सुकान्त सोम


सुकांत सोम 1950-

जन्म दरभंगा जिलाक तरौनी गाममे 1950 ई. मे भेलन्हि । बी. ए. पास कए ई पटनाक दैनिक ‘जनशक्ति’क सहायक सम्पादक छलाह । फेर नव भारत टाइम्स, पटनामे।बाल्यवस्थासँ अपन पैतृक (पिता यात्नीजी) गुण कविता करबाक तथा कथा लिखबामे सेहो यश अर्जन कएलन्हि अछि । वर्त्तमान राजनीति सामाजिक विषयसँ सम्बद्ध व्यंग्यात्मक, सरल भाषामे लिखल नव कविता हिनक विशेषता छन्हि । गामघरक परिवेश तदनुकूल शब्द एवं बिम्ब रचनामे क्रमहि सिद्ध छथि ।


कविता:निषेधाज्ञा, आगिक बेगरता, निज संवाददाता द्वारा, एकटा युद्धक तैयारी, प्रतीक्षान्त, एहि रात्रि शेषमे, सभ किछु ठीके-ठाक छै, हाथ, बेकाली प्रसंग



निषेधाज्ञा
हे हमर मालिक परवरदिगार।
अहाँक आज्ञाक अक्षरशः पालन करैत
डिगडिगिया पीटबा दैलिऐ’ए
बसन्त आबि गेलै’ए। सभकें
सामूहिक वसन्तोत्सवमे अनिवार्यतः भाग लेबहि टा पड़तै
सरकारक हुक्मउदूली कर’बलाकें
एकेटा बस एकेटा उपहार भेटतै
ई ओकर अन्तिम बसन्तोत्सव हेतै
मालिक, अपनेक आदेश आ पालन नहि हो। ई
आठम आश्चर्य हेतै, तैं त’
लोककें बुझा देल गेलै’ए
सभकें मस्तीमे झूमि-झूमि
फाग आ जोगीड़ा गएबाक छै
घ’र-आँगनमे नहि, शहर आ बाजारमे
राजपथ पर टोलीमे बँटि क’
रंग-अबीर खेलएबाक छै, कि
सरकारक रथ बहराइत त’ ओकर चक्का
रंग-अबीरक दलदलिमे
दच द’ फँसि जाइक
सरकारक ठोर पर मुस्की लहरा जाइक...
श्रीमान्, अपनेक आदेश
ककरा अनसोहाँत लगतै
जान छै, जहान छै
एखनो जीवन भार नहि भेलै’ए
कथीक कमी छै? जँ
दू पाइ बेसिये लगलै त’ की भेलै
एखनो दूध-दही भेटिए जाइ छै
घी’क बदला डालडासँ काज चलिए जाइ छै...
सत्ते कहै छी, सरकार
अपनेक कृपा छै। एक बेर जँ
कनडेरियो देखि लेबै
जीवन धन्य भ’ जेतै!
मालिक, विश्वास कएल जाए
ई मुँहदेखल बात नहि, कि
अहाँ मुस्काइ छी: चाउरमे आगि लागि जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: गहूमक लहलहाइत खेत झरकि जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: सरिसो की रैंची की तीसी अकास चढ़ि जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: मटिया तेल अपनहि लहकि जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: बाँगक खेती सुड्डाह भ’ जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: गाड़ीक पहिया जाम भ’ जाइ छै
अहाँ मुस्काइ छी: हमर दाम्पत्यमे दरारि फाटि जाइ’ए
सरकार, अहाँक एकटा मुस्की
अरब-खरबसँ बेसी महत्त्वपूर्ण अछि
सरकार, अहाँक एकटा मुस्की
अखबारक सुर्खी बनै’ए
सरकार, अहाँक एकटा मुस्की पर
कुर्बान अछि करोड़ोक देश-दुनियाँ...
गरीबनवाज, मुदा, माफ कएल जाए
एकटा खानगी बात
कठोर आ चिन्तनीय बात जे
कहितहुँ नहि बनै’ए आ
नहि कहनाइयो अपराधी बनबै’ए
आइ-काल्हि एना बताह जकाँ
पछबा किऐ लपटै छै?
आर किछु नहि त’
खढ़-पात खराइ छै
नाँगट गाछक सुखाएल ठारि सभ
एक दोसरसँ टकराइ छै
सत्ते कहै छी मौसमक एहि अक्खड़पनीक
किछु लोक लाभ उठा सकै’ए
से दियासलाइ किनबाक साहस क’ सकै’ए
मालिक, हम नमकहराम नहि छी
एकटा निवेदन
अपने आदेश जारी कएल जाए
पछबाक लपटब पर प्रतिबन्ध लगा देल जाए
मालिक, परवरदिगार! बस
इएह टा उपाय रहि गेल’ए आब
एक्के टा, इएह टा।




