अशोक 1953- जन्म स्थान लोहना, मधुबनी, बिहार। चर्चित कथाकार, कवि ओ सम्पादक । प्रकाशित कृति : चक्रव्यूह (कविता संग्रह) त्रिकोण (सहयोगी कथा संग्रह), ओहि रातिक भोर (कथा-संग्रह), मातवर (कथा संग्रह)।
अशोक
चक्रव्यूह (कविता संग्रह) (१९८६)
ओहि रातिक भोर (कथा संग्रह) (१९९१)
संवाद (साक्षात्कार संग्रह) (२००७)
आँखिमे बसल (यात्रा कथा) (२०१३)
नीक दिनक बाइस्कोप (व्यंग्य संग्रह) (२०१८)
मुन्ना जी द्वारा साक्षात्कार (पृ. ३८२-३८५)
बनैत कम बिगड़ैत बेसी (पृ. २०२३-२०३१)
सम्पादक राजनन्दन लाल दास आ कर्णामृत (पृ. ११९-१२२)
रामलोचन ठाकुरक कविता पढ़ैत (पृ. ३२७-३४१)
केदार नाथ चौधरीक उपन्यास (पृ. १०१-१०६)
कथा:तानपूराकविता:मोंछ, दाँत, बुधियार, ई के सोर करैए?, फेरसँ
कथा
तानपूरा
विनोद बाबू सरकारी लोक छथि। सरकारी अधिकारी। वित्त अंकेक्षक। काजमे काज रहनि सरकारी आॅफिस सभक आॅडिट केनाइ। खर्चा आ आमदनीक हिसाब-किताब देखनाइ। नियम-कानूनक आधार पर ओकर जाँच करब। एहि लेल कार्यक्रमक अनुसार विभिन्न सरकारी कार्यालय जाए पड़ैत छनि। बस-टेªनसँ यात्रा कर’ पड़ैत छनि। विभिन्न स्थान पर ठहर’ पड़ैत छनि। अकच्छ भ’ जाइ छथि। अकच्छ ओ अपन काजोसँ छथि। एक त’ ई काज हुनका बोर टाइप के काज बुझाइ छनि। दोसर, एहिमे झँझटि सेहो लगै छनि। आॅडिटसँ ल’ क’ यात्रा धरिमे झँझटिए... ओ झँझटिसँ छीह कटैत रहै छथि। जेना अपन स्वभावसँ लाचार भ’ गेल छथि ओ। मुदा झँझटिकेँ एहिसँ की लेना-देना छै। ओहो अपन स्वभावसँ लाचार अछि। ई झँझटि विनोद बाबूकेँ कत्तहु, कोनो ठाम उपस्थित भ’ जाइत छनि। कोनो रूपमे उपस्थित भ’ जाइत छनि। अपन मुख्य कार्यालयमे जत’ आॅडिट करैत रहै छथि, आॅडिटक दरमियान जत’ ठहरल रहै छथि। बस मे, टेªन मे, टीशन पर, बस स्टैंड पर, सड़क पर आ घरमे त’ सहजहिं। घरक झँझटि हुनका लेल जनमारा भ’ जाइत अछि। सभ ठामसँ थाकि-हारि जखन घर अबैत छथि त’ चाहैत छथि जे कने आराम हुअए। अबितहि पैंट-शर्ट खोलि लुंगी पहीरि पड़ि रहै छथि। डेरा पहुँचला पर जँ हुनका पैंट-शर्ट खोलैत देखब त’ हुनकर स्वभाव छने मे बुझि जाएब। पैंट-शर्टक बटन सभ ओहि कालमे हुनकर बड़का शत्राु भ’ जाइत अछि। तैं अक्सर अही कालमे हुनकर कपड़ाक बटन सभ टुटैत छनि। बटन सभकेँ धराशायी करबाक विजय-बोध मुदा बेसीकाल रहि नइं पबैए। पत्नीक तामस सदेह उपस्थित भ’ जाइत अछि आ एहि प्रकारेँ पुनः एक नव झँझटि बजरि जाइए।
-आहि रे बा, फेर आइ बटन तोड़ि देलिऐ?
-तोरबै नइं त’ की। अकच्छ केने रहै अछि। जल्दी खुजिते नइं रहैए।
-त’ एहिमे बटन के दोष छै?
-बटन के दोष छै नइं त’ की हमर दोष अछि? अहाँ त’ सदिखन हमरे दोष देब।
-अहाँक दोष नइं अछि त’ ककर दोष छै? एतेक खीचि-तोड़ि क’ कतहु बटन खोलल जाइ। सभटा तामस ओकरे पर झाड़ि दैत छिऐ।
-हमर तामससँ अहाँकेँ की लेना-देना अछि?
