उषाकिरण खान



उषाकिरण खान 1945-
जन्म:१४ अक्टूबर १९४५,कथा एवं उपन्यास लेखनमे प्रख्यात । मैथिली तथा हिन्दी दूनू भाषाक चर्चित लेखिका ।प्रकाशित कृति:अनुंत्तरित प्रश्न, दूर्वाक्षत, हसीना मंज़िल (उपन्यास), नाटक, उपन्यास ।

कथा:१.त्याग पत्र २.चिनबारक दीप
१.त्याग पत्र


विलास बाबा आइ पैंतीस बरिसक उपरान्त मुखिया नइं रहलाह। मुखियाक पद ओ स्वेच्छासँ त्यागि देलनि। आब मोन घोर भ’ गेल छलनि। गामक समस्या सुरसाक मुँह जकाँ बढ़ल चल जा रहल छलै। दस गामक मुखिया तँ छलाहे, दिशान्तरमे सेहो पर-पंचैती कर’क लेल बजाओल जा रहल छलाह। अपन हित-कुटुमक बाँट बखरा होइ, कि जाति बन्हनक कोनो मामिला, विलास बाबाक गप्प लोक सुनै; लछुमन-रेखा जकाँ तीन डरीर पाड़ि क’ ओ जे कहथिन से लोक हँसी-खुसी मानि लै।
बाल बच्चा सभटा कब्जामे छलनि विलास बाबाकेँ, पत्नी कहलमे रहनि। पाँच टा बेटामे सभसँ छोटका बेटा बालुक पैकारी करैत छलनि, अपने पर-पंचैती आ गामक डाक्टरी करैत छलाह। आर. एम. पी. के सर्टीफिकेट छलनि। माँझिल बेटा आ जमाइ ताहिमे संग-साध देब’ लागल छलखिन। साँझिल दू टा सहायक संगें ल’ क’ बेनीपुरमे गाय महीसक बथान खोलि नेने छलाह। नीक कमाइ होइ छलनि। ताहिसँ पैघ भाइ गूड़क व्यापार करैत रहनि, आ सभसँ पैघ बेटा अमीन छलनि, जे कतहु दक्खिनमे सरकारी क्वार्टरमे रहै रहनि। सभक परिवार गामेमे रहनि। चैघरा हवेली छलनि। दुआरि पर माल-महीस, कथूक कमी नइं। गामक स्कूलमे पोता-पोती पढ़ैत रहनि। विलास बाबाकेँ बूझल छलनि जे अजुका समयमे बेटीकेँ सेहो पढ़ाएब जरूरी छै। नइं तँ ब’र-घ’र नहिएँ टा भेटतै।
एके रंग समय विधना कहाँ ककरो लिखने रहै छथिन। विलास बाबाक सरकारी अमीन बेटा बीमार पड़ि गेलखिन। पहिने तँ अधिक ख्याल नइं करै गेलखिन। पछाति भेलनि कि कोनो असाध्य रोग छै। तखन बड़का डाक्टरसँ देखौलखिन। तावत रोग हाथसँ बहार भ’ गेल छलै। रुपैया पैसा आ डाक्टर वैद्य काज नइं अएलनि। बेटा हाथसँ चल गेलनि। विलास बाबाक शोक सांघातिक छलनि, मुदा ओ दीन-दुनिया देखने छलाह, बुझनुक लोक छलाह। सभटा काज छोड़ि सरकारी आॅफिसक चक्कर काटए लगलाह। अनुकम्पाक आधार पर अमीन साहेबक बेटाकेँ सरकारी नोकरीक कागज भेटि गेलै। एकटा काज सम्पन्न भेलनि। सवा बरिसक दौड़ा-दौड़ी काज देलकनि। बहुतो दिन बाद कतेक काल धरि विलास बाबा दलानक चैकी पर अपन आश्वस्त मुद्रामे चितंग भेल पड़ल रहलाह। मोनमे जड़िआएल पीड़ा आँखि बाटे बहए लगलनि। जाहि पैघ बेटा पर हिनका सभसँ बेसी भरोस छलनि, से एना चैरस्ता पर छोड़ि क’ चल जेतनि, कहाँ जनै छलाह! गामे-गाम डाक्टरी करैत रहै छलाह, आ अपना करेजक टुकड़ीक गोर रंग पीयर भेल जा रहल छलनि, से नइं बुझल भेलनि। दलानक एक मुँह आँगनमे सेहो छलै। ताहि दुरूखा बाटे अमीन साहेबक जेठकी बेटी प्रकट भेलनि आ कहलकनि-बाबा, खाइ ले आँगन चलबै, कि एत्तहि आनू?
कने काल धरि बेबूझ जकाँ पोतीकेँ तकैत रहलखिन। फेर कहलखिन-चलह, आइ आँगनेमे खाएब।
आँगन जेना अनभोआड़ भ’ गेल छलनि। दुआरि पर बैसल विलास बाबा देखलखिन-बूढ़ी बड़ लटि गेल छथिन। नेना सभ पैघ भ’ गेल छै आ ई अमीनक दुनू बेटी चम्पा आ चमेली समर्थ भ’ गेल छै। आब तँ एकर सभक कन्यादानक सेहो जोगाड़ कर’क हैत।
-ई भानस के केलक?-बाबा पोतीसँ पुछलखिन।
-छोटकी आ नबकी काकी।
-तों सभ नइं करै छह?
-ई सभ इसकूल जाइ छै। लिखिया पढ़ियासँ पलखति हेतै तखन ने।-बूढ़ी बजलखिन।
-तइयो, घर आश्रमक काज सीख’क चाही।
पोती सभ नजर नीचाँ कएने ठाढ़ि रहलनि। बाबा एखन ने कतहु पंचैतीमे बैसथि आ ने दवाइक दोकान पर। राति दिन पोती सभक बियाहक चिन्ता करैत रहथि। नव-नव तथ्य सभ बाबाक सोझाँ उजागर होमए लगलनि। जेठकी चम्पा, अइ बेर मैट्रिकक परीक्षामे बैसलनि। पास सेहो क’ गेलनि।