आगिक बेगरता

ओहि दिन की भ’ गेल रहै, की ने!
अहाँ बियनि हौंकैत रहि गेल रही
चूल्हिकें ऊपर-नीचाँसँ फुकैत रहि गेल रही
गोइठा-खुहरी कोंचैत रहि गेल रही...
अहाँ अपस्याँत भ’ गेल रही।

आगि पजारबाक अपन अगुताइमे
बेहाल अहाँ अँगनासँ बहरा क’
भरि गाम बौआएल रही। मुदा,
एकटा बात कहू
एहनो त’ होइ छै जे
पझाएल छाउरमे
करचीक कने टा टुकड़ी किम्बा
गोइठाक मिसिया भरिक खण्ड
जरिते रहि जाइ छै
एकटा जीवित अग्नि-पिण्ड...

अहाँ से कहाँ तकने रहिऐ?
चूल्हिमे भरल छाउर कहाँ उधेसने रहिऐ??
सत्ते कहै छी
अहाँक अगुताइ आ भरि गाम फिफिआएब
हमरा कनियों नहि सोहाएल रहए। ओना,
एहनो त’ होइ छै जे कतेको बेर
ककरोसँ माँगि क’ आनल आगि
चूल्हि धरि जाइत-जाइत मिझा जाइ छै, आ तखन
कते दुख आ तामस उठै छै! सत्ते
आगि त’ आगिये थिकै आ
आगिक बेगरता आन कोनो विकल्पसँ
कोना पूरा भ’ सकै छै!

निज संवाददाता द्वारा
1
सेवामे श्रीमान् सम्पादक महोदय, हुजूर!
एम्हर त’ बरोबरि इलाकाक खबरि छपिते रहलैक अछि
राम बाबूक गाछीक नहि मजरबाक समाचार
बाबू साहेबक महीसकें एक्के संग सात गोट पड़रू होएबाक
दरोगा साहेबक तुलसी सुखएबाक समाचार...
सभटा छपैत रहलैक अछि हुजूर!

रेलवेसँ सोलह आ सड़कसँ बारह मील दूर
नदी आ पहाड़ीक बीच बसल एहि इलाकाक
एहि गरीब संवाददाता पर अपनेक विशेष कृपाक
कोना बखान करी-- अवगतिए की?

मुदा, आजुक समाचार त’
अद्भुत अछि अजगुत अछि। एहन खिस्सा
ने कहियो देखल ने सुनल अछि
श्रीमान् कृपा करबै
एहि समाचारकें पहिले पन्ना पर स्थान देबै
नीक जकाँ देखि सुनि
दू काॅलम की तीन काॅलममे
मोटका-मोटका पैघ-पैघ अक्षरमे एकर शीर्षक देबै।
हुजूर, एहि समाचार पर
अपने गाम-घरक
जिला जयबारक बुझि ध्यान देबै!

