रहय त’ एक बेर फेर एत’ आयल त पता चलल रहै जे जे कनियां स’ एकर बियाह भेलै, ओकरा पर नमोनारायणक नज़रि बहुत दिन स’ गडल रहनि, तैं ओना तांडव मचौने छला ओकर बियाहक राति। कहां दन तीन दिन तक अहि टोलक लोक थर_थर कंपैत घरमे सुटकल रहल। ओ त’ सुकुर भेलै जे वर_वरियाती संगे ओ राता_राती निकलि गेल...ने त’ जान बांचब मोस्किल रहै ओइ राति । ओही दिन ओ संकल्प केने रह जे ओ पढत, खूब पढत आ पुलिसक नौकरी करत।...साल दू साल पर ओ चांवरडीह आबै...छुट्टा सांढ जकां सब कथू पर मुंह मारैत पहिने जयनारायण के देखैत रहै आ तकर बाद ओकर बेटा नमोनारायण के, जे एखन सुटुकपिल्ली सन सिपाहीक पाछां_पाछां बलिदानी छागर सन बढल जा रहला अछि, जिम्हर अहि पलक प्रतीक्षा कैक युग स’ करैत अबैबला एस.पी. भास्कर ,सन्नद्ध बैसल अछि।
मुदा ई घटना कोनो आजुक छियै ? पच्चीस वर्ष पहिने भेल अपराधक सजाय,
ओकरा आइ देल जेतै ?ओकरो अइ घटनाक पश्चाताप भेल रहै। समय बदलल रहै, युग बदललै, नमोनारायणके
विचारो बदलल रहनि। ई त’ सपनोमे नै सोचने रहथिन जे घटना चक्र अहि तरहें घुमतै। बाबुओ के मुइना त’
आब पंद्रह वर्ष भेल हेतनि।...पता नहि, पुलिस के आंगनमे घुसिते ओकर माय आ कनियां कत’ गेलै ! की
पता ? ओहू राति ककरो कहां पता चललै जे वर_वरियाती कि कनियां कत’गेलै ? कुम्हर पडेलै ? भरि गाम
त’ जयनारायण सिंहक सिंहगर्जना सुनैत रहलै__ “...मैट्रिक पास जमाय छै त’की ? आगि मूतत ? एत्ते टा
साधंस जे हमरा सबहक सामने खाट_कुर्सी पर बैसत...एत्ते धू_धू_पूपू स’ बेटीक बियाह करत ? से की हम सब
मोसम्मात ? कि ई सब बाबू साहेब बनि गेल ..? खच्चर नहितन...।“

संग सिपाहीक जाइत ओ फिर क’ अपन द्वार, आंगन आ बरंडा दिस तकलनि...घरक
सब सामान ओइ पर रिद्द_छिद्द भेल छलै...बक्सा...अलमीरा...पलंग...ओकर कनियांबला ड्रेसिंग टेबुल...ओकर,
मायक आ बाबूक पुरना पेटी, ओकर भी.आइ.पी. सब मुंह बेने...ओकरा देखल नहि गेलै ! आखिर ओकरा कोन
अपराधक सजाय भेट रहल छै...जे आइ स’ पच्चीस वर्ष पहिने भेल छलै ? ओ आगां_आगां जाइत सिपाहीक
पीठ दिस ताक’ लागल कि तखनहि मायक आवाज़ सुनाइ पडलै__”बौआ, हमहूं अबै छिय’ !”
नमोनारायण पाछां पलटि क’ घरक सब वस्तु_जात के देखैक बदला उज्जर साडीमे डोलैत मायक काया देखै मोनमे होइ छनि जे ‘ई कथी लए संग लागि गेली ?’ फेर भेलनि जे कहीं_कदाच माय के देखि क’ ज’ एस.पीके दया आबि जाइ, भास्करक मोन पघिल जाइ...!

भरि गामक लोक अपन_अपन दरवाजा पर स’ अपन_अपन डांड पर हाथ धेने

अइ घटना क्रमके, अपन_अपन ढंग स’ देखि रहल छल,अर्थ लगा रहल छल। खाली बूढ_बुढानुस, दर_देयाद
के पछिला सब बात फट स’ मोन पडि एलै...जयनारायण सिंहक चानीक मूठ बला लाठी मोन पडि एलै....
नमोनारायणक सांढ जेकां सब हक खेतमे मुंह मारैक लुतुक मोन पडलै...ओकर बापक कारस्तानी सब मोन पडलै। जखन बापे गुंडइ सिखाबे त’ बेटा के की कहल जाय ? मुदा ई जरूर जे ई सब भेना बहुत दिन, पचीसो साल भेलै...आब गडल मुर्दा उखाडल जेतै ? नमोनारायण दुनू बाप_पुते तहिया जे केने रहै, तकर सजाय आब देतै भास्कर एस. पी. ?
नै देबाक चाही ? जहिना खूनक घोंट पुश्त_दरपुश्त पिबैत आयल, तहिना पिबैत रहय ? कि ओइ राति
ई दुनू बापं_पूत पशुतोक सब सीमाक उल्लंघन नहि केने रहथि जखन कि वर बनि क’ ई गाम आयल भास्कर
के दुनू बाप_पूत मिल क’ बरियातीक संगे अइ लेल मारि पीट क’बेइज्जत_बेइज्जत केलखिन जे ओ
लोकनि खाट पर आ वर कुर्सी पर कियैक बैसल अछि ? ई चांवरडीह छियै, बाबू साहेबक बस्ती...ताहि ठाम ई मजाल ? लगलै जे हिनके दुनू गोटेक ज़मिन्दारीमे बसल हो सब क्यो !
तैं गामक लोक डांड पर हाथ देने, आगां_आगां सिपाही,तकर पाछां ओ, आ सब स’ पाछां हुनकर विधवा मायके दलित_टोला जाइत देखैत रहल। मुदा, ने क्यो सबदल आ ने क्यो संग देलकनि !




बुझले अछि जे नमोनारायण के देखितंहि एस.पी. के की भेल हेतै । पचीस वर्ष बीतल होइ कि
पचास...ई सब बिसरैबला बात छै ?तैं नमोनारायण के सरि भ’ क’ एस.पी.क हाथो जोडल नहि भेल रहनि
जे अशोक_चक्रक मूठि लागल एस.पी.क हंटर सटाक पीठ पर लागल रहनि...जाबे ई किछु सोचथि कि दोसरो
हंटर बजरलनि, जे हुनकर पीठ पर गुणाक चिह्न बना देने छलनि आ जे हुनका मार्मिक चोट पहुंचबै लए
पर्याप्त छलनि। हुनकर चित्कार स’ ओहि ठाम उपस्थित हुनकर सब गौंआक मोन दहलि गेलै त’ कोन
आश्चर्य ! मुदा कठोर स’ कठोर अपराधी के मनोबल तोडबाक, तोडि क’ सत्य बोकरेबाके ट्रेनिंग भेटल छैक
ओकरा; तैं ओकर कडकदार आवाज़ गूंजैत अछि__”हवलदार ! अइ डारि स’उल्टा लटका एकरा !”
भूमि पर भास्कर एस.पी.क पैर गरेछने मायक काया थरथरा उठैत छनि, संभवतः दांती लागि जाइ छनि।
कत्तौ स’ एकटा महिला सिपाही प्रगट होइत अछि आ मायक परिचर्चामे लागि जाइत अछि।मुदा नमोनारायणक
डांडमे रस्सा बन्हा गेल अछि...बस आब हिनका लटकैले जाइबला अछि।हिनकर मुंहमे गर्दा उडि रहल छनि...
...चेहरा कारी भ’ आयल छलनि...बुद्धि काज नहि क’ रहल छलनि...सिट्टी_पिट्टी गुम। पीठ परहक चोटक
संग अबैबला कष्टक कल्पने करैत चौन्ह अबैत रहनि।
“ कियै, हमरो अहिना चोट लागल रहै रे नमोनारायण...एखन त’ किछु भेबे ने केलौए...तोहर लाठीक मारि स’
त’ हमर पित्ती दुइयो मासने बचला...हमर बापक माथक दर्द कहियोने छुटलनि...तोरा त’साले...!”