-बाबा, हमरा काॅलेजोमे नाम लिखा दैह।
-कत’ हए?
-किऐ, बेनीपुरमे।
-कोना जएबह?
-बहुत लोक जाइ छै। पछबारि टोलक तीन टा लड़की जाइ छै। अइ बेर फेर दू टा जएतै।
-अच्छा?-बड़ अचरज भेलनि विलास बाबाकेँ। ई तँ नइं खेआल केलखिन कहियो। अपना गामक कामति आ पासवानक बेटी सभ काॅलेज जाए लगलै? नीक भेलै। जौं चम्पा जाए चाहैत अछि, तँ कोन बेजाए। बेटाकेँ कहलखिन चम्पाक नाम काॅलेजमे लिखा देब’ लेल।
-किऐ, कोन काज छै आगू पढ़बाक? कह’क सिलाइ स्कूलक ट्रेनिंग लेतह।-छोटका बेटा विचार देलकनि।
-एकरा आगाँ पढ़बाक मोन छै, पढ़ए दहक। की हेतै।
-नइं बाबू, काॅलेजमे की पढ़ाइ होइ छै आ कोन फस्र्ट डिविजनसँ पास केलक अछि। थर्ड डिवीजन बाली की करतइ आगाँ पढ़ि कए। घरमे काज सीखए आ सिलाइक ट्रेनिंग ल’ लिअए।
-तों तँ बड़ विचित्रा गप्प कहै छह। तोहूँ बी. ए. पास क’ कए बालुक बेपारी भेल छह कि नइं? ई बी. ए. क’ घरमे रहतै तँ की?
-बाबू काॅलेज सभ फार्स छै। पढ़ाइ नइं होइ छै। खाली विद्यार्थी सभ एक ठाम जमा भ’ अड्डाबाजी करैत छै।
-नेना कहलक अछि। बाप नइं छै। आइ रहितै तँ अपना संग राँची ल’ जैतै। हमरा उचित नइं बुझि पड़ैत अछि बरजब। नाम लिखा दहक। पछवारि टोलक बचिया सभक संगें जएतै।
पिताक तर्कक सोझाँ बेटा चुप भ’ गेल। चम्पाक नाम काॅलेजमे लिखा गेलै। चम्पा बेनीपुरक काॅलेज जाए लागल। एम्हर विलास बाबा गामे गाम ब’र तकैत घूरि रहल छलाह। एक ठाम एक टा ब’र पसिन पड़लनि। प्राइमरी स्कूलमे ओ मास्टर छलै। सरकारी नोकरी छलै। बेटा सभकेँ बजा पठौलनि।
-बाबा-चम्पा छलैन।
-की?
-हम एखन बियाह नइं करब।
-किऐ?
-ओहिना!
-बताहि नहितन, तोहर बियाह करब तँ हमर कत्र्तव्य अछि।
-बाबा हम आगू पढ़ब। बी. ए. पास करब।
-तँ पढ़िते छें, के मना करै छौ?
-बियाह करब तखन...।
-पढ़ुआ वर छौ, मास्टरी करैत छौ। तोरा पढ़’मे कोनो बाधा नइं रहतौ।
-ताहिसँ की, हम किन्नहुँ नइं करब।-पैर पटकैत चम्पा चल गेलै।
विलास बाबा अवाक।
-हूँ, ई छौंड़ी बड़ जिद्दी अछि। ककरो कहल की बूझै छै। जे कहलक से कहलक, हिनको बुझेने नइं बुझतनि। आब की करताह।-बूढ़ी दुरूखामे ठाढ़ि सभटा सुनैत रहथिन से बजलखिन।
-ऐं?-विलास बाबा सोचमे पड़ि गेलाह। अपन अति व्यस्त जिनगी आ सद्यः सोग हिनका ककरो दिस तकबाक पलखति नइं देने छलनि। आब की करताह? बेटा सभकेँ बजौने छथि। ओएह सभ किछु विचार देन्हि तँ देन्हि। कका सभ बेसी नीक जकाँ बुझा सकै छै। ई ब’र छूटि जेतै तँ फेर भेटनाइ मसकिल। पीठहि पर चमेली छै। ओहो अइ बेर काॅलेज जाए लागल अछि। राति भरि नीन नइं अएलनि। दोसर दिन बेरूक पहर तक चारू बेटा आ जेठका पोता दन-दन क’ जूमि गेलनि। बाबाक चिन्तित चेहरा देखि बेटा सभ कने ठमकि गेलाह। फेर मोनमे अएलनि, आइ पहिले पहिल बेटा सभसँ मंत्राणाक बेर उपस्थित भेलनि अछि, आ ताहिमे जेठ जन नइं छथिन, से विचारि बाबू उदास छथि।
-बाबू की गप्प छै?-छोटका पुछलखिन।
-हँ, ताही लेल तँ बजौलियह। कुसीपुर गामक ब’र तकने छी। दस बीघाक जोत छै बापकेँ। छह बहिनिक बियाह भ’ गेल छै। सरकारी प्राइमरी स्कूलमे मास्टर छै। विचार करह, की करबह?
-जे ब’र-घ’र अहाँकेँ पसिन भेल, ओ कोनो काटैबला हेतै? अहाँ हमरा सभकेँ आज्ञा करिऔ। जे कहबै-माझिल छलै।
-बाउ, हमरा बूझल छल। तोरा लोकनि इएह गप्प कहब’। तैयो बजाएब हमर कत्र्तव्य छल, मुदा आब एकटा आर समस्या ठाढ़ भ’ गेल अछि।
-की बाबू-छोटका मुहलगुआ छलनि।
-चम्पा कहैत अछि जे ओ बियाहे ने करत, ओ बी. ए. पास करत।-छोटकाकेँ छोड़ि सभ बेटा भकुआ जकाँ मुँह ताकए लगलनि। छोटका हँसए लगलनि।
-हौ बाबू, हम तोरा पहिने कहने रहियह। ओकरा गामसँ बाहर काॅलेज कथी लए पठौलह। आब भोगह।
-मत्तोरी, काॅलेज तँ नितदिन जाइत अछि आ चल अबैत अछि, ताहिमे कोन...।
-इएह ने तों नइं बुझबहक।