-की लेना-देना अछि? बटन हमरे लगब’ पड़ै अछि ने। कहियो अपने लगबैत छी अहाँ? एक दिन लगा क’ देखियौ ने त’ बुझबै।
-की बुझबै? हमरा बुते लगौल नइं हैत की? हमरा अहाँ एतेक अपटु बुझैत छी?
-आब हम से कोना कहू? बटन लगाइयो लेब त’ सौंसे आँगुर सुइ भोंकि लेब।
-एहिमे अहाँकेँ की हैत? हमरे कष्ट हैत ने? हमर कष्ट त’ अहाँकेँ नीके लगैत अछि।
विनोद बाबू आ हुनक पत्नी मायाक एहि तरहक वात्र्तालाप घरमे बेसी काल सुनल जा सकैत अछि। एहन गप्प-सप्प होइते रहै अछि। एही क्रममे मायाक मोन कहियो फाटि जाइत छनि त’ कहियो विनोद बाबूक दिमाग सुन्न भ’ जाइत छनि। दुनूक बीच मुहाँबज्जी बन्द भ’ जेबाक प्रबल सम्भावना सेहो उपस्थित होइत रहै छनि। बन्दी आ हड़तालक अवधि एक घंटासँ ल’ क’ चारि दिन धरि एखन तक रहल अछि। कोनो ने कोनो प्रकारेँ फेर समझौता भइए जाइत अछि। आब ई समझौता जेना हुअए। जत्ते काल टिकए। एहि पूरा प्रकरणमे सभसँ बेसी कठिन समय विनोद बाबूक लेल तखन होइत छनि, जखन माया कान’ लगैत छथिन। मायाक कननाइ हुनका सभ दिन बरदास्तसँ बाहर बुझाइत छनि। हुनका लाग’ लगैत छनि जेना बीच बाजारमे क्यो हुनकर इज्जति उतारि रहल होनि। ओ बेइज्जत भ’ रहल होथि। अपन इज्जत नुका क’ रखबाक चक्करमे ओ बहुधा बेइज्जत होइत रहै छथि। हुनकर धर्मपत्नी माया, नोर चुबबैत रहै छथिन। मायाक नोर तेजाब सन हुनकर देह-मोनकेँ गलबैत रहैए। तेहन स्थिति उत्पन्न नइं हुअ’ देबाक चक्करमे सेहो ओ विखिन्न रहै छथि। तैं झँझटिकेँ कतियबैत रहै छथि। टारैत रहै छथि। आर बेसी लाचार होइत रहै छथि।
आइ मुदा घर पहुँचला पर हुनकर मोन प्रसन्न रहनि। पुरैनियाँसँ आॅडिट क’ कए घुरल रहथि। ट्रांसपोर्ट आॅफिसक आॅडिट रहै। बेस स्वागत-सत्कार भेल रहनि पाँच दिन धरि। भोजन-साजन। बर-विदाइ। डेरा धरि विभागीय गाड़ीसँ पहुँचा देने रहनि। आनन्दमे छलाह। कोनो पुरनका गीतक भास गुनगुनाइत घरमे प्रवेश केलनि त’ माया ड्राइंगरूममे बैसल छलखिन। पतिकेँ देखि अकचकेली ओ। एहि दुआरे नइं जे अकस्मात् आबि गेल छलखिन। एहि दुआरे जे ओ गुनगुना रहल छलाह। ओ गुनगुना रहल छलाह ओहि गीतक भास, जे बियाहक बाद सभसँ पहिने मायाकेँ सुनौने रहथिन। ‘बनके चकोरी गोरी झूम-झूम नाचो री।’ मायाकेँ धक्कसँ मोन पड़ि जाइत छनि। मायाकेँ मुसकुराइत तकैत छथि। मुदा माया पर एकर कोनो असरि नइं होइत छनि। हुनकर मोनकेँ आइ दोसरे चिन्ता घेरने छनि। पन्द्रह वर्षक बेटाक चेहरा बेर-बेर मोन पड़ि अबैत छनि। तैं ओ गम्भीर बनल रहै छथि। मुदा विनोद बाबू त’ आइ मस्त छलाह।
-श्रीमती जी, अहाँकेँ मोन अछि, ओ जे हम पहिल बेर अहाँकेँ सुनौने रही? आह, की गीत छै? आ हे, ओ गीत जखन हम सुनबैत रही तखन जे अहाँ नीचाँ ताकि क’ हँसी, से जे सुन्दर लगैत छल।-विनोद बाबू आबेससँ मायाकेँ देखि रहल छलाह। मुदा माया किछु नइं बजलीह। ओहिना गम्भीर भेल बैसल रहलीह। विनोद बाबूकेँ कोनादन लगलनि। आइ ओ प्रसन्न छलाह। ई अवसर कहियो काल अबैत छलै, जखन ओ एतेक प्रसन्न होथि। अपन प्रसन्नतामे ओ पत्नीक सहभागिता चाहैत छलाह। मुदा जखन ओ सम्मिलित नइं भेलखिन, त’ हुनकर मोन लोहछि गेलनि।
-की बात छै? किऐ आइ घुघना लटकौने छी? कने हँसब-बाजब से नइं?