ताबे चांवरडीह गामक एक्का_दुक्का ग्रामीण बडतर एकठ्ठा हुअ’ लागल
छलै...हिनकर मसियौत दौडि क’ गेल आ निहोरा_मिनती क’ क’ घंश्याम के खिंचने आयल। ओहो सामनेक
दृष्य देखि भीडमे अवाक् भेल ठाढ...।पहिने सत्तो निकलला तकर बाद धीरे_धीरे सब हाथ जोडने कातर भाव स’
देखैत।
”मर, त’ अहां के एत्त’ के बजेलक ? गैरलाइसेंसी हथियार एकर घर स’ बरामद भेलैए, एकरा जेल हेतै !”
एस.पी. तत्ते जोर स’ बजला जाहि स’ गामक लोक ठीक स’ सुनि लियै। उत्तरमे क्यो किछु नहि बाजल। बजै जोग किछु शेषो नहि रहै। सब बस गुम भ’ क’ भास्कर एस.पी.के देखि रहल छल।
ओ पहिने अपन ससुर घनश्यामक नत दृष्टि आ बादमे अपन सासुरक सब गोटाक क्षमाक मूक गोहारि अनुभव
केलक...आगांमे पडलि नमोनारायणक मायक उज्जर साडीमे लपेटल काया छलैक।ओ चारूकात नजरि घुमा क’
देखलक...अइ ठाम अत्यंत कातर भाव स’ ओकर प्रत्येक क्रिया_कलाप के देखैत आन क्यो नहि, ओकरसासुरक
लोक अछि ,जकरा ओ बच्चे स’ देखैत आबि रहल अछि । अनकठ्ठल चुप्पी कि निगूढ शांति के भंग करैत
भास्कर एस.पी.क स्वर बडतर फेर गूंजल__”हवलदार ! खोलि दहिंक...आब एकरा ककरो अपमान करबाक साधंस नहि हेतै ।“

***

(ई कथा “कृतं न् मन्ये” श्री आर.बी. राम सेवा निवृत्त आइ.जी. के सस्नेह एवं सादर ! लेखक।)

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३.गणनायक




एकटा आदंकक लहरि हुनकर ढोंढ़ी लग देने ऊपर चढ़’ लगलनि। अपन माथ पर चुहचुहा आएल पसेनाकेँ अपन गमछीसँ पोछि क’ ओ एक बेर काल-वैसाखीक बिड़रो सन चलि जाइत एहि गाड़ीकेँ देखलनि। लगलनि छीतन सदाकेँ जे जँ बेसी काल धरि ओ खिड़कीक बाहर तकैत रहला त’ जरूर हुनकर माथ घूमि जेतनि आ बादहोसी घेर लेतनि। ओ आँखि मूनि लेलनि। आँखि मुनिते चारि रातिक जगरना आँखिमे कटकटाए लगलनि। भरिसक चारि मास भेल हेतै जमीन पर झँझट भेना। तहियासँ भूखो पियास तिरोहित छनि, त’ निन्नक के लेखा करैत अछि। ...हुनका मोन पड़लनि, घराड़िक सटले पश्चिम चारि कट्ठाक बाड़ी। हुनका मोन पड़लनि ओकरा हासिल करबामे भेल नतीजा। पूरा जोआनी गुदस्त भ’ गेलनि ओकरा अपन बनाब’मे। ओ चरिकठवा हुनकर जवानीक निशानी छिअनि। ओही जमीन लए कैक बर्ख धरि ओ दरभंगामे रिक्शा चलौलनि... नरे बाबूक बाप दिग्विजय बाबूक खबासी केलनि... राति-दिन, भरला-भादो आ सुखला चैतमे सब बापे-पूते ओकरामे लागल रहला। तखन जा क’ खाधि आ झौंखीसँ भरल ओहि चरिकठवाक मुँह-कान बहरेलै। एकटा परती आ उस्सर धरतीक टुकड़ा तखन गलि क’ राँग बनल छल, आर जखन ओ धरती सोनाक टुकड़ा बनि गेलै अछि त’ सबहक गृद्ध-दृष्टि आब ओही पर लागल छै।

बड़ी काल बीत गेल। ओना ओ गाड़ीमे बैसल छल, जे काल-वैसाखीक बिड़रो सन दिल्ली दिस भागल जा रहल छलै, मुदा हुनकर मोनमे ओएह चरिकठवा अहुड़िया काटि रहल छलनि। मुदा समय ककर प्रतीक्षा करैत छै? छीतन जी नई दिल्ली प्लेटफार्म पर छलाह। हुनका मोन पड़लनि-कामेसर कहैत रहए, कहाँ दन पनिजाब डिल्लिये भेने जाइ छै? ओ स्टेशन स’ बाहर आबि जाइत छथि। आगाँ जनसमुद्रकेँ अवाक देखैत ओ नई दिल्ली स्टेशनक बाहर ठाढ़ छथि। फेर आगाँ बढ़ि ई जनसमुद्रक अंग बनि जाइत छथि। फुटपाथ पर बढ़ल चल जाइत हुनका मोन भेलनि जे कत्तौ चूड़ा-दीहक दोकान भेटतनि त’ भरि पेट खैतथि। जेबीसँ चून-तमाकू बाहर कएलनि। ...नइं, जा धरि नरे बाबूसँ भेंट क’ सविस्तर कहि-सूनि नइं लेता, ताबे अन्न-जल नइं करता। छीतन सदाक चालिमे तेजी आबि गेलनि। तिलक ब्रिज धरि ओ खैनी चुनबिते आबि गेला। रामबरन सिंहक नंगटपनीक सजाइ दिएबाक सप्पत मोनमे अहुड़िया काट’ लगलनि। ओकर इशारा पर कोना हुनकर बेटा भातिज मारि खेलक, बेइज्जत भेल! कोना क्षणहिमे भरि ठेहुन तमाकूकेँ जोति क’ माँटिमे मिला देल गेल। फेर ओकरे इशारा पर कोना गामक दू टा लबरा नेता बनि क’ पंचैती करै लए आएल। कोना मामला कायम क’ लेलक। सब बात नरे बाबूकेँ खोंइचा छोड़ा क’ कहथिन। रामबरन सिंहकेँ की नरे बाबू नइं चिन्है छथिन? केहन जालिया आदमी अछि से सभकेँ बुझल छै की। नरे बाबू जरूर एहि समयमे ठाढ़ हेथिन। फेर मोन पड़लनि वोट। हिनकर मेहनति देखि क’ नरे बाबू दस लोकक सोझाँमे कहने रहथिन जे अहि परोपट्टामे पिछड़ल जनताक माइन्जन छीतन जी छथि। हिनके राय विचारसँ काज हेतै। आखिर खान्दानी लोक कहलकै ककरा? जमीन्दार घरानाक पढ़ल-लिखल लोकक इएह त’ गुन छै। असली लोककेँ परेखबाक। ओहि बेर नरे बाबू ढेर वोटसँ जितला! आ तहियासँ सब चुनाव जितैत अएलाह, सब चुनावमे सबटा छोटकाक वोट हिनके भेटैत अएलनि। ई सत्य, जे ओहि चुनावक बादसँ छीतनक एकबाल बढ़लनि। लोक राय-विचार पूछ’ लगलनि, पंचैतीमे बजाओल जाए लगला। ओहो खखसि क’ कहैत रहथिन जे हमरा सबहक असली नेता छथि नरे बाबू। ऊँच जातिमे जनमलासँ की हेतनि, हमरा सबहक सब हाल ओएह टा जनैत छथि आ ओएह एकरा सोझराइयो सकैत छथि। हुनका मोन छनि जे ओइ चुनावमे ओ कोना बाझल छला। ओही बीच करिक्की बाछी मरि गेलनि... कनकिरबीक सर्दी-जर निमोनियाँ बनि गेलनि... खेती पछुआ गेलनि। ऐ धरानिएँ जकरा लए एत्ते कएलखिन, से एखन नइं सहाय हेता त’ कखन हेता?