2

तहिया सौंसे इलाकामे खलबली मचि गेल रहै
एहन विशाल हाथी आइ धरि ने क्यो देखने रहए, ने सुनने रहए
बूढ़-बूढ़ानुसक कहब छनि
रामपुरक बाबू साहेब किम्बा राजपुरक राजा किम्बा
हमरा लोकनिक महाराजोक हथिसारमे
एहन ऐरावत-सन हाथी नहि छलनि। मुदा
से त’ खिस्साक पेनी थिक! बात शुरू होइ छै कि
रजोखरिक पहाड़ सन महार पर ई हाथी
कहिया आ कोना अएलै आ अबिते तुरन्ते किऐ मरियो गेलै
इएह त’ प्रश्न छै जकर थाह-पता ककरो नहि छै
मामिला गम्भीर छै! सत्ते रहस्यक पर्दा बड़ मोट छै।

मुदा, हुजूर सम्पादक महोदय!
एकरा बाद बात आरो बढ़ै छै
प्रेत-लोकक खिस्सा जकाँ रहस्य-दर-रहस्य बनै छै।
हाथीक लहास पर
पहिने एकटा गिद्ध फेर अगिला दिन दोसर गिद्ध खसल रहै। से
पहिलकें दोसर आ दोसरका कें पहिल एकदम्मे नइं सोहाएल रहै, कि
अपन-अपन पाँखि सम्हारि लोल आ चाँगुर पिजबैत
एक दोसरा पर टूटि पड़लै! आ तै खन
देश भरिक गिद्ध दू दलमे बँटि क’
रजोखरिक पहाड़ सन मोहार पर आबि गेल।
युद्ध घमासान रूप लेलक
गिद्ध सभ मरैत रहल-मारैत रहल
मुइल हाथीक देह पर एक लोल मारि
अपन-अपन प्रतिद्वन्द्वी पर टूटैत रहल।
एकटा रहस्यक पर्दा उठैत नहि छै कि दोसर रहस्य जनमैत छै। आ
एहने समयमे एकटा बुढ़िया रजोखरिक पहाड़ सन मोहार पर
पहुँचल, श्रीमान्! आ,
जे बात ने देखल छल ने जानल
ने बूझल छल ने सूनल से इएह थिक कि
बुढ़ियाक मुँहमे तीने टा दाँत छलै
तीनू सुल्फा सन मुँहसँ एक बीत बाहर धरि लटकल
लोकक पैरमे जेना बगुलबा काँट गड़ै छै, तहिना
कोनो वस्तुमे धँसै छलै
दू टा दाँत दुनू गलफरसँ आ
एकटा सोझाँसँ बहराएल छलै। से,
हुजूर, श्रीमान् देखि-देखि लोककें त्राटक लगै छै
बुढ़ियाक आगमनसँ दुनू बुढ़बा गिद्धक चेहरा पर मुस्कान अएलै
ओकर अगवानीमे किछु काल लड़ाइ रोकि देल गेलै।
गिद्ध सभ बाट देलकै। बुढ़िया हाथी धरि गेल
हाथीक लहासमे अपन सुल्फा सन दाँत गड़ौलक
बु़िढ़याक आकृति हरियर भ’ अएलै, कि तै खन
गिद्ध-संघर्ष फेर शुरू भ’ गेलै।

3
बस! एखन त’ एतबे समाचार अछि, आगू
गिद्ध सभक आपसी संघर्ष जारी छै, हुजूर!
गलती-सलती माफ करबै
अशुद्धकें सुधारि क’
समाचारकें बड़का-बड़का मोटका शीर्षक द’
पहिले पन्ना पर सजा क’
छापि देबै, श्रीमान्
रहस्यकें सार्वजनिक बहसक विषय बना
समाधानक सार्वजनिक उद्योगक दिशामे
इलाकाक जनताक उपकार कएल जाए, श्रीमान्! जत’
गिद्धक संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़िते जा रहल छै, हुजूर!