-हँसब-बाजब हमर करममे रहए तखन ने। कखनो अहाँ हँसी छीनि लैत छी, कखनो बेटा छीनि लैत अछि। सेहो सभटा अहीं दुआरे।
-से की? हमरा दुआरे की? की कहै छल गौतम?-विनोद बाबू गम्भीर हुअ’ लागल छलाह।
-कहै छल जे पापाकेँ पाँच माससँ कहि रहल छिअनि जे हम संगीत सीख’ चाहै छी, मुदा ओ ध्याने नइं दै छथि। ताहि पर हम कहलियै जे पढ़ाइ-लिखाइ करबह से नइं। ई संगीत सिखबाक कोन धुनि सवार भ’ गेल छह? एहि बात पर तमसा क’ की-की ने कहलक। कहै छल जे पापा बेर-बेर ठकि दै छथि। हमरा बड़ क्रोध भेल। आइ, दू थापड़ मारबो केलियै अछि बहुत दिन पर।
विनोद बाबू आब गम्भीर भ’ गेलाह। गौतमक संगीत सिखबाक जिद्द हुनका पसिन्न नइं छलनि। ओना ई फराक बात जे ओ अपनहु कहियो संगीत सिखबाक कोशिश केने छलाह। किछु दिन सिखनहुँ छलाह। मुदा अन्तमे छोड़ि देने रहथि। तहिया विनोद बाबूक पिता जूट मीलमे काज करैत छलखिन। मीलेक एकटा क्वार्टरमे हुनकर डेरा रहनि। जूट मीलक ई नोकरी हुनका तीन-चारि टा काज-धन्धाक बाद भेटल छलनि। एकटा मारवाड़ी सेठक ओहि ठाम नोकरी केने रहथि। बच्चा सभकेँ पढ़ाबथि। एक दिन सेठानी बाजारसँ तरकारी आनि देबाक लेल कहलकनि त’ ट्यूशन छोड़ि देलनि। कोनो बाबू साहेबक ओहि ठाम सेहो खेती-बारीक व्यवस्था देखबाक लेल नियुक्त भेल छलाह, मुदा एक दिन बाबू साहेब कोनो बात पर बिगड़ि क’ पजेबाक एकटा खण्ड उठा क’ फेकलखिन, त’ नोकरीकेँ लात मारि अएलाह। किछु दिन गाम पर खेती-बारी केलनि। संयुक्त परिवार रहनि। चारि भाइक भैयारी। खूब मेहनति करथि। मेहनतिक बल पर अन्न उपज’ लगलनि। एतेक धान हुअ’ लगलनि जे बखारी बान्ह’ पड़लनि। परिवारक स्थिति-पात नीक भेलनि। जाहि परिवार के बेसाह पर गुजर चलैत छलै, से भरि वर्ष अपन खेतक अन्न खा जीब’ लागल। मुदा ई स्थिति बेसी दिन नइं रहि सकलनि। भैयारीमे भिन्न-भिनाउज भ’ गेलनि। खेत जमीन बँटाएल त’ हुनकर मोन टूटि गेलनि। बँटाएल जमीन पर गुजरो सम्भव नइं छलनि। गाम छोड़ि पुनः शहर अएलाह। जूट मीलमे नोकरी शुरू केलनि। मिडिल पास रहथि। अँग्रेजी आ हिसाबक नीक ज्ञान रहनि। मेहनतिक बल पर लेखा-शाखामे किरानी भ’ गेल रहथि। बहुत खट’ पड़नि। मुदा लेखा पदाधिकारीकेँ कहियो कोनो शिकाइतक मौका नइं देलखिन।
मील काॅलोनीक बगलेमे राधाकृष्णक एकटा भव्य मन्दिर रहै। दरभंगा राजक रानी लक्ष्मीवती बनबौने रहथिन। ओहि मन्दिर पर झूलनमे खूब गीत-नाद होइ। राशि-राशि के गबैया सभ जुटए। राति भरि पकिया गानासँ ल’ कए लोकगीत धरि श्रोताक मोनकेँ झुमा दिअए। जूट मीलक कर्मचारी, मजदूर ओहि श्रोतामण्डलीमे बेसी संख्यामे रहै छल। विनोद बाबू बारह-तेरह वर्षक रहथि। हुनका भेल रहनि जे गबैया बनितहुँ। पिताकेँ कहलखिन-बाबूजी, हम गबैया बन’ चाहैत छी।-पिता कने काल चुप्प भ’ गेल छलखिन। ई हुनकर आदति छलनि। कोनो बात आ प्रस्ताव पर ओ तुरन्त सहमति-असहमति व्यक्त नइं करै छलाह। कने कालक बाद बजलाह-अहाँकेँ गीत गाब’ अबै अछि?