...छीतन सदा बाँचि गेल रहथि। आगाँक गाड़ीमे बहुत जोरसँ ब्रेक लागल रहै आ गाड़ी जोरसँ किकिया उठल रहै। सड़क पर चलैत लोक उनटि-उनटि क’ ओम्हरे देख’ लागल रहए। जाहि ठाम जनपथ, राजपथकेँ कटैत छै, ठीक ओही चैबटिया पर गाड़ीसँ बाल-बाल बचल रहथि, काँख त’र पोटरी नेने... रस्ताक गन्दा धोती आ गोल गला पहिरने बनकट्टाक छीतन सदा। एक दिस संसद दोसर दिस सचिवालय आ तकर सामने चलैत धर्रोहि लागल कारक पतियानीकेँ बड़े कातर दृष्टिएँ देखि रहल छला ओ। पहिल बेर हुनका बुझि पड़लनि जे एहि ठाम ककरो दोसरा लए एक्को मिनटक समय नइं छै। अहि ठाम समस्या लाज बचेबाक नइं, जान बचेबाक छै। अनचोकेमे सही, बीच चैबटिया पर ठाढ़ भ’ क’ यातायातकेँ छन भरि लए रोकबाक गलती त’ हुनकासँ भ’ए गेल छनि। तैं हुनकर दुनू हाथ जुटलनि आ सामने रुकल कारसँ गुड़रैत आँखिकेँ कहलखिन-गलती।-आ झटकि क’ सड़क टपि गेला। हुनका सन्देह भेलनि जे की ई डिल्लियो अपने देशमे छै? राष्ट्रपति भवन, संसद, सचिवालय, कनाट प्लेस ओही डिल्लीमे छै जाहिमे कमेसरा कमाइ छै? जे अबै छै त’ तीन मासे देह जुटै छै, तेहन दुहै छै देहकेँ दिल्लीमे। आ पाइ कत्ते अनै छै? जँ पाइ कमाइ के ढेरियन मौका छै दिल्लीमे त’ पाइ गमबै के सेहो ओतबे उपाय छै। हँसी लगलनि छीतन सदाकेँ। एतबो नइं ओ बुझै छथिन जे ई दिल्ली मातबर लोकक दिल्ली छै। अपन दिल्ली त’ पुरानी दिल्ली छै, कि जमुना पारक दिल्ली। जत’सँ संसदक गोलार्ध सबसँ नीक लगै छै, ऐन ओही ठाम रुकि गेला ओ। करीबन आधा घण्टासँ जाहि तमाकूकेँ ओ रगड़ि रहल छला ओकरा आरामसँ ठोरमे द’ क’, बड़ी काल धरि संसदक भव्य गोलार्धकेँ, ओहि पर धीरे-धीरे फहराइत तिरंगाकेँ देखैत रहला। हुनका एहि दृश्यक भव्यताक कारणें आदंक त’ भेल छलनि, मुदा ओ आगाँक भव्य-दृश्यकेँ मोन राख’ चाहै छला, तैं बड़ा एकाग्र भ’ क’ ओकरा देख रहल छला। एकरा ओ सभ दिन लए स्मृति-पटल पर आँकि लेब’ चाहै छला...

-ओए, किथ्थे जाणा?

-आँइ?-अकचकाइत छीतनक मुँहसँ बहराएल। घूमि क’ देखलनि, सामने एकटा अधवयसू, अधपाकल दाढ़ी बला सरदारजी रहथि। देखि क’ भेलनि, एकरासँ बाबा खड़ग सिंह मार्गक पता पूछल जा सकैत अछि।

-हमरा नरे बाबू कन जएबाक है।

-कौण से बाबू के लग?-सरदार जी अपन खिचड़ी दाढ़ीमे बिहुँसल रहए।

-नरे बाबू दरिभंगा का नामी नेता हींया बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर रहते हैं...।-सरदारक मुँह देखि क’ बुझएलनि छीतन सदाकेँ जे ओ आधे बात बुझलकनि। सत्ते सरदार जी कने काल असमंजसमे ठाढ़ रहल आ फेर अपन बाट धएलक। ओकरा बिनु किछु उत्तर देने जाइत देखि हुनका बड़ आश्चर्य भेल रहनि-मर बहिं, एहनो लोक होइ छै? ने गप्प ने सप्प, ने परणामे-पाती, सोझे बिदा? बाह रे लोक दिल्ली के! फेर हुनकर हाथ डाँड़मे बान्हल नोटकेँ टोहि क’ देखलनि। सब किछु ठीक छलनि। बस ई टा पता लागि जैतनि जे बाबा खड़ग सिंह मार्ग कोम्हर छै। ओ संसद मार्ग भेने फेर कनाट प्लेस अएला। भरि रस्ता ओ लोकक मुँह निहारैत हियासैत एलखिन। मुदा क्यो एहन नइं बुझेलनि जे पलखतिमे हो आ हिनका बाबा खड़ग सिंह मार्ग देखा दनि। तैं ओ बढ़ैत गेला। रीगल सिनेमासँ बामा घूमि क’ ओ किछुए दूर बढ़ल हेता कि देखलखिन एकटा छौंड़ा एकटा मेसीनसँ पानि बाहर क’ बेचैत अछि। चारि आने गिलास, ठंढा पानि! पियास हुनको लागि गेल छलनि। कत्तौ पानि पियैक दौरे ने लगै छलनि। एहि पानि पियाब’ बलाक क’ल दिस ध्याने ने गेल छलनि। पानि पीबि ओ गिलास देलखिन आ ओ छौंड़ाकेँ पुछलखिन-बुच्ची! बाबा खड़ग सिंह मार्ग कौन है?-ओ छौंड़ा हिनका ऊपरसँ नीचा धरि देखलकनि आ फेर मैल कुचैल दस सालक छौंड़ा भभा क’ अपन कच्चा दाड़िम सन दाँत बहार करैत कहलकनि-ओए शाहजी। तुम कौण से मारग पर पाणी पी रहे हो? यही है खड़ग सिंह मारग।