ओम्हर चम्पा चमेलीक गप्प भ’ रहल छलै। चम्पा मुँह चढ़ओने छल। चमेली पुछलकैक-आब? आब तँ सभटा काका आबि गेलै। छोटका काकाकेँ जखन किछु-किछु बूझल हेतै, ओ तोहर भेद खोलि देतौ। रहि जएबें मुँह बबैत।
-चमेलिया, तों हमर संग देबें से नइं, उनटे कपार खाइ छें।
-की संग दिअउ?
-बाबू आ कका सभकेँ कहि दही जे मुखियाक बेटा विजयसँ चम्पाकेँ बियाह करक मोन छै।-चमेलीक सगर शरीर बसातमे डोलैत भालरि भ’ गेलै। कने काल बकार नइं फुटलै।
-कहि अबै छही की नइं।
-नइं।
-किऐ?
-हमरा लाज होइत अछि आ डर सेहो।
-तोरा किऐ लाज होइ छौ? चम्पाक सोझाँ चमेली दबल-दबल रहै। ओकरा किछु नइं फुरैत रहै। विजय संगें चम्पाक मेल जोल देखि ई तेहन ने ठिसुआएल रहए, जेना चोरनी हो। चम्पा, अपन प्रेमक व्याख्या भाँति-भाँति सुनबए, चमेलीकेँ। आ स्वयं ओ ई सब विजयसँ सीखए। भारी स्वरमे चम्पा पर विजयक कएल प्रेम रसक आलेपन तेहन भ’ गेल छलै जे ओ आगाँ-पाछाँ नइं विचारै। ओकरा विजयक अतिरिक्त कहाँ किछु बुझाइत छलै।
-तों जा क’ बाबाकेँ कहुन। नइं तँ हम स्वयं जा क’ कहबनि।-चम्पा आवेशमे आबि गेल छल।