-हँ, सुना दी?-विनोद उत्फुल्ल भेल रहथि।
-सुनाउ।-पिता कहलखिन। विनोद एकटा गबैया द्वारा गाओल जे गीत हुनका मोन छलनि, सुनाब’ लगलाह-
गौरा तोर अँगना
बड़ अजगुत देखल तोर अँगना
गौरा तोर अँगना।
खेती ने पथारी शिवकेँ गुजर कोना?
जगतक दानी थिका, तीन भुवना
गौरा तोर अँगना।।
पिताकेँ गीत सुनि हँसी लगलनि। मुदा भेलनि, जे कण्ठ नीक छनि विनोदक। ओ कहलखिन जे-ठीक छै। व्यवस्था करैत छी।-विनोद प्रसन्न भ’ गेल छलाह। पिता अपन पत्नीसँ विचार केलनि। पत्नी कहलखिन जे-गबैया बनबाक मोन होइत छै त’ एहिमे की क्षति छै। हमर मामो त’ गबैया छथि।-पिता विचार केलनि जे गबैया नहियो बनत, तैयो संगीत त’ किछु सीखिए लेत। एहिमे कोन बेजाए छै? जीवन लेल संगीत त’ जरूरी छै। संगीत जीवनकेँ उस्सठ नइं हुअ’ दैत छै। ओ विनोदकेँ संगीत सिखेबाक लेल एकटा गुरुक खोजमे लागि गेलाह। लोक सभसँ पुछलखिन। पता चललनि जे बंगाली टोलामे एकटा किओ घोष बाबू छथि। ओ बच्चा सभकेँ संगीत सिखबै छथिन। स्थानीय स्कूलमे संगीतक टीचर छथि। घोष बाबूसँ सम्पर्क केलनि। ओ बेस आदरसँ स्वागत केलखिन। कहलखिन जे हम साँझमे दू घण्टा सिखबै छिऐ। मासमे बीस टाका फी बच्चा लै छिऐ। विनोदक पिता असमंजसमे पड़लाह। बीस टाका हुनका लेल छोट राशि नइं छलनि। काटि खोंटि कुल्लम एक सए सत्तरि टाका भेटै छलनि दरमाहा। ताहिमे पाँच व्यक्तिक परिवार। दू बेटा, एक बेटी। जेठका बेटा दसमामे पढ़ै छलनि। ओहिसँ छोट विनोद सतमामे, आ बेटी दूसरामे। सभक खर्चा-बर्चाक अतिरिक्त गाम पर रहैत माइकेँ सेहो तीन मासक खर्चा दिअए पड़नि हुनका। चारू भैयारीमे तीन-तीन मासक पार रहनि। हुनका विनोदकेँ संगीत सिखाएब कने कठिन बुझेलनि। ताहि परसँ एखन हारमोनियमक व्यवस्था सेहो कर’ पड़तनि। मुदा मासमे बीस टाकाक अतिरिक्त व्यवस्था अथवा नियमित खर्चामे कटौती त’ हुनका करहि पड़तनि। ओ ओभर-टाइम करबाक मादे सोचलनि। अपन पान खाएब बन्द करबाक मादे सोचलनि। सोचलिन जे तमाकू पर काज चला लेताह। आ ओ निश्चय क’ लेलनि। घोष बाबूकेँ कहि देलखिन जे अगिला माससँ विनोद संगीत सीखत अहाँसँ। आब हारमोनियमक समस्या रहनि। घोष बाबूक ओहि ठाम सिखबाक लेल त’ हारमोनियम रहै। मुदा घरो पर रियाज आवश्यक छलै। तैं एकटा अपन हारमोनियम एकदम्मे जरूरी रहै। दिक्कत ई रहनि जे ओत’ हारमोनियम भेटै नइं छलै। लोक कहलकनि जे कलकत्ता अथवा पटनामे भेटत। दाम द’ पता लगौलनि त’ ज्ञात भेलनि जे नीक, डबल रीडक हारमोनियम डेढ़ सएसँ कममे नइं भेटत। दू सए धरि लागि सकैए। आब ई दू सए कत’सँ आबए? सम्भवे नइं छलनि। पता लगब’ लगलाह जे कतहु ककरो ल’गमे कोनो पुरना हारमोनियम छै की नइं? पता लगलनि जे राजहातामे मिसरजी ल’ग एकटा पुरना सिंगल रीडकेँ हारमोनियम छनि। हुनकासँ सम्पर्क केलनि। ओ सहर्ष देबाक लेल तैयार