एतबा सुनैत माँतर जेना छीतन सदाकेँ बिरनी बीन्ह लेलकनि। पाइ दैत ओ पैर झटकारने बिदा भेला। आ फेर हुनकर मोनमे ओ चरिकठवा नाच’ लगलनि। तैं ओ बिना बामा-दहिना देखने बमरिए फुटपाथ देने जा रहल छला कि गुरुद्वारासँ निकलल भीड़मे घेरा गेला। चारू कात मुरेठे-मुरेठा, कारे पर कार, लोके पर लोक। भीड़मे कोनहुना रस्ता बनबैत निकलैक चेष्टा केलनि त’ बड़ी जोरसँ कोनो मंसुगरि पंजाबिनक देहसँ दबि क’ चेहा उठला। हुनका ओना चेहाइत देखि ओ पंजाबिन ठिठिया देने छलनि। जेना छीतन जी सन भरल-पुरल लोकक भीतर एत्ते भीरु हृदयकेँ परखि क’ हँसल हो। ओ ओकरा भरि नजरि देखिए क’ रहि गेला, ताबए भीड़ आगाँ बढ़ि गेल रहए।

बाबा खड़ग सिंह मार्ग, तकर दुनू दिस पतियानी स’ लागल गाछ, जे फुटपाथ पर निहुँड़ल छै, ताही पर पैर झटकारने जा रहल छला, चैदह लम्बर-चैदह लम्बर रटैत बनकट्टाक छीतन सदा।

कोठीक नम्बर पढ़ियो क’ ओहि हत्तामे पैसैक हिम्मति नइं भेलनि हुनका। ओ बड़ी काल धरि फुटपाथ पर ठाढ़ भेल गेट पर लटकल बोडमे नरे बाबूक नाम आ कोठीक नम्बर पढ़ैत रहला। ठीक ओएह कोठी छै, नरे बाबूक नामो छनि। अपन ठेहुन धरि ससरि आएल धोतीकेँ ओ फेर सम्हारलनि, एक बेर फेर अपन धुरियाओल पैरकेँ पटकि क’ धूरा झाड़लनि आ डराइत-धखाइत गेट खोललनि।

कोनो विदेशी संगीतक लहरि ग्रिलक परदाक ओइ पारसँ आबि रहल छल। ओकरेसँ छनाइत प्रकाशक थक्का लौनक घास पर पड़ि रहल छल। एक बेर ई सब देखि मोन भेलनि जे घूरि चली। मुदा फेर मोन पड़लखिन नरे बाबू... वोट मँगै लए आएल रहथिन, ओ कोना ओकर जौड़खट्टा पर बैस रहल रहथिन? सब दिनसँ जमीन्दार नरे बाबूक मोन केहन नेनु सन? टुनटुनक बापकेँ कोना इलाजक वास्ते सौ रुपैया झटसँ द’ देने रहथिन? सब मोन पड़लनि छीतन सदाकेँ। वोटक समय गामे-गाम घुमनाइ, जँहि-तँहि, जैह-सैह खेनाइ, सब स्मरण छनि हुनका। तैं ओ आगाँ बढ़ला। लौनक मोलायम घास पैर तर बड़ी कालक बाद जे पड़लनि से बड़ नीक लगलनि। ओ असमंजसमे ठाढ़े रहथि कि नरे बाबू दरबाजा पर ठाढ़ भेला आ जमीन्दारी रोब भरल आवाजमे गरजला-रौदिया! रौदिया!! कत’ गेलें? देख त’ लौनकेँ के धंगने जा रहल अछि?

-हैये सरकार।-कहैत रौदिया छीतन सदा दिस लपकल रहए।

-कौन है तुम?

-हम छीतन छी, बनकट्टाक छीतन सदा!

-त’ ओम्हर लौन किऐ धंगने जाइ छ’?

-घास नइं धंगाइ छै-छीतन जी रौदी दिस सहटला।-हमरा नरे बाबूसँ भेंट करा दैह भाइ; बड़ उपकार मानब’!

-उपकार मानब’ पछाति, पहिने लौनसँ बाहर आब’। नइं त’ एखने थाना पुलिस भ’ जेत’।-रौदीक रौद्र रूप देखि क’ सकपकेला छीतन सदा।-हम बनकट्टा के छी। नरे बाबूक इलाकाक लोक!-रौदी ओकर कातर स्वर सुनि क’ ठमकल। त’ छीतनकेँ साहस बढ़लनि।-परोपट्टाक सब भोंट हमहीं दियेने रहिअनि नरे बाबूकेँ, हमरा नीक जकाँ चिन्है छथिन।-फेर ओ रुकला। सोचलनि जे असली बात त’ कहिए ने रहलखिन अछि।-हे बड़ सतेलक अछि दरोगा। बेकसूरकेँ पेमाल क’ रहल अछि गामक लबरा-लुच्चा, त’ गोहारि करै लए बड़ी दूरसँ आएल छी।-छीतन सदाकेँ अपनहिं स्वर रेरिएनाइ सन लगलनि। मुदा हुनका बुझल छनि जे ई आखिरी मौका छनि। जँ नरे बाबू ठाढ़ नइं भेलखिन त’ क्यो हुनका बचा नइं पौतनि। तैं एकरा ओ कोनो तरहें गमाब’ नइं चाहै छथि। रौदीकेँ भेलै जे ओ जँ, हिनकर गपमे बाझत त’ साहेबक कमरामे स्नैक्स समय पर नइं पहुँचा सकत। एक घंटा पहिनेसँ साहेब किछु सांसद सब संगें बियर पीबि रहल छला। कोनो बान्ह बन्हैक योजना पर घनघोर बहस चलि रहल छलै। आब त’ ह्निस्कियो खूजि गेल हेतै! तैं छीतन सदाकेँ कहलकनि-जाह, सामने कोठलीमे एक पतियानीसँ कुरसी राखल छै, ओही पर बैस रह’। हम थोड़े कालक बाद आबि क’ कहै छिय’।-कहैत रौदी अलोप भ’ गेल। छीतन सदा आब कने सुस्थिर भेला। कुर्सी पर बैस गेला। सामने एक पतियानीसँ लागल गोड़ दस-पन्द्रह टा कुर्सी, एक कात दिवान, नीचामे गलीचा जाहि पर अपन लकुटिया नेने गांधी बाबाक फोटो। हुनका एबासँ पहिने कोठलीमे आर दू गोटे बैसल छलै। हिनका अबितहिं दुनू चुप भ’ गेल। दुनू माने एकटा धवल जटाजूट बला बबाजी आ हुनके संगें आएल एकटा पम्हउट्ठा छौंड़ा। कनेक काल धरि दुनू चुप रहल, फेर बबाजी पुछलखिन-की हौ, रौदी की कहलक’? आइयो नेताजीसँ भेंट हैत कि नइं?-फेर अपन धवल दाढ़ी पर हाथ फेर’ लगला, एना जेना ओकरा चुचकारि रहल होथि। एकाएक पुनः साकांक्ष होइत बजला-बाप रे बाप! तीन दिनसँ दर्शन लए कुसोथ्थरि देने छी।-छीतन सदाकेँ बाबाक ई उक्ति सूनि आदंक भेलनि।-की गाय चरवाहियेमे बिका जेतनि? हुनका जिम्मा तीने साँझक चूड़ा छनि! पाइयो गनले-गूथल सबील क’ सकला! तीन माससँ लधल एहि रगड़ामे सब जमा-जथा सोख्त भ’ गेल रहनि। तैं हुनका ड’र भेलनि। जँ, हुनको तीन-चारि दिन लगलनि भेंट करबामे, तहन त’ गेल महींस पानिमे। कत’ रहता, की खेता-पीता? कथुक त’ जोगाड़ नइं छनि। तैं ओ बड़ सम्हरि क’ बजला-आइ भेंट नइं करथिन की? हम त’ बड़ी दूरसँ आएल छी!