बाबा, सभ बेटाक मुखाकृति एका एकी देखि बुझि गेलाह जे हिनका सभसँ कोनो समाधानक आशा नइं कएल जा सकैत अछि। ई सभ आइ धरि कोनो स्वतंत्रा निर्णय नइं नेने छथि। मुदा छोट जन बाजल-बाबू, चम्पासँ पुछहक बजा क’, किऐ जिद धएने छह।
चम्पा संग चमेली दलानमे आबि जूमल। साओनक बरखा अपन सुर-ताल पर छम-छम बरसि रहल छलै। चमेली थर-थर कँपैत ठाढ़ि छलै।
चम्पा सोझे-सोझे बाबा आ कका सभ दिस तकैत बाजल-कोन अतराहति बीति रहल अछि हमरा बियाहक। एखन हम अठारहम बरिस पार नइं कएलहुँ आ अहाँ सब बैलाबए चाहै छी। दू बरिस आर अपन घरमे रहए नइं देब बाबा-छओ मुण्ड आ बारह आँखि चम्पाक मुँह पर ताकए लागल। निर्वाक्। चमेलीक थरथरी थम्हि गेलै; ओ निसाँस छोड़लक। चम्पा काते-कात निमहि गेल।
-आब जखन तों एहन गप कहलह तँ हम तोरा दू बरिस नइं टोकबह।-सब हरे हरे क’ उठि गेलाह। मुदा छोट जन अपना मोपेडसँ बेनीपुर काॅलेजक जखन-तखन चक्कर काटए लगलाह। चम्पा आ विजयक प्रेम काॅलेजक हत्तामे कहाँ भेल छलै। ओ तँ गामहिमे, नेनहिसँ फुलाइत छलै। विजय चम्पासँ दू बरिस पहिनहि मैट्रिक पास कएने छलै, मुदा काॅलेज पढ़ए नइं गेलै। गंजक गंज किताब पढ़ए, गामे गाम मिटिंग करैत घुरए। चम्पाकेँ कहैक जे तोंहूँ दिन-दुनियाक खबरिक वास्ते नीक जकाँ प’ढ़-लिख। किछु अपन पढ़एबला किताब ओकरा दै, मुदा चम्पा लेखें ओ किताब जेना अरबी-फारसी होइ। एक्कोटा शब्दक अर्थ ओकरा नइं बुझाइ। ओकरा विजय नीक लगै आ विजयकेँ चम्पा।
-विजय, देख त’, हमर ई नब कर्णफूल केहन लगलौ।-चम्पा कहैक। विजय देखि क’ हँसि दै।
-हँसै किए छें?
-नीक छौ, चम्पा खूब पढ़ि-लिखि क’ डिग्री ले, आ अपनाकेँ तैयार कर। हमरा संग चल’क छौ तँ अपना पर ठाढ़ हो। तखन दुनू गोटा संग भ’ क’ असमानता समाप्त करबै समाजक।
-धुर, से कतौ भेलै अछि।
-हेतै, सभटा हेतै।-विजय उत्साहमे जे किछु कहै से अइ सम्पन्न विलास बाबाक पोतीकेँ नइं बुझाइक। ओकरा ओकर मुद्रा, भंगिमा आ ओजपूर्ण स्वर नीक लगै। सम्पूर्ण अस्तित्व रोमांचित भ’ जाइ।
-विजय-एक दिन चम्पा ओकरा कहलकै-बाबा आ कका सब हमर विवाह करएबाक तैयारीमे छथि।
-हूँ, ककरासँ?
-अपनामे गप करैत रहथि, हम सेहो बीचहिमे जूमि गेलिअनि तँ हमरोसँ गप भेलनि।
-की गप्प?
-हम कहलिअनि जे हम बी. ए. पास कएलाक बाद बियाह करब।
-ठीक, सही कहलें।
-विजय, तोहूँ तावत कोनो रस्ता पकड़ि लेबें।
-हम? हम कोन नब रस्ता पकड़ब? हमर तँ सुनिश्चित गन्तव्य अछि। आ से तुरत कत्तए भेटए बला? हमरा स्वयं सम्पूर्ण जीवने संघर्ष बुझि पड़ै अछि। बुझलें?-चम्पाकेँ नाक पकड़ि डोला देलकै विजय।
-तखन बियाह कहिया करबें?
-कहियो नइं चम्पा, कहियो नइं। हमरा लेल बियाह बनले नइं छै।