भ’ गेलखिन। किऐ त’ हुनका आब एकर कोना काज नइं रहि गेल छलनि। विनोदक पिता हारमोनियम बजा क’ देखलखिन। आवाज ठीक नइं रहै। घून कैक ठाम भूर क’ देने रहै। मिसरजी कहलखिन जे एकर मरम्मति भ’ सकैत अछि। एहि छेद सभकेँ मोमसँ भरि देल जाइ त’ काज चलि जाएत। विनोदक पिता हारमोनियम डेरा पर अनलनि। भूर सभकंे मोमसँ भरलनि। हारमोनियम बाज’ लागल। विनोद संगीत सीख’ लगलाह। डेरा पर हारमोनियम बजा क’ रियाज करथि त’ सभकेँ कौतूहल होइ। नीक लागै। एवम प्रकारेँ विनोद हारमोनियमक पटरी पर हाथ बैसब’ लगलाह। सरगम सीख’ लगलाह।
सम्पूर्ण परिवारकंे नीक लागि रहल छलै। ई क्रम दू-तीन मास धरि चलैत रहल। मुदा अकस्मात् एक दिन विनोद मुँह लटकौने आपस भेलाह। कहलखिन-गुरुजी कहैत छथि जे हम संगीत नइं सीखि सकैत छी। गायक नइं भ’ सकैत छी। हमर आवाज हारमोनियमक सुरसँ मेल नइं खाइत अछि। गुरुजीक कहब छनि जे हम गबैया नइं, हारमोनियम मास्टर भ’ सकै छी। खाली हारमोनियम बजा सकैत छी।-पता लगौला पर विनोदक पिताकेँ ज्ञात भेलनि जे विनोदमे लगनके अभाव छनि। मेहनति नइं क’ पाबि रहल छथि। आगू नइं बढ़ि रहलाहे। पिता कहबो केलखिन। लगनसँ मेहनति कर’। मुदा विनोदक हृदय टूटि गेल रहनि। आब मोन नइं लगैत छलनि। क्रमशः संगीत सीखब छोड़ि देलनि। तहिया जे छुटलनि से छुटले रहि गेलनि।
मुदा छुटलाहा ओएह संगीत फेरसँ आइ सोझाँ ठाढ़ छलनि। जाहि संगीतसँ हुनकर आकर्षण-विकर्षणक सम्बन्ध छलनि से पुनः समस्या उत्पन्न क’ देने रहए। एहि बेर अपना सिखबाक नइं छलनि। बेटाकेँ सिखबाक व्यवस्था करबाक छलनि। मुदा ओ पिता सन नइं छलाह। विनोद बाबूकेँ पिता जकाँ पाइ कौड़ीक अभाव नइं छलनि। तैयो गौतमक संगीत सिखबाक विचार हुनकामे तनाव उत्पन्न क’ देने छल। ओ बेटासँ आशा लगा नेने रहथि। पढ़ि-लीखि क’ बड़का हाकिम बनत। खूब पाइ कमाओत। पाइ हुनका बेसी जरूरी बुझाइत छलनि। पाइक अभावमे ओ सेहन्ताक काज सभ नइं क’ सकल छलाह। बहुत रास सुख-सुविधाक वस्तु नइं जुटा सकल छलाह। एकटा नीक मकान। एकटा नीक रंगीन टी. वी. आ वी. सी. पी. लेबाक सेहन्ता बहुत दिनसँ दबा क’ रखने रहथि। अपन मकानमे एकटा शीशावला वार्डरोब बनब’ चाहैत छलाह, जाहिमे राशि-राशिके अँग्रेजी-फ्रेंच शराब सभ सजा क’ राख’ चाहैत रहथि। अपन मोन माफिक दोस-महिम संग कहियो काल बैसि क’ पीब’ चाहैत छलाह। उत्तेजक फिल्म देखबाक इच्छा अक्सर जोर मारैत रहनि। अँग्रेजी सिनेमा सभक चर्चा सुनथि। उमिरक एहि ढलान पर अँग्रेजी सिनेमा हुनकामे गुदगुदी उत्पन्न कर’ लागल छल। कहियो काल सिनेमा हालमे जा क’ भिनसुरका सिनेमा देखि आबथि। मुदा पत्नी संग देखबाक जे सुख छै से सुख उठेबाक हिम्मति नइं होइन। मायाकेँ ल’ क’ सिनेमा हाॅलमे नइं जा पाबथि। एक बेर मोन जोर केलकनि त’ माया लग प्रस्तावो रखलनि-सुनै छी?