-देखियौ। ओही भरोसे त’ हमहूँ बैसल छी।-बबाजी अपन भरि दाढ़ीमे बिहुँसल रहथि... छीतन सदा कतहु असोथकित भ’ गेल रहथि... बड़का बेटा सूरोकेँ की कहथिन... भातिज रमेशकेँ कोन जवाब देथिन? काल्हि वंश बढ़तनि, कत’ बसतनि? इएह त’ एकटा चरिकठबा छलनि अपन अरजल, अपन जुआनीक निशानी, नरे बाबूक बाप दिग्विजय बाबूक निशानी, जे पछिला पच्चीस वर्षसँ हुनकर दखल-कबजमे छनि। ओकरे बचबै लए ओ आइ एत’ दिल्लीमे छथि, जकरा छीतन सदा डिल्ली कहि दै छथिन। रामबरन सिंह परोपट्टामे आतंक मचेने अछि। हुनका बूझल छनि, नरे बाबू तक ओकर शिकाइत पहुँचि गेल हेतै। ओएह आइ छीतन सदाकेँ पानि पिया रहल छनि। अपन बढ़ैत परिवारकेँ बसबै लए रामबरन चुप्पे-चाप जमीन्दारक पुरना रसीद उपरेलक। फेर जालसाजी क’ क’ दाखिल खारिजो करा लेलक। छीतनकेँ भनक तक नइं लगलनि। फेर एक दिन अनचोकेमे जमीन पर चढ़ि बैसल। हिनक केवाला, दाखिल खारिजक रसीद, पछिला पचीस वर्षक लगानक रसीद कोनो काज नइं देलकनि। ठेहुन भरिक तमाकू छनहिमे धंगाएल सामनेमे छलनि। आब ओकरा हड़पैमे कैक दिन लगतै? जखनहिं पुलिस ओकर जाली कागजकेँ मोजर द’ चैआलिस क’ देलकै, तखनहिं रामबरन सिंहक हाथ ऊपर भ’ गेलै। मुदा? मुदा नरे बाबूक एकटा इशारा दूधकेँ दूध आ पानिकेँ पानि क’ देतै। हुनकर मोंछक लाज रहि जएतनि! ...ओह, आगाँ-आगाँ रामबरन सिंह पाछाँ-पाछाँ ओकर हाथी सन-सन चारि टा बड़द आ सभसँ पाछाँ चानीक मूठि बला लाठी हाथमे नेने रामबरन सिंह। दस टा ज’न लगा क’ कोना तमाकू जोति गेलनि? ...नइं, छीतन सदा रहता, भुखलो रह’ पड़तनि त’ रहता दिल्लीमे, मुदा कोनो नौ छौ कइए क’ घुरता। ओ पलथी बदलि क’ बैसैत छथि। रौदी भीतर जे बिलाएल से बिलाएले अछि। आब राति भ’ गेलै अछि। आठ-नौक अमल। भितरीसँ एखनहुँ कोनो विदेशी धुनक लहरि एत्त’ धरि आबि जाइत छै। ताबे सामनेक केबाड़ खुजैत छै। इएह अठारह-बीसक रहल हेतै! छीतन सदा अंटकर लगबै छथि। ओकर एक झलक देखलाक बाद फेर ओइ दिस नइं देखल गेलनि हुनका। ओ देहसँ सट्टल एकटा जीन्स आ ऊपरमे तहिना गंजी मात्रा पहिरने छल। ओकर ई रूप देखल नइं गेलनि हुनकासँ। ओइ कपड़ासँ ओकर देह जत्ते झँपाएल नइं छलै, ओइसँ बेसी ओकरा उघाड़ करैत रहै। तैं छीतन सदा देबाल दिस ताक’ लगला। मुदा बबाजी आ पम्हउट्ठा छौंड़ाक गंथाइत नजरिक बिनु एक्को रत्ती परवाहि केने ओ ठसकासँ बाहर लौन दिस गेल आ फेर ओहने ठसकासँ वापस भ’ क’ भीतर अलोप भ’ गेल। की ई नरे बाबूक परिवारक क्यो छनि? छीतन सदा एकटक ओकरा जाइत देखैत रहलाक बाद अंटकर लगा रहल रहथि। भ’ सकैत अछि क्यो अड़ोसिया पड़ोसिया कि क्यो दोसर... मुदा से के कहतनि?

भीतरसँ अबैत विदेशी धुन एकाएक बन्न भ’ गेल। डेरा कने निसबद्द भेल। किछु काल धरि सब शान्त रहल। शान्ति भंग केलक रौदी, जे अही बीचमे कोनो दरवाजा खोलि क’ प्रगट भ’ गेल छल। कुर्सी पर बैसल धवल जटाजूटबला बबाजी ताबे अपन समाधिमे लीन भ’ गेल छला आ कि निन्नमे झुकि रहल छलाह। बगलमे बैसल पम्हउट्ठा छौंड़ा कोनो फिल्मी पत्रिका अपन कोरामे खोलि क’ तेना मूड़ी निहरौने रहए जे बगलमे ज’ बमो फुटितै त’ ओकर ध्यान टूट’ बला नइं रहै। तैं रौदी जीक नजरि सभसँ पहिने छीतने जी पर पड़लनि-साहेबसँ आइ भेंट नइं हैत!-रौदीक उद्घोषणा हुनका गोली सन लगलनि। ओ किछु पुछतथिन तइसँ पहिने बबाजी धड़फड़ा क’ अपन समाधि, कि निन्न तोड़लनि-हौ जी रौदी।-रोज-रोज एक्के बात। आइ कि भेलै हौ?

-की कही हम? हमरा हाथमे कुच्छो है? भेंट त’ ओएह करता।-रौदी अपन असहायता प्रगट करैत बाजल। बबाजी अपन धवल दाढ़ी पर तीन-चारि बेर हाथ फेरलनि। फिल्मी पत्रिकाक अध्ययन करैबला पम्हउट्ठा छौंड़ा ठाढ़ भ’ क’ अँगेठी-मोचाड़ केलक।

-अँए हौ?-बबाजीक स्वर कने तेज भेल-हमरा सबहक समयक कोनो मूल्य नइं?

-आब से हमरा की कहि रहल छी?

-सामनेमे त’ तोंही छ’ त’ कहियौ ककरा, देबालकेँ? सुनह, बात जानी हम सफा-सफी। पूछि क’ बताब’ जे भेंट करता कि नइं? नइं त’ एहन नेता सभ गोड़ पचासेक परमानन्द झाक जेबीमे रहै छथिन... मुदा बात त’ बुझिऐ, जे हमरा सबकेँ भेंट किऐक नइं होइत अछि?