चम्पाक आगाँ धरती आकाश घुमए लगलै। ओकरा मोन भेलै जे ओ विजयकंे भरि पाँजकेँ ध’ लिअए आ कहै-तों एहन गप्प किऐ करैत छें। हम तँ तोरे बल पर अपना बाबाक सोझाँ ठाढ़ भ’ गेलौं। हम तँ जागल, सूतल तोरे सपना आँखिमे बन्न कएने रहै छी।-चम्पा एकटा सोझ गामक कन्या, ओकर सपना बिछिया-पायल पहिरि मात्रा बियहुती होमक। ओ की जानए गेलै, जे बनैया आगिक उड़ैत चिनगीसँ स्थायी प्रकाश नइं होइत छै। ओकरा आँचरमे समटल नइं जा सकैत अछि।
-चम्पा की भेलौ, बड़ गुम-सुम छें।-चमेली ओकर मन्हुआएल चेहरा देखि पुछए लगलै। चम्पा चुप्पे रहल। कोनो ने कोनो लाथ लगाए काॅलेज सेहो नइं जाए। विलास बाबा कैक बेर पुछलखिन, किछु जवाब नइं। चमेलीकेँ बजा क’ पुछलखिन। ओहो जवाब नइं देलकनि। पोखरि पर जामुन गाछ तर बैसि क’ गप्प करैत कैक दिन छोटका कका विजय आ चम्पाकेँ देखने छलै, मुदा विजयक प्रकृति जानि ओ कोनो प्रकारक भाव नइं बुझि सकल छलै। एक दिन चमेलीकेँ नइं रहल गेलै, आ ओ कहि देलकै, जे चम्पा विजयसँ बियाह करए चाहै’ए। एखन की भेलै’ए से ओ नइं जनै अछि। छोटका ककाकेँ तरबाक लहरि मगज पर फेकि देलकै। ओ सोझे दलान पर जूमि गेलै।
-बाबू, आर सहकाबहक छौंड़ीकेँ, ओ ओइ दहियरबासँ बियाह करत’।
-ऐं?
-ऐं की?
-ऐं की के की मतलब? कहबह तखन ने बुझबै।
-की कहब’, ओइ सुमिरन दहियारक बेटा विजइया, चम्पासँ बियाह करत। किसनौतमे की लड़िकाक अकाल भ’ गेल छै। सिनेमा बुझि लेलक गामकेँ?
-हूँ-विलास बाबा मूड़ी नीचा क’ कए विचारए लगलाह।
-की विचारै छह, बाप दुधीक दही बेचि गुजर करैत छै आ बेटा गामे गाम कमैटी बैसौने रहै अछि। जाइ छिऐ आइ हम ओकर कपार...।
-हौ बाउ, एना आगुताबह जुनि; तों आइ काल्हुक लोक छह, हम पुरान भेलहुँ। एहन कतोक पंचैती कैने छी। चम्पाकेँ बुझा सुझा क’ देखहक। ओ जिद्दी अछि। जिदपनीमे कोनो ऊंच-नीच भ’ जेतैक। अपयश होएतहु।
-तों करह पूछा-पूछी, हम ओइ छौंड़ाकेँ देखए जाइ छी।
-सुनह, अगुताह नइं।
-चम्पा कहतह आ जिद करतह तँ ओकरासँ बियाहि देबहक।
-की हेतै, दहियार छै तँ। आइ-काल्हि तँ किसनौत सभमे बियाह करैत अछि। सुुकुर मनाबह, जौं परजाति होइतै तखन?
-बाबा, तोहूँ जुलुम कैलह। ओइ विजैयाक ओतए सुपारी ल’ क’ जेबह!
-की हेतै?
-बाबा-चम्पा आबि क’ ठाढ़ि भ’ गेलै। उदास आ पीयर मुखसँ। सभक दृष्टि ओम्हरे चल गेलै।
-बाबा, ई चमेली अनेरे कहलक। हम विजयसँ बियाह कर’ लेल उताहुल रही, ओ नइं। ओ तँ कहलक जे ओ कहियो बियाह नइं करतै, ओकर रस्ता अलग छै।
-बाबा, हमर बियाह जत्त’ ठीक करै छलौं तत्तहि क’ दिअ’, अही शुद्धमे।-नहूँ नहूँ मुरछल सन चम्पा आँगन चल गेलै। बियाह दान हेबाक छलै, भेलै। चम्पा सासुर गेल।
एहन केस? बिनु वादी-प्रतिवादीक, बिनु फैसलाक केस मरि गेलै। विलास बाबा मुखियागिरीसँ त्यागपत्रा द’ देलनि। आब ओ खाली छथि।