एकटा युद्धक तैयारी
पिता, हम घुरि आएल छी। हमरा
कतहु किछु नहि भेटल। एक हाथमे
ह’रक लागनि आ दोसरमे पेना नेने
नासिकाग्र पर जमल पसेना बुन्नवला
अहाँक आकृति नहि बिसरि सकलहुँ। नहि बिसरि सकलहुँ
मेघडम्बर तर बिताओल गेल जेठक दुपहरिया।
मोने अछि आहिना
कोना कोना अहाँ बबूरक गाछ कटैत गेलहुँ आ
फेर कोना कोना ओ उगैत रहलै। बगुलबा काँटसँ घेरल
गाम स्वतन्त्रा नहि भेलै।
गामक मुखियाक चाँगुर बड़ चोखगर छलै आ अहाँक
आकृतिकें कैक ठाम ने छीलि देने रहए। तहिया
हम नेना रही आ
हमर तामसकें नेनपनीक संज्ञा द’ देल गेल रहए।

मोने अछि
पच्चीस वर्ष पहिने अहाँ बाजल रही
ई सपना हमर नहि थिक। ई आकास हमर नहि भ’ सकै’ए आ
मुखियाक समधानल चाट अहाँक गलफर पर बजरल रहए कि
छट द’ बारह टा दाँत मुँहसँ छिटकि गेल रहए।
ओलतीमे पसरल खून पर माछी भिनकैत रहलै।
सत्ते कहै छी
जमल आ सुखाएल खूनक कारी रंग नहि बिसरल छी। मुदा ओ रंग
हमर कवितामे नहि आएल। नहि आएल हमर कवितामे
अहाँक दाँतविहीन मुँहसँ बहराएल चीत्कार। अहाँक मसकूरसँ
उठैत रक्तक फब्बाराक एक्कोटा बुन्न
हमर कविताक कापी पर नहि खसल।
तैयो, अहाँ कें बड़ आशा रहए
हुनक माँसल तरहत्थीक स्पर्श हमरा सुख देत। मुदा
से नहि भेलै। हुनक
एकटा हाथ कोमल आ दोसर बघनखा बला रहनि।
हुनक स्नेहक गवाही हमर पीठ पर भेटत अहाँकें। हमर
आँतकें ओ ताँति बना क’ छोड़ि देने छथि, पिता!
मुदा, तैयो
हमर आँखिसँ लुत्ती नहि बहराएल। हमरा सोझाँ
अहाँक दाँतविहीन मुँहसँ बहराएल चीत्कार नचैत रहल। ई
हमर सभसँ पैघ गलती रहए, पिता!
आ, आब किछु नहि चाही, मात्रा
भूमिस्थ भेल अहाँक ओ बारहो टा दाँत आ कंकाल भेल आकृति।
अहाँक नरकंकालकें पीठ पर लादि बारहो टा दाँतकें हथियार बना
एकटा युद्ध आरम्भ करब, कि
मृत्युक उपत्यका ई देश हमर नहि भ’ सकैछ
महा-श्मशान बनल ई देश हमर नहि भ’ सकैछ
जल्लाद सभक ई देश हमर नहि भ’ सकैछ
जोआन आकृतिकें तेजाबसँ जरा देब’वला ई देश हमर
नहि भ’ सकैछ
ई देश हमर नहि भ’ सकैछ, पिता!

प्रतीक्षान्त
चारि गोट बुर्ज ठाढ़ कएलासँ किछु नहि होइ छै
सत्यक भ्रम किम्बा बेसाहल सपनासँ नहि चलै छै कोनो गाम
मीत हे, बड़ जरूरी छै किछु फूल
गन्धवह बसात आ
मौसमक शालीनता

गामक चारू टा बुर्ज आब ढनमना रहलै’ए आ
लाल होएबाक परम्परासँ फराक होइत
हमरा लोकनिक सीमाहीन सन्त्रासमे भसिया रहल छी, तैयो
शताब्दीक उत्तरार्द्धक एहि रौदमे
बर्फ खसिए रहल अछि
गंगा निर्विकार
सागरमुखी छथिए

