अग्निपुष्प



अग्निपुष्प 1948-
जन्म: तरौनी, दरभंगा। मूलनाम : महेन्द्र झा । मैथिलीमे सहस्त्रबाहु कविता संग्रह प्रकाशित । मुक्ति प्रसंगक अनुवाद प्रकाशित । वामपंथी आन्दोलनमे सक्रिय। शिक्षा, सम्वाद आदि पत्रिकाक सम्पादन । वामपंथी विचारधाराक सशक्त कवि।

कविता: इजोतक लेल, भोर, की चुनू, सदानीराक स्नेह, दादागिरी, स्नेहक समस्त सुर


इजोतक लेल
अन्हार गुज्ज गाम दिस
आस्ते-आस्ते
बढ़ल आबि रहल अछि
कोनो हमर संगी
इजोतक लेल
लतरल जाइत हो जेना
कजरी लागल देबाल पर
कोनो मुक्तिकामी अपराजिता
फूलक लत्ती।

गाम जत’ अनघोल होइ
जत’ रीलीफक रोटी
फाँसीक फन्ना सन बुझाएल होइ
सामन्त, मुखिया आ पुलिसक
एकटा छुट्टा गोल होइ
गाम अनघोल होइ
अन्हार घरक डिबियाक

ममरी लागल बत्तीकें
कने आर उसका देलकै’ए
हमर संगी -- इजोतक लेल
हमर घरक इजोत पसरि गेलै’ए
सौंसे गाममे।

गाम जत’ युवककें
पकड़ि लेलकै’ए कोतबाल
देबाल पर नारा लिखबाक अपराधमे
आ अपराधी बसल हो
पुलिस-कैम्पक देखभालमे
गाम जत’ आब सिंगरहारक
फूल नइं झड़ैत होइ
सब टोल बबूरबोनी बुझाइत होइ
कतौ बाढ़ि होइ
कतौ दरारि होइ।
बाबू साहेबक डरें आब
लोक गाम छोड़ि नइं पड़ाइए
अन्हारोमे एक-दोसराक
बाँहि पकड़ि आगू बढ़ि जाइए
एक गामसँ दोसर गाम धरि
बढ़ि जाइए हमर संगी
इजोतक लेल
हमर संगी जे हमर विचार अछि
हमर संघर्ष अछि
अन्हार गुज्ज गाम दिस।

भोर
बाजल कौआ भेल सिनुरिया भोर
सिंगरहारक सुगन्धिसँ माँतल कन कन ओस
गाम जागल
मजूर-किसान जागल
भागल अन्हरिया आ कुहेस
किला जकाँ ठाढ़ छै पुलिस
गामक चारू ओर।

उड़ल चिड़इ चोंच भरि दाना लेल
खेतहिमे सुखाएल कुसियार दिस
आँखिमे फाटल धरती
भूखें कनैत बच्चाक नोर।
कोठी भरल
उमरल छल दलान
मालिकक आँगनमे
आइ नाचत
सोलहो कलासँ इन्द्रधनुषी भोर
केहन ई भोर
गुड्डी जकाँ कतबो ओ
उड़ए आकाश
हमरे सक्कत हाथमे छै अनन्त डोर
उमड़ल बलान सन
बढ़ल जा रहल’ए लोक
अही माटि पर खसल छल
घाम हमर इनहोर।
अपन साम्राज्य बढ़ेबाक
चारू कात छै होड़़
हमरे सोणितसँ सुग्गा सन छै
रूसी आ अमरीकी शासकक ठोर
हमरे गाम सन छै एल-साल्वाडोर

की चुनू
रातुक शृंगार चुनू
आ कि भोरक सिंगरहार
आकाशमे छिड़िआएल तरेगन
चुनू आ कि टूटल सितार

ऊँच गाछ तारक चुनू
आ कि काँट लुबधल खजूर
कुसियारक काँप चुनू
आ कि सघन बोन बबूर
खढ़-पतवार चुनू आ कि
तिजोरीक खूजल ताला
सगरो घोटाला चुनू
आ कि षड्यन्त्राक हवाला

स्वप्नमे फुलाएल
पारिजात चुनू आ कि
धूरामे लेढ़ाएल निर्माल
उफनैत नदीक कछेर चुनू
आ कि टूटल नाहमे मझधार
फेर अपन अलच्छ हाथ चुनू
आ कि हथलग्गू हथियार

सदानीराक स्नेह
एतेक गँहीर आ विशाल
समुद्रक पानि
आखिर खाड़ किऐक होइ छै
हमर श्रम आ संघर्ष
अहाँक अस्तित्व लेल
आखिर नारा किऐक होइ छै

डेग-डेग पर उखडै़त
हमर साँस आ पिसाइत हड्डी
एहि महानगरक सम्पदा नहि
आखिर चारा किऐक होइ छै

एहि ठाम एक टा लेल रातुक चकाचैंध
हमरा लेल कनाॅट प्लेसक भुलभुलैया
आ दिनमे तारा किऐक होइ छै

सरनरियाक एहि शहरमे
एकटा निरापद ऊँच फुनगी
ताकब कतेक मुश्किल अछि
सदानीराक स्नेह पाएब
कतेक मुश्किल अछि
निर्गन्ध यमुनाक कछेरमे
बसल एहि महानगरमे

दादागिरी
अपन धरती पर
अपने फसिल हम
आइ काटल अछि
अहाँ अनेरे तमतमाएल छी
हम एकरा खातिर
दिन-राति बितौने छी
चान नहि रुकै छै
आकाशमे
लहरि नहि रुकै छै
समुद्रमे
नव पल्लव होएब
नहि रुकै छै
कोनो गाछ पर
कोनो प्रतिबन्धसँ

बारुदक ढेर पर बैसि क’
शान्तिक लेल अहाँक
ई केहन दादागिरी अछि
ई केहन साझी बिरादरी अछि

स्नेहक समस्त सुर
अहाँक नाम नागफनीक
दुर्लभ फूल
अहाँक एकान्त प्रतीक्षामे
हम बिनु बसातक धूल
अहाँक नाम सांगह बिनु
लतरैत अपराजिताक लता
हम बरिसातोमे अतृप्त
झोझरिक पात

अहाँक नाम निर्जन वनमे
अविरल बहैत अमृत धार
आतुर आकांक्षाक संग
कछेरमे हम ठाढ़
अहाँक नाम मन्दिरमे
आराध्य भव्य मूर्ति
हम कोनो कातमे फेकल निर्माल
अहाँक नाम उगैत सूर्यक
विस्तृत लाल क्षितिज
हम चहुँ दिस पसरल
अन्हार गुज्ज अन्हरिया
अहाँक नाम स्नेहक समस्त सुर
चारू पहरक समस्त राग
अहाँक नाम साधल
वीणाक तार
हम असमय हहाइत
बाँसक बेसुरा स्वर
ज्ञात-अज्ञात गन्ध
हम इन्द्रधनुष सन
सतत बदलैत अपन रंग
अहाँक नाम शाश्वत
चतरल वटवृक्ष
हम जेना नदी छोड़ि
देने हो अपन मूल कूल