२.चिनबारक दीप

समस्तीपुर मे गाड़ी बदली कऽ महेसरी अइमे बैसलि सरिया कऽ। आब घर बेसी लग आयल जाइत छैक। चारि टीसन आ छैक, फे तऽ टीसन सऽ एक कोस जमीन हैतै। चारि-पाँच गोटाक हेंज छैक्। बौआइत-बतियाइत गाम पहुँचि जयतै। आठे दिनुका दिन छैक, की सब करतै? एह, करऽक की छैक? सभटा बस्तुजात तऽ कीननहिं जाइत छैक। नबका अटैची के राग तर नीक जऽका दाबि लेलकै। डिब्बा मह’क सभटा यात्री तऽ भरि दिनुक चीन्हले-जानल छैक। भतीजीक विवाह छैक से गाम जाइत छैक। ओ अगिले टीसन पर उतरि जयतैक। ताहि सऽ बगलबला बाबू कोनो लड़िकाक उदेस मे पटना गेल छलैक्। आ गेट लग ठाढ बाबू भारी गुम्मा छैक। टोकलो पर नै बजै छैक। कोन टीसन जैतै, की करतै। एक्को बेर मुँह पर मुसकियो ने अयलै। ठोरो नै पटपटौलकै। “बाप रे बाप, एतीकाल धरि जौं हम चुप रहि जाई त मुंहे फरि जायत। गे दाई!” मोने-मोन विचारलक। मोन भेलै कहै – “हो बाबू, निम्मन से बैठू ने, हबा नै लगइये”। मुदा चुप्पे रहल।

महेसरीक घरबला एकटा कुमारि आ एकटा बियाहलि बेटी लऽ कऽ गामे मे रहै छलै। जवानी समय मे रिक्शा चलबैत रहै आ महेसरी दाइक काज करैत रहय। सुख सऽ रहय। ससुर मुइलैक तखन जमीन बाँट-बखरा भेलै आ बिगहा डेढक एकरो हिस्सा भेलैक। ससुर जा जिबैत छलै एकटा खुद्दियो नई परि लागऽ देलकै। नबकी बहु संग सभटा जमीन लऽ कऽ आतरि-चातरि भेल रहैक। मुइला पर कामति गाम नहिं छोड़ैत छल। एकटा बेटीक बियाह तऽ पहिने कयने रहे, दोसर बेटिक बियाहक सरंजाम जुटबऽ लेल महेसरी गाम छोड़ि पटना सेवने छल। पटना मे मारे इतियौत-पितियौत भाइ-बहिन सभ रहैत छैक। तकरे संगे रहि छौ डेरा मे चौका-बर्तन करैत अछि महेसरी।

“हे गे बहिन, अपन समान सब ठीक सऽ रखिहैन आब। अइ गाम जाएबला गाड़ी मे ने बिजली छै ने बत्ती”। -- सगबे भाइ कहकै।
“ठीक से हय हमर समान”। -- महेसरी घोकरी लगा लेलक।
“है तऽ सेहे”। -- दोसर भाइ बजलै।
“रे बाबू गरीब आदमी छी, डेरा मे कमा कऽ जमा कैली इ सब सरंजाम के लेत हमर समान?”
“की सभ समान? तोरा सभ के तऽ बेसी लगै छऽ नहिं” – सामनेबला बाबू पुछलखिन।
“यौ बाबू, हमर जे जमाय हय ने, से दमकल के मिस्तिरी हय। तनी-मनी जमीनो-जाल है मरदाबा के। से ओक्कर मुंह बड़का गो है। घड़ी-साइकिल-रेडियो। लत्तो-कपड़ा खपसूसरत कहै छै”।
“तऽ देबही से सब?” – दोसर यात्री पुछलखिन।
“हँ सरकार, एगो मलकीनि है, से हरदम डिल्ली जाइत रहै छै, कल-पुरजा के कारबार हई। ओकरे से घड़ी आ रेडियो मंगबेलियै। पटना से आधा दाम मे हो गेलै”।
“बाह, तखन तऽ लेलहक समान”।
“त ए सरकार, एगो मलकिनिया हय मरबारिन। तऽ ओकर बक्सा मे कोंचल हय रंग-बिरंग के सरिया। ऊहे हमरा एगो जरी के काम कएल साड़ी देलक। पीयर टूह। हम कहली जे होली-दसहारा के साड़ी न दिऊ, ई साड़ी दे दिऊ। आ बाकी मलकिनियाँ सब से साड़ी ले-ले कऽ रखले रही से सब ले जाइ छी। बेटी के सांठे के न परबाह हय”।
आ लड़का के कपड़ा? से तऽ कीनने हेबहऽक”? --- बाबूक जिज्ञासा रास्ता कटबाक साधन सेहो छलनि।
“लड़िका के कपरा किन लेलियै। बेटी के लेल एगो पायल आ बालचानी के किनलियै। बड़ा महग हो गेलै…”।