बेरंग बुर्ज सभक दोहाइ दैत हमरा लोकनि
कखनो बोकारोक विस्फोटमे
कखनो चासनालाक बाढ़िमे
कखनो बंगोपसागरक चक्रवातमे
कखनो लद्दाख आ कच्छक रणमे
मारल जाइ छी
सभ दिन सभ ठाम
प्रतिवाद विहीन
मीत हे, हमरा लोकनि एखनो
एहि चैती बसातमे प्रतीक्षारत छी कि
क्यो त’ आबए आ
एहि खराएल काश वनक निरंग होइत अकाशमे
एकटा रंग पसारए
भ्रम आ सपनाकें फरिछाबए
क्यो त’ आबए।

एहि रात्रि शेषमे
सीमानक पीपरक छाहरि पार कएलाक बाद
विस्मृतिक गह्नरमे चलि गेल एकटा गाम आ हमरा
एकटा सीमाहीन बाट टनैत रहल। एही बाट पर
दोरस बसात सहैत बुढ़बा ब’र
महाकालक यात्राक निसंग साक्षी बनि ठाढ़ छल
एही बाट पर एकटा सुग्गा गरामे
मुक्तिक तगमा लटका क’ एकटा ऐतिहासिक
जलाशयक पहरामे बुढ़ा गेल छल

मोहना च’र टपलाक बाद
दरारि फाटल खेत वर्जनाक स्वर बनि चिकरैत रहल
छारनि भेल जीबछक पारसँ
अबैत रहलै हाक: ‘घुरि आउ।’ मुदा,
मीत हे, से नहि भेलै। यात्रा पथमे आब
मोन नहि पड़ै’ए भग्नावशेष होइत एकटा गाम
वक्षकें चीरैत भादब बनल दुपहरिया

सत्ते, भाग्यरेखा तरहत्थीसँ दूर होइत गेल
काल बैसाखीमे उड़ि गेलै चोरालुक्खी आ धूरा माटिक खेल
एकटा अतीत: हमर गाम
एकटा भविष्य: अनागत नगर
एकटा वर्तमान: अन्हार जंगल
आ एहि सभसँ संघर्षरत
महाकालक यात्राक साक्षी ब’रक गाछ
पवित्रा जलाशयक प्रहरी आ मुक्तिक दूत सुग्गा...

नहि, अहाँ नहि मोन पड़ै छी आब। मुदा, एखन त’
हमर टूटल खाटक नीचाँ
एहि रात्रि शेषमे पसरल अछि
थारी भरि इजोरिया।

सभ किछु ठीके-ठाक छै
वैदिक नदी आ परी कथाक पहाड़ी सभसँ बेढ़ल
तीस वर्षक विषम दूरीमे पसरल गाम हमर
कुमारि सपनासँ बेसी रहस्यपूर्ण आ
सागरक लहरिसँ बेसी लयपूर्ण
स्थिति आ वस्तुक सम्मिश्रणसँ गुर्जिर रहल अछि
भोर आ साँझक दरम्यानी दूरीकें नापि रहल अछि। आ एम्हर
व्यक्ति आ स्थितिक बीच तालमेल स्थापित करैत-करैत
हम किंकत्र्तव्यविमूढ़ भेल बैसल छी। अपन
आत्मीय कह’ जोगर सम्बोधनकें भिड़िया रहल छी।

अहाँ कोनो अन्यथा नहि बूझू
सभ किछु त’ ठीकेठाक छै।
एते पैघ आबादी बला चारि टोलमे बसल गामक
कोनो ने कोनो घ’रमे प्रत्येक राति भोज होइते छै आ
हमरा सन कदन्न भोजीकें पकवानक सुगन्धि भेटिते छै...
प्रार्थनाक पुस्तक आ मालिकक दरबाजाक बीचक
अन्योन्याश्रय सम्बन्धकें फरिछाइए देल गेल छै...
गामक सभ टा पैदार लोक प्रतिदिन
अथबलक विरुद्ध अपन संघर्षकें नव रणनीति दैते अछि...
गामक मुखिया लोककें निर्भय आ निर्मम
हेबाक उपदेश लगातार दइए रहलाह अछि...
जड़कालाक एहि मौसममे बोरसिमे
पकाओल जाइ’ए अतीत आ भविष्य अपन
बनौआ दाँत प्लास्टिक पिसैत प्लास्टिकक हाथ नचबैत
गामक लोककें बजरैत रहै’ए...
हमरा लोकनि अपन रचनात्मक मूल्यकें
बेसीसँ बेसी दाममे बेचबाक लालसामे
प्रतिदिन व्यापारी संघ सभसँ अपील कइए रहल छी। आ से
कोनो अनट नहि भेलै
युग सौदेबाजीक थिकै। मोल-तोलक थिकै। आ
हमर गाम आ गामक लोक
एखन सौदेबाजीमे मगन अछि। सत्ते, गाममे त’
सभ किछु ठीकेठाक छै। ओना
अहाँकें की बुझाइए?