-से साहेब हमरा नइं कहलनि अछि। ओ एखन फाइल देखबामे लागल छथि। अपने लोकनि काल्हि आबी। हमरा इएह हुकुम भेटल अछि!-रौदी अपना भरि कोमल भ’ क’ बाजल।

-त’ जाह! अपन साहेबकेँ कहि दहुन, परमानन्द झा चललाह। आब कहियो फेर ई देह एत’ पैर धरि नइं देत। हह... हद्द भ’ गेल साहेब! तीन दिनसँ कुसोथ्थरि देने एत’ बैसल छी आ हिनका लेखें धन-सन। कहै लए हमरा लोकनिक प्रतिनिधि छथि...।

बाबाक बात बिच्चहिमे रुकि गेल। फाटकक आवाजक संग ड्राइंगरूमक दरबाजा खुजल। सामने गहुमनक खूनल पोआ जकाँ लहलह करैत, एक हाथमे जरैत सिगार आ दोसर हाथे साँची सम्हारने नेता जी, माने नरे बाबू छलाह। ओ एकटक बबाजी दिस तकैत बजला-की बाजि रहल छलहुँ एखन?

बबाजी असमंजसमे चुप्पे रहला।-अहाँ हमरे घर आबि क’ हमरे गारि पढ़ि रहल छी। एत्ते हिम्मति अहाँकेँ? के छी यौ अहाँ?-नरे बाबूक स्वर बाबा खड़ग सिंह मार्गक यातायातक स्वरसँ ऊपर उठि चुकल छल।-जी हमरा लोकनि तीन दिनसँ घूमि रहल छी।-बबाजी अपन दाढ़ी पर हाथ फेरैत बजला।

-त’ की भेलै! अहाँ तीन कि तीस दिनसँ अबैत होइ। ई झोंटा-दाढ़ी बढ़ा क’ हमरा प्रभावित करए चाहैत छी। हम सात दिन धरि भेंट नइं करब। अहाँ कि कोनो पार्लियामेन्ट छी जत’ हमरा जाइए पड़त?-नरे बाबू चश्मा उतारि क’ हाथमे लेलनि। एतबे गरजलासँ हुनकर ब्लड प्रेशर बढ़ि गेल रहनि। ओ बबाजीकेँ गीरि जाइबला नजरिसँ देखि रहल छलखिन। बबाजीकेँ सनाका लागल रहनि। छीतन जी आ ओ पम्हउट्ठा छौंड़ा एखन धरि विमूढ़ जकाँ ठाढ़ भ’ ई सभ चकित भेल देख रहल छल। किछु काल त’ क्यो किछु नइं बाजल। नरे बाबू स्वयं एहि नातिदीर्घ अन्तरालकेँ तोड़लनि आ बबाजीकेँ डपटैत पुछलखिन-की काज अछि अहाँकेँ?

-जी हमरा नइं, हिनका छलनि। ई अपने इलाकाक सुरेन्द्र झाक बालक आइ. आइ. टी. मे प्रवेश चाहैत छथि। अपनेक अनुशंसा चाहैत छथि!-बबाजी धखाइत बजला।

-हम ने हिनका चिन्हैत छिअनि आ ने जनैत छिअनि, तखन अनुशंसा कोना करबनि!

-जी कुशेश्वरक सुरेन्द्र झाक बालक छथि ई।-बबाजीक ई उत्तर सुनिते नरे बाबू फेर तिड़ंगला।

-हम कुशेश्वर स्थानक ककरो नइं चिन्है छिऐ। कोनो सुरेन्द्रक दर्शन धरि नइं भेल अछि आ ने होएत।

-जी ओ अपनेक चुनावमे जी-जान लगौने छला। ओतुक्का प्रमुख छथि। एकबाली लोक छथि!

-एकबाली रहथु कि सिकन्दर। लाउ कत्त’ अछि फौर्म! लाउ लिखि दैत छी जे ने हम हिनका चिन्है छिअनि आ ने हिनकर बापेकेँ। इह, पूरा परोपट्टाकेँ लोकक जनबा-चिन्हबाक जेना हम कोनो ठीका नेने रही!-नरे बाबू एतबा बजैत-बजैत पस्त भ’ गेल रहथि। बबाजीक जवाब हुनका आर उत्तेजित क’ देने रहनि। ई चिकड़ा-भोकड़ी सूनि ओ पैंट आ गंजी वाली कत’सँ पहुँचि गेलै क्यो ने देखलकै। ओ थरथराइत आ घुमड़ैत नरे बाबूकेँ अपन पाँजमे ध’ नेने छलनि। ओहि छौंड़ीक ढेसा नेने नरे बाबू दिवान पर बैस रहला। हुनकर आँखि बन्न छलनि, शरीर निढाल। ठोरक दुनू कोर पर फेन आबि गेल छलनि। ई तीनू सामने ओहिना इतस्ततःमे ठाढ़ छला... दाढ़ी पर हाथ फेरैत धवल जटाजूट बला बबाजी... हाथक फिल्मी पत्रिकाकेँ मचोडै़त पम्हउट्ठा छौंड़ा, आ काँख तर पोटरी दबौने छीतन सदा।

छौंड़ीसँ टेक नेने नरे बाबू माथकेँ ग’र लगेबाक प्रयास केलनि आ हुनकर आँखि खूजि गेलनि। आगूमे पूर्ववत ठाढ़ ई तीनू गोटेकेँ देखि ओ फेर चिचिएलाह-जाउ अहाँ सभ!-नजरि पाछाँ ठाढ़ छीतन पर पड़लनि, त’ ठहरि गेलनि-तोरा की छियौ रौ?

-जी हमरा जे बुढ़ा मालिक जमीन देने रहथिन तइ पर रामबरन...

-जी हमरा जमीन पर रामबरन...-नरे बाबू मुँह दुसैत छीतनक बात दोहरेलनि। बनकट्टाक माइन्जन छीतन सदाकेँ एतबे बाजि भेलनि। नरे बाबू ओहिना गरजि क’ कहलखिन-जमीन पर झँझट छौ त’ कोट-कचहरी जो। थाना पुलि कर ग’। हमरा लग की करै लए अएलें? खाली तंग करै लए? भरि दिन तोरे सबहक काजमे लागल रहै छी से क्यो देखनिहार नइं।-एतबा बाजि ओ ओहिना ओलरल आँखि फेर बन्न क’ लेलनि। असोथकित नरे बाबू। किछु काल इहो लोकनि जकथक ठाढ़ भेल रहला कि ओ छौंड़ी एकबाइग कोरामे पड़ल नरे बाबूक बन्न आँखिकेँ देखि हिनका सभकेँ बाहर चल जाइक इशारा केलकनि।

ओना रातिक दस बजैत हेतै, मुदा बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर यातायात पूर्ववते छल।