-की?
-उमा मे ‘कोल्ड स्वीट’ लागल छै। भिनसरमे दस बजेसँ होइत छै। चलू ने एक दिन देखि आबी।
-धौर, ई अंग्रेजी-तंग्रेजी सिनेमा हमरा नइं नीक लगैत अछि। ई की फूरि गेल अए अहाँकेँ?
-अरे, अहाँ सभ दिन एहिना रहि जाएब। अँग्रेजी सिनेमाक सीन सब, आह, की सुन्दर होइत छै? देखबै तखन ने!
-नइं, नइं, हमरा बुते नइं हैत। खलनायक देख’ गेल रही त’ लोक सभ कोना आँखि फाड़ि क’ देखै छल।
विनोद बाबूकेँ हँसी लागि गेल छलनि। माया दिस ककरो तकैत देखि हुनको क्रोध होइत छलनि। तैं वी. सी. पी. कीन’ चाहैत छलाह। घरमे देखबाक सुविधा भ’ जेतनि। मुदा तकर जोगार नइं भ’ रहल छलनि। राँची दिस पोस्ंिटग भ’ जेतनि त’ सम्भव भ’ सकैत छलनि। मुदा राँची पोस्ंिटग लै लए जे खर्चा छलै से जुटिए नइं पबै छलनि।
तैयो एहिसँ देखबा-सुनबाक लालसा कम नइं भ’ रहल छलनि। आर बढ़िए रहल छलनि। एहि लालसा-लोभमे विनोद बाबू धीरे-धीरे परेसान रह’ लागल छलाह। कोनो काजमे मोन नइं लगैत छलनि। काज नइं करबाक कतेक रास बहाना आब ओ ताक’ लागल रहथि। एहि लेल कतेको बात ओ गढ़ि नेने रहथि।
-आब काजक वातावरण नइं रहि गेल छै।
-काज केलासँ की हेतै? कोनो इनाम छै काजक?
-कतेक लोक त’ बिना कोनो काजक दरमाहा उठबै अछि। के पुछैत छै?
-एहि राजमे काज क’ क’ की हेतै? कोनो इज्जति छै?
-परिश्रमसँ आॅडिटे क’ कए की होइत छै? क्यो घूरि क’ आॅडिट नोटो पढ़ैत अछि?
-ककरो पर कोनो एक्शन थोड़े होइत छै? अनेरे देखार होउ।
-अरे, अहिना चलैत छै दुनिया। हमरा कएलासँ किछु हेतै थोड़े?-लोककेँ कहबाक लेल आ अपनाकंे बुझेबाक लेल हुनका लगमे बहुत रास बात छलनि। मुदा आब ओ थाकि रहल छलाह। सभ बातमे झंझटि बुझाइत छलनि। ओ निचेनसँ रह’ चाहै छलाह। चैन तकैत रहै छलाह। बाहर जाथि त’ घर दिस भागथि। घर आबथि त’ बिछान पर पड़ि रहथि। बिछान गर’ लागनि त’ गप्प लड़बै लेल कोनो दोस महिमक ओहि ठाम पड़ाथि। कतहु चैन नइं भेटनि।
एहिमे गौतमक संगीत सिखबाक लगन हुनका एकदम्मे उत्तेजित क’ देने रहनि। संगीत सिखबाक इच्छा हुनका निरर्थक आ लक्ष्यहीन जीवन जीबाक लौल बुझा रहल छलनि। बालहठ सन लागि रहल छलनि। जेकरा कहुना, कोनो प्रकारेँ टारि देबा पर ओ तुलल रहथि।
-बड़ जिद्दी भ’ गेल अछि गौतम। पढ़ाइ-लिखाइमे ओकरा मोन नइं लगैत छै। संगीत सीख क’ की हेतै? गबैया बनत! इस्स, ई कीड़ा कोना ओकर माथमे आबि गेलै?-विनोद बाबू तमतमा गेल छलाह। माया हुनका बुझेबाक चेष्टा केलनि।
-मुदा आब ओकरा ठकल नइं जा सकैए। बहुत दिन अहाँ अनठौलिऐ।
-अरे, हमरा होइत छल जे कनिएँ दिनमे बात बिसरि जाएत। एहिना मोनमे ई सभ उजाहि अबैत रहै छै। एखन बुद्धिए की भेलै अछि?-ओ किचकिचा रहल छलाह।
-ओ नइं मानत। सीखबे करत। कहैत छल जे मल्लिकजी आश्वासन देने छथिन। पाँच माससँ लगातार हुनका ओहि ठाम जा रहल अछि। आइ सभटा कहैत छल। तानपूरा कीनबाक छै ओकरा। तकरे जोगारमे लागल अछि।
-गदहा अछि ओ। ई मल्लिकजी ओकरा दूरि क’ रहल छथिन। हमरा बिना पुछने किऐ ओ मल्लिकजीक ओहि ठाम जाए लागल। आब’ दियौ, बिगड़ैत छिऐ।-विनोद बाबू खिसिया रहल छलाह। बड़बड़ा रहल छलाह...