दरबज्जा लग ठाढ अरुणक कान मे सभटा पड़ैत छैक आ कनपट्टी पर धम-धम होमय लगैत छैक। आइ तीन बरख पर गाम जा रहल अछि अरुण। बाबू बीमार छथिन आ बहिनक द्विरागमन हेतै। बाबू बड़ कलपि कऽ लिखने छथिन आबऽ लेल। सरंजामक ओरियान कऽ नेने छथिन, खाली घड़ी आ रेडियो तों नेने अबिहक --- से बाबू लिखने छलखिन। अपना जेबी के टेबलक अरुण। मात्र डेढ सै टाका छैक। एकटा निसास छोड़लक। गाम मे बीए पास कऽ क बैसल रहय तखन बाबू केहन-केहन कटुक्ति सब कहि मोन बताह कैने रहथिन। एत्तुका लोक के नोकरी भेटै छै कि नय? अरुण सबटा बर्दाश्त कऽ खेत-पथार जाइते रहल। एक्केटा पुत्र रहथिन। बूझथि बाबू स्नेह सऽ कहैत छथि। कनियाक द्विरागमन भेला पर अरुण के कटुवचन अखरय लगलनि। बाबू दिनानुदिन बेसी कटु भेल जाइत छलखिन। माय सेहो थारी संग पहिने उपदेश पाछा उलहन आ आब गारि परसऽ लागल छलथिन। तखन अरुण हारि कऽ गाम छोड़ि देलक। तीनटा ननदि सबहक बीच एकटा भाउजि अरुणक कनिया नैहर चल आयलि छलीह। आ एमहर-ओमहर एँड़ी घसैत अरुण कोनो खानगी व्यापारी ओतय टाइपिस्ट भऽ गेल छलाह। कनिया सेहो संगे रहय लागल छलखिन। छौ मास पहिने कनिया के एकटा बच्चा नष्ट भऽ गेल छलनि। ओ अत्यन्त रुग्ण भऽ गेल छलखिन। अरुणक सीमित आमदनी ओही मे स्वाहा भऽ जाइत छलनि। कतेक पाइ हथपैंच भऽ गेल छलनि।

“दुनू परानी मिलि कऽ कमयली ए बाबू, तब न बेटी के आइ साँठ-राज करै छी। की बरक-बरका लोक करत ऐसन साँठ-राज”। --- महेसरी जोर-जोर सऽ बजै छल। आ अरुणक कान मे अपना कनियाक कुहरनाइ धमकऽ लगलनि। कोनो काजक नहिं छथि। अरुण मोनेमोन विचारय लागल। गामक साधारण घरऽक बेटी छथि, मुदा दुनू बेकतीक काजो नै सपरै छनि। मोनेमोन खौंझाहटि उठलनि। फेर विचारय लगलाह। ओहि मे हुनकर कोन दोख। जेहने शिक्षा-दीक्षा भेटतनि तेहने बुद्धि-अक्किल हेतनि। बिसरल-भटकल कत्तहुँ सऽ कहियो कोनो चिट्ठी अबै छलनि। परसू चिट्ठी भेटलनि बाबूक तऽ बड्ड अचरज भेलनि। क्षणहि मे अचरज बिला गेलनि। छोटकी बहिन प्रमिलाक द्विरागमन मे बच्चा आ कनियाँ के बाबू बजौने छथिन। अरुण पत्र पढि चिन्तित भऽ उठल छल। कतऽ सऽ ओ बाबूजीक फरमाइश पूरा करथिन?

“ई पहिले पहिल बाबू मुँह खोलि कऽ किछु मंगलनि अछि। की करबैक”? – पत्नी सारगर्भित विचार प्रकट कैलथिन।
“हुनका मंगबाक आवश्यकता की छलनि?” – अरुण कहने छलखिन।
“तें ने, आब भेलनि अछि तऽ मंगैत छथि। जैयौ, सर सरंजाम सेहो करऽ पड़त” – कहलखिन पत्नी। अरुण सक किछु पार नै लगलै तऽ अपने पेटी मे सऽ नूआ बहार कऽ ननदि लेल देलखिन आ नोर पोछैत विदा कयलखिन।
“लोक की कहत? अन्तिम ननदिक दुरागमन छल” --- भरल कंठ सऽ बजली।
“की कहत? हम नै लऽ जाएब। हमहीं जाइ छी से बहुत करै छी” – डपटि देने छलखिन अरुण।