४.आछे दिन पाछे गए 
            
                   आइ दिने खराब छनि,  भोर नंइ  जानि ककर मुंह देखने रहथि मोन नंइ
छनि। जे क्यो रहल हुए, अभगला के नीक नंइ हेतै । डेरा स निकलले छला कि बगलबला छौंडा तेना
छिकने रहनि जे लगलै जेना नाके देने अंतडीं-भोंतडी निकलि जेतै । बडा अबंड सब छैक चारू भर...
वैह मिड्ल-क्लास मानसिकता बला लोक। अनेरे एक दोसरा के जिनगी मे ताक-झांक करैत रहत ।
मिश्रा जीक छोटका बेटा सुनाइये क नंइ कहि देलकनि जे ई हमरा सीधे क्लास-वन नंइ बुझाइ छथि, क्लास-वन कत्तौ अहिना रहै छै...हौ खाली हिंदी अखबार पढैत देखलहक है कोनो एस.पी. कलक्टर के ?”  हिनका हिंदिये स काज चलि जाइत रहनि। भरि दिन त टीभी देखिते छथि, सब त वैह खबरि रहै छैक, तखन गाम-घरक खबरि जेहन ई अखबार मे रहै छै….फेर अपन एकटा गौंआँ छनि अहि अखबारमे।
आइ अठारहम दिन छियनि....रिटायर भ गेला अछि से दिन भरि मे कैक  बेर की कही पग-पग पर मोन पडै छनि...एखन ओ बस कि टैक्सी- स्टैंड दिस लपकलो जाइ छथि आ सोचियो रहल छथि जे कथी स जाथि ? जं टेम्पो रिजर्व करता त एकटा नम्बरी त खाइये जेतनि...एह! औफिस के तीन टा गाडी रहै। जं कोनो खराब भेल त शहर मे टैक्सी छलै । सामने स एकटा औटो सर्र स निकलि गेलनि। ई जाबे हाथक इशारा कि जोर स चिकडि क ओकरा रोकितथिन---ओ गोली जेकां निकलि गेल रहै। ताबे सिटी बस बगल स पास केलकनि । नंइ जानि कोन रौ मे ओ लपकल रहथि आ पौ-दान पर पैर रोपिते  जेना बस चलल छल, जे आइ नंइ मरितथि त घायल जरूरे होइतथि । हुनका एना लपकि क चढति देखि बस मे पहिने स ठाढ दू टा छौंडा हिनका दिस कनडेरिये देखैत किछु बाजल...की बाजल हैत ? चलैत बस मे  ठाढेठाढ मचकी झूलैत ओ  यैह सोचि रहला अछि जे आगां मे हिनके जेकाँ मचकी झूलैत  दुनू कौलेजिया की गप्प केने हैत.. कहीं हुनका एना उचकि क चलती बस चढैत देखि ओकरा अपन क्षेत्र मे अतिक्रमण बुझायल होइ....जे से !आइ हुनका येन-केन-प्रकारेण अपन चेक--अप करेबाक छनि,बाइ-पास भेल छनि । तैं अइमे त कोनो आसकतिक बाते नंइ छैक; डा.मेहरोत्रा नामी हर्ट-स्पेशलिस्ट छथि...ई बुझिते जे हम पूनाक डिफेंस कारखानाक नामी हेड माने एम.डी छी...जकरा युनिट के अनेक बेर कमांडर-इन-चीफ माने माननीय राष्ट्रपति महोदय सम्मानित क चुकल छथिन; ओ अति प्रसन्न भेला। ओ सेल्फ-डिफेंस लेल हथियार खरीद चाहैत रहथि । तैं ओइ ठाम पंहुचैक देरी छै...डा.मेहरोत्रा स की एप्वायंटमेंट लेता....पांच मिनटक त काज !  बाबू , भले हिनका सनक लोक सब सीमा पर नंइ लडैत अछि, मुदा कि हिनका लोकनि सन लोक ज राति-दिन नंइ खटै, नंइ पसेना बहबे, की सीमा पर फौज लडत...? किन्नहु ने। कारगिल युध्धक समय....कैक महीना तक  कहां  क्यो औफ लेलक...अहर्निश कारखाना चलैत रहलइ। समय-समय के बात... बाबा ! कने आगाँ बढियौ । हमरा सब लए जगह छोडबैक कि नंइ ?” ओ धडफडा गेला । धडफडा क ओ दुनू छौंडा स कने बेसिये दूर चल गेल छला । यैह, अही सब ठाँ अपन सवारीक कमी खलै छै...की ओ सत्ते एहन भ गेला अछि जे ई दुनू छौंडा हुनका स’ काकु करनि ? माने एहन बूढ...नंइ-नंइ एखन त रिटायरे केलनि अछि….एखनो टी-शर्ट धारण करै छथिन त की कहै छैक...बाइसेप्सट्राइसेप्स बांहि मे उछलि जाइ छनि । अपन समयक नीक टेनिसक खेलाडी, एक समय मे हिनका संगे एक्को सेट खेलाइ लए क्लबक सब(पढल जाय सुंदरी सब)लालाइत रहैत छल। से धरि ठीके ; जे केलखिन ताहि मे हरदम औव्वलि...हरदम अलग...सब स नीक । से आइ ओ एना कियैक सोचि रहला अछि ?रिटायर्ड भेला अछि टायर्ड नंइ ? आइ‌काल्हि साठि कोनो वयस भेलै ? मुदा एकटा बात ! ओ सेवा समाप्त भेला स पहिनंहे ई रिटायरमेंटक समय कोना कटता तकर सब बेवस्था क लेने रहथि । एत्ते तक जे बुढारी मे बेटा सबहक आगाँ हाथ ने पसार पडनि तकर नीक इन्त्जाम ओ बहुत पहिनहें क लेने रहथि...इहो सोचने रहथि जे ओ कोनो बेटाक आश्रम मे ताबे तक नंइ रहता,जाबे शरीर की समय सकपंज नंइ क दनि । ताबे कथी लए ककरो पर भार बनथिन.........
औ बुढा ! कत जैब ? आब त अंतिम स्टौप आब बला छै ?”
मोन त पितेलनि। मोन भेलनि जे ठांइ-पठांइ किछु कहि दियनि तेहन, जे फेर अनटोटल बजबे बिसरि
जाथि ई तेजस्वी नवयुवक ! मुदा बात बढेबा स की फैदा ? एखन काल्हि तक एहन-एहन मथदुक्खा
सब स बांचल रहै छला...गाडी रहै छलनि । नंइ जानि कियैक, नौकरी जाइ स बेसी आहि-- हुनका सर
-कारी गाडीक सुविधा खतम भ जेबाक अबै छलनि ।
डा. मेहरोत्रा हिनका चिन्हैत रहथिन, मुदा सब त नंइ चिन्हैत रहनि। बस स उतरि क अस्पताल पंहु-
-चैत-पंहुचैत पसीना स भीज गेल रहथि। पैर पटकि क गर्दा झाडिते छला---एत्तएना जुत्ता झाडै छी,से कने बाहरे बढि क झाडितंहु से नंइ  ?” बजै बला कंपाउंडर सनक लगलनि ।  सपरतीव केहन  !हिनका शिक्षा द रहल छनि ।
डा. साहेब कखन एथिन ?” ओ बात के नंइ सुनैत बजला ।
समय भ गेलनि अछि, अबिते हेता । से कियैक देखेबै ?”
हं, हमरा पेसमेकर लागल अछि....
से त बड बेस, मुदा नंबर लगेने छी ने ?”
डा. साहेब अपेक्षित छथि....तैं !
तखन त नंइ देखायल भेल आइ
से कियैक ?”
केहनो अपेक्षित क्यो कियैक ने होथि---डाक्टर साहेब बिनु नंबरे नंइ देखै छथिन ।
                       