-आब ट्यूशन फीस दिअ’ पड़त। हारमोनियम कीन’ पड़त। तानपूरा कीन’ पड़त।
-से त’ कीनहि पड़त। कते दिन ठकबै ओकरा। तीन-चारि माससँ कहि रहल अछि जे एकटा तानपूरा कीनि दिअ’। मुदा अहाँ ध्याने नइं दैत छिऐ। कतेक बेर कहबै जे अगिला मास पाइ भेटला पर कीनि देब। टी. ए. भेटत त’ कीनि देब। एखन आॅफिसमे बड़ काज अछि। आन-आन खर्चा सभ अछि। लगैए आब ओ बूझ’ लागल अछि जे अहाँ ओकरा संगीत नइं सीख’ देबै।-माया कने रोषमे आबि गेल छलीह।
विनोद बाबू आब कने मोलायम भेलाह। मायाकेँ बुझबैत कहलखिन-अहाँ बात बुझबाक कोशिश करियौ। हम कोनो ओकर दुश्मन छिऐ? बापे छिऐ की ने? अपन बेटाकेँ दूरि होइत हम कोना देखि सकैत छी। संगीत सीखलासँ की होइ बला छै? बड़का ओस्ताद बनत। मुदा आइ. ए. एस. तँ नइं होएत, पैघ लोक त’ नइं होएत। हाकिम नइं कहाओत। अहाँकेँ नीक लागत की? आब विनोद बाबू मायाक मर्मस्थलकेँ छूबि लेबाक चेष्टा क’ रहल छलाह।
-से हमरा किऐ नीक लागत? हमहूँ त’ ओकर माइ छिऐ। ओकर नीक चाहबे करबै-माया बजलीह।
-सएह त’ हमहू कहैत छी। आर किछु दिन धरि जँ हम सभ अनठा देबै त’ ओ क्रमशः जिद्द बिसरि जायत। फेर पढ़बा-लिखबामे मोन लगाओत। एहि लेल जँ कने हम अहाँ ठकिए देबै त’ की भ’ जेतै।-कने विचारैत सन विनोद बाबू बजलाह।
डेरा प्रवेश कालक मानसिकता क्रमशः हुनका घेरि रहल छल। अप्रत्याशित रूपें माया आइ एहि मामिलामे पतिक संग एकमत भ’ रहल छलीह। विनोद बाबू आब मायाक लग सहटि आएल छलाह। अन्ततः दुनू बेकतीकेँ स्वर साधबाक लेल कोनो तानपूराक प्रयोजन जेना एकदम्मे नइं रहि गेल छलनि।
कविता
मोछ
काल्हि हमर डेरा पर
आबि ओ
अपन नवका विदेशी
पिस्तौल देखा गेलाह।
गना गेलाह एक-एक क’
ओकर विशेषता
मारक क्षमता।
छोट-छीन टुनमुनियाँ
कारी चमकैत पिस्तौल
देखबामे लगैत छल
हिलसगर।
ओ गद्गद् भ’
सुनबैत रहलाह
पिस्तौल प्राप्तिक खिस्सा।
मैथिलक बदलैत
प्रकृति, आवश्यकता--
आ, विकासक संगक
अस्त्राक अनिवार्यता पर
दैत रहलाह भाषण।
--ई व्यक्ति जे काल्हि
हमरा पिस्तौल देखा गेलाह
कहियो क’ अबैत
रहै छथि।
आ’ अयाची मिसरक विरुद्ध
तर्क करैत
कहियो क’ अपन गाछक
एक झोरा लताम
अपन बाड़ीक एक हत्था केरा
अपन पोखरिक
एक फड़ी माछ
हमरा लेल अनैत रहै छथि।
किछु कहला पर
लगै छथि देब’ उपदेश,
बड़का भैया संग
स्कूलमे छलाह पढ़ने
तैं अपने मोने हमरा
अपन अनुज मानै छथि।
अपने मोने सुनबैत
रहै छथि
के, कोना कमाइ’ए तकर गप्प!