हाथ
इएह हाथ त’ काज करैत अछि
इएह हाथ माटि कोड़ि फसिलक विकास करैत अछि
इएह हाथ जनैत अछि
कत्ते उर्वर होइ छै माटि,
घाम आ श्रमक सम्बन्ध
इएह हाथ काज करैत अछि

इएह हाथ काज करैत अछि
इएह हाथ जनैत अछि, की अन्तर छै ठाम-कुठामक पानिमे
समुद्रक नोनछराइन पानिमे आ
गंगाक शीतल पवित्रा जल
खेतक फसिलमे कत्ते लाभप्रद होइछ
इएह हाथ जनैत अछि

इएह हाथ काज करैत अछि
इएह हाथ गाछ कटैत सारिलसँ टकराइत अछि
इएह हाथ जनैत अछि
पाँखुरक ताकति आ कुरहरिक चोट
सारिलकें कत्ते ठाँ’सँ तोड़ै छै
इएह हाथ कुरहरि आ हाथक सम्बन्ध जनैत अछि
इएह हाथ काज करैत अछि!

एक टा जबदाह सपनासँ मुक्ति
भरि दिनुका थाकल वस्त्रा उतारि
तानल खाट पर ओंघराइते मुना गेल करै’ए आँखि
मेघक मारिसँ त्रास्त उदास इजोरियामे
कोनो अनाम अदृश्य नदीक तट आ
बालु आ बालु आ बालु
अदौ कालसँ
एहिना बितैत जा रहल छै राति
किछु नहि बदलै छै
ने सन्त्रास्त इजोरिया ने अदृश्य नदी
ने हवामे नचैत कोनो बिसरल उदासीक भास

सभ राति एहिना होइ छै
बाँचल भेटै’ए कारी-झामर चूल्हिमे
एक बाकुट छाउर आ माटिक तीख गन्ह
आ जीह पर बैसि जाइ’ए जरल माँड़क स्वाद
हमर दुनू गफ्फा एक दोसरामे फँसि जाइए
तरहत्थीसँ बहराए लगै’ए
सलाइ खरड़बाक ध्वनि
निहुरि जाइ’ए धुआँ
चूल्हि फुकबाक मुद्रामे आबि जाइ’ए
ठोर जीह गलफड़
गुड़...गुड़...गुड़ाम्
धारमे कोनो तामक लोटा की कलसा की घैल डुबबाक
विकट शोर गूँजि जाइ छै
कोना आ की भ’ जाइ छै
लेबराह इजोतमे सभ टा उनट-पुनट होअ’ लगै छै
आ तै खन टिटहीक कनबाक ध्वनि-प्रतिध्वनिक संग
अवतरित होइ’ए छाया शृंखला
अपन पुरातात्विक बाना उतारि ठाढ़ भ’ जाइए खगता
विचारक खगता
पानिक खगता
आखरक खगता
इजोतक खगता
अपन खगता हुनकर खगता
देह-छोहक खगता
तरल-कठोर स्पर्शक खगता
रक्त आ रक्तमे उष्मा आ प्रवाहक खगता
खगता कारी खगता उज्जर खगता लाल खगता रंग-बेरंग
चिराइन गन्हक संग खगताक रेत पर
ककरो हाक देबाक प्रयासमे
फटबाक सीमान्त धरि तनि जाइ’ए गरदनिक नस
कि तै खन खुजि जाइ’ए आँखि मुदा
पिपनी पर बैसले रहै’ए जबदाह सपना
सभ दिनुका राति एहिना बितै छै
सभ रतुका भोर एहिना होइ छै
सभ साँझ अनादि सपना आकुल करै’ए
सभ भोर अनन्त सपना व्याकुल करै’ए