ताबे डा.साहेब के गाडी पोर्टिको मे आबि कलागल।  ई लपकि क आगाँ बढला जे कहीं बाटहि मे काज बनि जानि । मुदा डाक्टर एको बेर नजरिओ उठा क हिनका दिस तकबो ने केलखिन त हिनका बड आश्चर्य लगलनि। मर, ओना घुठ्ठी-सोहार छलनि, क्लिनिक मे अबिते की भ गेलनि, एक बेर ताकियो लितथिन ने त कने सांत्वना भेटितनि । मुदा डाक्टर त घाड निहुरेने तेना गेलखिन जेना कि कहियो देखनंहु ने होथिन। बेस, हारि क ओ बडा याचनाक स्वर मे कंपाउंडर के कहलथिन जे ओ सेनाक कारखाना मे एम.डी.क पद पर स हाले रिटायर भेला अछि...बिच्चे मे ओ कंपाउंडरबा बात के लोकति कहकनि‌‌-- अपने एम.डी. रहियै ने, आब नंइ ने छियै....अइ पुर्जा पर अपन  नाम आ पता लिख दियौ बाबू साहेब ! चौथा दिन फोन करि क पूछि लेबै...लंबर आबि जायत।
….ताबे बाहर कोनो गाडी के रुकब आ चपरासी आ सिक्योरिटी के दौडति देख बुझबा मे भांगठ नंइ
रहलनि जे बाहर कोनो भी.आइ.पी.क गाडी लगलै ।



भी.आइ.पी. के रहथि से ई की जान गेलथिं। ई त साढे चौबीसे वर्षक वयस मे पूना मे जे नौकरी धेलनि से आब यैह रिटायर भेलाक बाद घुरला अछि । अइ ठामक सब वस्तु तैं ने अनचिन्हार लगै छनि ।फेर भी.आइ,पी. आ हुनका संगे अनेकानेक  चमचाज़ एन्ड लगुआ‌‌-भगुआ के सड-सडायल डाक्टरक चेम्बर मे ढुकति देखलखिन-- मोन खट्टा भ गेलनि । बगल मे ठाढ लोक स पुछलखिन त पता लगलनि जे ई अइ ठामक मेयर सैहेब छथि; आइ.ए.एस. ! हिनका पुर्जा कटेबाक कि लाइन मे लगबाक कोनो जरूरति नंइ ? कियैक त ई आइ.ए.एस. अहि ठामक मेयर साहेब छथि ।कियै; अपने जखन एम.डी. रहथि त अपने ई सुख नंइ भोगने रहथि की ? अपने प्रश्न पर सहमि गेला ओ ! चारू कात हियासलखिन....सबतरि निश्चिंतता पसरल छलै । ने हर्ष आ ने विस्मय । पेशेंट सब पैर मोडि क कुर्सी पर बैसल, गपियाति किछु गोटे हफियाति आ किछू झुकति । अजीब लगलनि हुनका। जेना समय रुकि गेल हुए । जेना एत्तुक्का सब गोटे मिलि क समय के ठुठुआ देखा रहल हुए ।  अपन-अपन दहिना हाथ सामने तनने, औँठा के बामा-दहिना घुमबति । डक्टरक चेम्बर स गल्लगुल्ल आ ठहाका । एत्ते लोक इम्हर मांछी मारैत अछि त मारौ । आगंतुक मेयर छियै, सकैत छै डाक्टरक दोस्त हुए । एतबा तसब दोस्त एक दोसरा लए करै छै।
की गुन-धुन मे लागल छी यौ बाबा ?” कंपाउंडर हिनका दिस आंखि गुडारि क देखलक--- किछु
करब डाक सैहेब, बिनु नंबरे किन्न्हु नंइ देखता ।
हुनका मोन मे एलनि कि आइ स किछुए दिन पहिने अइ तरहक लोक के अइ तरहे बजबाक साधंस होइतै ? से छोडूने ! डक्टरबेक ई हिम्मति होइते जे एना भावे ताच्छिल करैत...जेना हम त कहियो किछु रहबे ने करी...हमरा स ओकरा कहियो भेंटो नंइ....आदि इत्यादि बात सोचैत ओ तय केलनि जे आब फेर कहियो एकरा क्लिनिक पर पैर ने देता । हुनका लगलनि जे डाक्टर मेह्रोत्रा स देखेबाक हुए त दुखित पडै स तीन मास पूर्वहिं नंबर लगा लिय’, नंइ त जाबे डाक्टरक नंबर आओत ओइ स पहिने भगवानक घरक नंबर आबि जेतै कारनीक ।  ई सब सोचैत, आजुक दिन आ आजुक जमाना के मोन भरि गरियबैत आ श्राप दैत ओ फैसला केलनि जे मौगी छैक त की हेतै ? अपन अस्पतालक डा.यास्मीन नीक डाक्टर छथि। हुनके स अपन रूटिन चेकप करेता । ओना ओ स्वस्थ छथि, मुदा शरीर त अबल भैये गेलनि। जखने देहके काटखोंट भेल, कि फेर पहिने बला बात नंहि ने रहि जाइ छै ?से त पचपने मे सीवियर नंहि त माइल्ड धरि हर्ट एटैक रहबे करनि; तीन घंटा पर होश आयल रहनि। फेर मोन पडलनि आइ-काल्हुक रंगताल । आब कोनो डाक्टरक पुर्जा ल कत्तौ दबाइ नंइ खरीदल जा सकैत अछि। जै मोहल्लाक डाक्टर ओही मुहल्लाक दबाइक दोकान मे हुनकर लिखल  दबाइ भेटत । तैं सोचलनि जे दबाइ खरिदिये कजाथि । मुदा ओत्तुक्का भीड....बापरे! कत्ते लोक दुखीत पडैत छैक ? काल्हि तक ई फार्मेशियोक मुंह ने देखने रहथिन । आब लाइन मे लाग पडतनि। अइमे त सांझ भ जेतनि ? से जे भ जाउन ! आइ आब रत्तन सिंघ की रामगुलाम लाल बाडाबाबू नंइ छथिन-- जे सब काज साम दाम दंड भेद” ,माने जे कोनो ने कोनो प्रकारे कैये या करवाइये लैत रहथि...आब ओ स्वंय छथि, सब मोर्चा पर पुनश्च असकर, नितांत एकसर ।  
मुदा ई काज हुनका कर पडतनि । संभवतः तीस-चालिस वर्षक बाद फेर स हुनका लाइन मे लागपड
--तनि ? अत्यंत कटु सत्य यैह छियै--- एना कछ-मछ कियै क रहल छी बुढा...कलमच रहब से नंइ ?”क्यो हिनका नसीहत देलकनि। पांच बाजि गेलै जखन हिनकर हाथ मे मास दिनुका दबाइ एलनि।रौद एखनंहु मुंह पर थापड जेकाँ लागि रहल रहै। घर मुंहा जैं भेला कि सामने स खाली औटो जाइत देखखिन । हाथ देलखिन, बैसला आ पांचो डेग ने औटो गेल हेत जे दू टा बलिष्ट कसरतिया जवान हिनका रौद दिस ठेलैत बैस लगलनि तहां-हांकर लगला।मुदा हिनकर ;हाँ-हाँ के ओ दुनू पर कोनो प्रभाव नंइ पड्लै ।ओइ मे स जकरा गरा मे ताबीज रहै से हिनका कने आर रौद मे ठेलति बिहुंसलनि आ कहलकनि---बहुत दिन छाहरिक सुख भोगलें बबा ! आबे हमरा सिनी जुआन-जहान के नम्मर छै । आ दुनू ठठा कहंसि देलकनि।