आ’ अग्रज तुल्य
अधिकारक संग
खराब होइत दुनियाँ
दिल्लीसँ पटना धरिक
चलैत व्यापार
दुख कटैत परिवार आ
सामाजिक सरोकारक
उदाहरण द’
किछु-किछु चलब’ लेल
उकसबैत रहै छथि।
अपने मोछ नहि
रखने छथि
तैं हमर मोछक
रहै छनि बड़ चिन्ता।
ओना त’ कहैत रहै छथि
जे कटा लिअ’ मोछ,
अनेरे किऐ छी रखने,
पैघ लोक कतहु मोछ राखए?
देखा दिअ’ कोनो पैघ लोककंे
जे मोछ रखने हो।
ओ जमाना चल गेलै
जहिया मोछ पुरुषत्वक
चेन्ह रहए,
आब त’ पुरुषत्वे
पैघ लोक हेबाक
मार्गमे अछि
बड़का बाधक।
तैं कहैत रहै छथि
हमरा अनुज बुझनिहार,
पैघ लोक हेबाक अछि त’
मोछ कटा लिअ’
अथवा एना क’ काज
करू, कमाउ
जे मोछमे नहि लागए।
दाँत
कहने रहै माँकें
दुरागमन काल
हमर नानी
मुँहमे रखने रहिहें पानि
सासुरमे।
हमर माँ ई बात
कहियो नइं बिसरल।
ककरो, कतबो गन्जन पर
कोंचला पर, टोकला पर
मान आ अपमान पर
उपेक्षा आ अपेक्षा पर
नैहरोक खिधांश पर
मुँह सँ नहि टघरलै पानि
रखनहि रहल मुँहमे पानि।
कहलक हमरो
दुरागमन काल
हमर माँ
मुँहमे रखने रहिहें पानि
सासुरमे।
हमरो ई बात,
बिसरल नहि होइ’ए।
पानि रखलासँ
मँुह त’ दूरि नहि होइये,
मुदा दाँत--
कमजोर भेल जाइ’ए।
हम दन्तहीन नहि
हुअ’ चाहै छी
माँ जकाँ।
ठीक छै जे--
हमर माँ
दाँतक उपयोग नहि केलक
अथवा हमर माँक
दाँतक उपयोग नहि भ’ सकलै।
मुदा हमहूँ उपयोग
नहि करब
अथवा हमरा दाँतक उपयोग
नहि हैत से--
कोना कहि सकै छी।
बुधियार
रहरहाँक रस्ता छोड़ि
दोगे-दोग निकसैत
बनल-विराट
नट-सम्राट
तों बड़ बुधियार छह कक्का!
लेबल-मुनल घरमे रहनिहार
नाककें तौनीसँ झाँपि क’
चलनिहार
हरेक सुन्दर मुँह पर
आँखि गड़ौनिहार
धतपत्-धतपत्
हरिओम तत्सत्
तों बड़ बुधियार छह कक्का!
बिजुरी सन छिटकि क’
अनकर आँगनकें उघार करैत
ब’ड़ आ पीपर सन
घरे-घर दरारि तकैत
चाहक चुस्की
चैअनियाँ मुसकी
तों बड़ बुधियार छह कक्का!
शुभ-लाभ हेरैत
वंशी टेरैत
विवशताक बोर द’
तरेरा छिपैत
बिलगबैत
पनिअबैत
तों बड़ बुधियार छह कक्का!
कक्का हौ,
बूड़ि तोहर भातिज सभ
सिक्का चढ़ौने तोरा
बापक भाइ मानै छह
बपहारि काटै छह
दुख स्रष्टा
चिर विपटा
तोँ बड़ बुधियार छह कक्का!
ई के सोर करै’ए?
ई कोन बाघ
घात लगौने
पैर मारने
आबि रहल’ए
सहटल-सहटल
ई कोन मृगशावक
निश्चिन्त, मचैने अछि
उछल-कूद?
ई कोन नदी
बहि रहल’ए
शान्त, मन्थर
अविराम!
ई कोन गाछ
फुला रहल’ए?
ई के अपन टाँग
झुला रहलए?
अकस्मात ई के सोर करै’ए?
भीतरसँ बाहर
अएबाक लेल
ई के
जोर करै’ए?
ई के सोर करै’ए?
फेरसँ
फेरसँ हमर
छोटका बेटा
भ’ गेल अछि
दुखीत।
फेर कारी मेघ
कर’ लागल अछि
टण्डैली।
अवारा, लुच्चा
कारी मेघकें देखि
हम दूनू परानी
फेरसँ डेराए लागल छी
फेरसँ हमर
दुखीत बेटाक
गाल पर
पसरि गेल’ए
आँखिक काजर
फेरसँ हम
लिख’ लागल छी
एक नब कविता