चाकर-चैरस कान्ह आ बलिष्ठ बाहु
वामनसँ प्रतिस्पद्र्धामे बाझल चरण चक्र
हमरहि श्रमसँ चमकैत दिनमे
समय हमर निस्संग बनल रहै’ए
घुन्ना आ चुप्पा
अनुपस्थित मोगलक कर्जदार
विश्वासघाती यौवनसँ लड़ैत-लड़ैत
वयसक पाँतर नपैत-नपैत
एक दिन घास पर पटाएले-पटाएल
माति गेल मोन
कानमे गूँजल संगीत
मौसमसँ लड़ैत घास-पातक संगीत
जीव-जन्तुक चरण चालनक संगीत
चिड़ै-चुनमुनीक जमीन पर उतरबाक
आ पाँखि तौलि अकाससँ उड़बाक संगीत
पहाड़सँ खसबाक बाध-बोन पटबएबाक
धारक प्रवाह बनैत सागर मिलनमे आतुर
धरफराइत दौड़ैत पानिक संगीत
सूर्य-चान ताराक उगबाक संगीत
किछु खसबाक किछु उठबाक संगीत
कोनो हास कोनो रुदन कोनो हाक
कोनो जागरण कोनो मूच्र्छना
सभटा सुनलिऐ
धरतीक संगीत सुनलिऐ
बड़ी काल धरि
पड़ले पड़ल
कान पाथने
गति संगीतक एक्के टा बोल सुनलिऐ
सुकान्त, अहाँ पर दया अबै’ए!

बेकाली प्रसंग
देहरि नाँघू
दरबज्जा छोडू
घोघ उठाउ
मिरजइ त्यागू
डेग बढ़ाउ
बाहर आउ
बजारमे आउ
अपन सभ टा सम्पन्नता नेने
अपन सभ टा विपन्नता नेने
आउ, बजारमे तँ आउ

सौदे बनि क’ आउ
सौदागर बनि क’ आउ
रंग आ रूप ल’ क’ आउ
नाज-नखरा ल’ क’ आउ
जाड़ आ गर्मी ल’ क’ आउ
खेतक माटि खरिहानक मेह
सरोवरक कमल डबराक भेंट
आम लताम हींग हरदि
गूलड़ि पाकड़ि आक-धतूर
रोग व्याधि औषध-आसव
मरनी-हरनी शौच-अशौच
जे किछु अछि सभ ल’ क’ आउ
अहाँ आउ, बजारमे आउ

हँसैत समृद्धि कनैत गरीबी
फोफनाएल दुक्ख चिक्कन सुख
उद्दण्ड मर्दानगी दमित मातृत्व
गिद्ध लालसा शिखर आडम्बर
फेनिल शिल्प अर्थहीन वाग्मिता
नष्ट विचार कुण्ठित चेतना
ध्वंस मन्दिर छर् िंआस्था
दाहक प्रेमलीला तेजाबी व्यभिचार
उपेक्षित इजोत पोषित अन्हार
एकरे बेगरता एकरे व्यापार

गीत नहि भास ल’ क’ आउ
ज्ञान नहि आखर ल’ क’ आउ
संस्कार नहि आचार ल’ क’ आउ
संसार नहि घर ल’ क’ आउ
संगी-संगतिया नहि असकर आउ
पझाएल आगि नेने
जबकल पानि नेने
लोथ पैर नेने
लुल्ह बाँहि नेने
जबिआएल मुँह खोलसाएल आँखि
बहीर कान बन्न नाक मोट चाम आ
बिन खोपड़ीक माथ ल’ क’ आउ
आउ, अहाँ बजारमे जरूर आउ