आ डेढ सै टाका जेबी मे नेने जाइ छथि। जिद्द करथिन तऽ अपना हाथऽक घड़ी दऽ देथिन। आर की? लोक की कहतै? गामक लोकक सोझाँ कोन मुँह देखौथिन। ई साधारण दाइ-खबासिनी घड़ी आ रेडिओ नेने जाइ छै। मुदा अरुण की करतै। एकर पत्नी तऽ परिवार मे दाइक पाइ बचौतैक ताहू जोग नहिं छैक। बाबू गामहि रहऽ दितथि …तऽ की? कोना रहय दितथि, लोक की कहितैन। फेर ओएह गाम, समाजक लोक आ लोकापवाद चारुकात सऽ घेरि लैत छैन। बीए पास कऽ कऽ गाम मे घरुला बनल छथि। आ लैह। रहऽ शहर मे। करह नोकरी। एकटा बेटा, माय-बाप कतहु, अपने कतहु। ऐ बेर तऽ बाबूक चिट्ठी मे स्वर बड़ कमजोर बुझना गेलनि। रुग्ण छथि, आब होएत होतनि बेटा संगे रहितौं। किंवा बेटेक संगे अपने रहथि।

महेसरीक गर्वोक्ति सुनि-सुनि अरुणक खून गरम होबय लगैत छनि। दृष्टि महेसरीक राग तर दाबल अटैची पर जाइत छनि – नव ललौन अटैचीक चमकैत हैन्डिल एम्हरे छैक। ओइमे घड़ी आ रेडियो छैक, चानीक पायल आ दोसर बस्तु-जात सभटा छैक। के जानय महेसरी ई सब मालिक-मलिकाइन सबहक ओतय से चोरा कऽ जमा केने हो, के जानए। ई सब बड्ड चालाक होइत अछि। विचारलनि अरुण – फुसिये ठकि रहल अछि जे छौ-छौ डेरा मे काज करैत छी। खाली फाजिल गप्प। जरुर ई चोरौने जाइ छैक। कहुना लऽ जाइ छै। अरुण तऽ कहुनो नय नेने जाइत छथि। गाम मे माय-बाप आ बहिन रास्ता तकैत हेतैनि – अरुण औताह आ सबटा दुःख दूर कऽ देता। स्वर तऽ तेहने रहनि पिताक पत्रक। एकटा छोट-सन स्टेशन आर तकर बाद अरुणक स्टेशन । वस्तुत: दुनू स्टेशनक बीचहि मे अरुणक गाम पड़ै छनि। एक बेर फेर अरुणक दृष्टि महेसरीक अटैचीक हैन्डिल पर पड़लनि। एक झटका मे अटैची घीचि तेज होइत गाड़ी स अरुण उतरि कऽ पड़ा जाथि तखन की? विचारैत काल शरीर मे रक्त तेजी सऽ दौड़य लगलनि। स्टेशन पर सऽ गाड़ी ससरऽ लगलै। अरुण अझक्के अटैची घीचि लेलखिन। महेसरी मुंह बौने रहि
गेल। छि: ई की करै छी हम? एकटा चौका-बरतन करऽवाली स्त्रीक सामग्री चोरबै छी? ई विचारि मोन मे अबिते अरुणक आगू बढल पैर ठमकि गेलनि। मुँह बौने महेसरी आ आगू बढैत ओकर संगबे अन्हार मे तकित रहलै आ अरुण अटैची महेसरीक कोरा मे पटकि एकटा खाली हँसी हँसऽ लागल।

“एह, हम तोरा ई बुझबा लेल अटैची घिचलिअऽ जे खाली बात पर नहि रहऽ समानक रक्षा सेहो करऽ।“
“ए बौआ, हमर तऽ जिउए हाथ हेरा गेल। बड़ कठिन कमाइ के है” – महेसरी कँपैत स्वर मे कहलकै।
“नहिं नहिं, डेरै के बाते नै छै, बाबू देखतहिं सुधंग लगै छथिन” – ठिसुआएल एकटा संगबे बजलै महेसरी सऽ।

अपन अशुद्ध मोन पर संस्कारी शुद्ध मोनक विजय बड़ सुखकर लगलै अरुण के। जाड़ो मे पसीना छुटि गेलै। तरहत्थी भीज गेल छलै। कंठ सुखा गेलै। मुदा माथ एखन खाली छलै। एकदम्म शून्य। किछु नै छलै। गाड़ी दोसर स्टेशनऽक लग आबि गेल छलै। पुक्की पारय लगलै। अन्हार दिस तकैत अरुणक आँखि एकटा खोपड़ीक चिनवार पर चलि गेल। चिनवार पर दीप जरै छलै।